पराया धन कौन
पराया धन कौन
जिनके बच्चे नहीं होते वो दुखी होते हैं कि काश ईश्वर ने मुझे एक संतान दे दी होती तो अच्छा होता । मेरी भी कोई देखभाल करता और जिनके होते हैं वो भी इस कलयुग में दुखी है।
वर्षा की पूरी जिंदगी अपने चार बेटो और दो बेटियो के प्रति अपना फर्ज निभाते निभाते गुजरी।
उसके पति का काम बहुत कम था पहले रोज पिता के घर बच्चों को ले जाया करती सुबह का खाना खा कर शाम को पिता कुछ रुपये देता तो लौट आती पिता की मृत्यु के बाद छोटा भाई भी बहुत मदद करता था।
फिर पति का काम सुधरा उसने थोड़ा घर बनाया और उसकी पेंशन भी लग गयी फ्रीडम फाइटर की।
पति की मौत के बाद चार बेटों को माँ की पेंशन का लालच था। माँ की सेवा करने को कोई तैयार ना था जिसके घर रहती वो पैसों की उमीद लगाए बैठे रेहता। वो कभी एक बेटी कभी दूसरी बेटी के पास ज्यादा रहती। पैसों की लालच में बेटे माँ को अपने घर ले भी जाते तो सेवा नहीं करते। पेंशन के जमा हुए पैसों को आपस मे बांटने के लिए। वर्षा बीमार रहने लगी तो उसके पास कुछ लाख रुपये जमा थे उसने चारों बेटों को बुलाया और बेटियों को भी और उन पैसों का बँटवारा कर दिया।
बेटियों ने माँ के पैसे लेने से इनकार कर दिया, बेटों ने वो भी ले लिए। बेटियों ने कहा माँ हमको तेरे पैसे नहीं चाहिये तेरा आशीर्वाद ही काफी है। लोग कहते हैं बेटी पराया धन है पर बेटी पराई होकर भी अंत तक साथ निभाती है पराये तो बेटे हो जाते है बीवी का दामन थाम कर जोरू के ग़ुलाम हो जाते हैं।