प्लेटफॉर्म ईश्क़
प्लेटफॉर्म ईश्क़


ईश्क़ के आउटर पर खड़ी हुई मोहब्बत एक्सप्रेस की कहानी है ये,जो मंज़िल तक पहुंचने से पहले रुकती ज़रूर हैं। क़भी क़भी वो पल,वो लम्हा फ़िर लौट आता है जिसे हम जी चुके होते हैं।ये कहानी बनारस से मुम्बई का सफ़र है जो अक्षय(यानी की मैं) औऱ वैदेही की है,जो दूर से ही पास रहकर ये सफ़र तय करते हैं।
10 दिसम्बर का दिन 2016 वाराणसी स्टेशन पर मौसम में हल्की सी मचलन थी,धूप भी औऱ काले बादल भी थे। मैं अपने मौसा जी और उनकी फैमिली को कैण्ट स्टेशन छोड़ने आया था। मेरे मौसा जी दिल्ली में रहते थे औऱ उन्हें प्लेटफ़ॉर्म 5 पर लेकर जाना था,उनकी ट्रैन वही से जाने को थी। मैं सामान लेकर सबके साथ प्लेटफ़ॉर्म 9 की तरफ़ बाहर वाली सीढ़ियों से ऊपर चढ़ ही रहा था।
तभी मेरी नज़र एक लड़की पर पड़ती है,ब्लू जीन्स औऱ ब्लैक क्रॉप टॉप पहने कंधे पे एक बैग लटकाए किसी को बेचैनी से ढूंढ रही थी। वो कैसी दिखती हैं इसके बारे में आगे विस्तार से बताऊंगा,मैं जैसे ही सीढ़ियों से ऊपर की ओर चढ़ा तो देखा वो प्लेटफ़ॉर्म 9 पर उतर रही थी।अब मैं दुविधा में पड़ गया की जाना तो हैं 5 पर मग़र दिल 9 पर अटका है।इतने में पीछे से आवाज़ आती हैं,
"अरे अक्षय बेटा जल्दी चल वरना मौसा जी का दिल्ली वाला समोसा ठंडा हो जाएगा" मौसा जी मुस्कुराते हुए बोले,
"हां मौसा जी चलता हूं" कहते हुए हम सब प्लेटफ़ॉर्म 5 पर नीचे उतरने लगे। शायद मौसा जी ने मुझे देख लिया था उस लड़की को घूरते हुए औऱ ये भी समझ गए थे की मेरा दिल उधर ही अटका हुआ हैं। नीचे उतरते ही बोले वो,
"बेटा अक्षय एक काम पूरा हो गया अब जा दूसरा कर ले"
मौसा जी आंख मारते हुए बोले।
"अरे कौनसा काम है बेटा दूसरा" मौसी मेरे तरफ़ देखते हुए बोली। इससे पहले मैं कुछ बोलता,
"अरे टिकट निकालने जाना है 9 नंबर खिड़की से"
प्लेटफ़ॉर्म 9 की तरफ़ इशारा करते हुए मौसा जी ने कहा।
"अच्छा मौसा जी प्रणाम,मौसी प्रणाम,बच्चे लोग पढ़ाई अच्छे से करना" इससे पहले मौसी कुछ औऱ बोलती इतना कहते हुए मैं सीढ़ियों पर दौड़ता हुआ प्लेटफ़ॉर्म 9 की तरफ़ भागने लगा,नीचे उतरते ही मेरी नज़र उस लड़की को ढूंढने लगी जिसे कुछ देर पहले मैंने उसे देखा था।
"एक्सक्यूज़ मी साइड प्लीज़"ऐसी आवाज़ जायज़ थी क्योंकि इस प्लेटफ़ॉर्म पर कुछ ज़्यादा ही भीड़ रहती है। मैं जैसे ही पीछे मुड़ता हूं औऱ देखता हूं की ये वही लड़की थी जिसको मेरी नज़रें कब का क़ैद कर चुकी थी।
वो मुझें नज़रंदाज़ कर आगे बढ़ जाती है वैसे भी मैं कौनसा हीरो था। आगे जाकर वो कोच पोजीशन B2 के सामने खड़ी हो जाती है,औऱ ट्रैन के मस्त सफ़र शुरू होने का इंतेज़ार करती है।
हां तो अब उसके बारे में कुछ बात हो जाए उसकी आंखों में जादू सा था कुछ,उसकी मुस्कान आय-हाए,उसकी जुल्फें रेत सी उड़ रही हो औऱ मानो अस्सी के किनारे बनारस की सुबह हो रही हो। बिना कुछ सोचे ही मैं उसके पास जाकर खड़ा हो गया,अब पास तो आ गया था बस उसके बात करने का इंतज़ार था। तभी पीछे से कोई बोलता है,
"अरे अक्षय तू तो मौसा जी को छोड़ने आया था" ये आवाज़ किसी औऱ की नहीं मेरे जिगरी यार सुधीर की थी।
"हां यार उन्हीं को छोड़ने आया था" इतना कहके मैं चुप हो गया औऱ सोचने लगा कहीं ये कुछ औऱ न बक जे जिससे शक हो जाए उस लड़की को,लेकिन जो नहीं चाहो वही होता है,"लेक़िन अक्षय दिल्ली की ट्रैन तो प्लेटफ़ॉर्म 5 से जाती है औऱ तू 9 पर क्या कर रहा" कहकर वो मेरी तरफ़ ऐसे देख रहा था जैसे मैंने कोई पाप कर दिया हो,
"यार मुझें मुम्बई जाना है तुझें बताया तो था"मैंने लड़की की तरफ़ इशारा करके आंख मारते हुए बोला।लेक़िन इन सब बेफिजूल हरक़तों का कोई फ़ायदा नहीं था वो मेरे तरफ़ ध्यान ही नहीं दे रही थी। इतने में ट्रैन के आने की घोषणा होती हैं,
"यात्रीगण कृपया ध्यान दे गाड़ी नंबर 13459 फलाना एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय इतने बजके इतने मिनट पर प्लेटफ़ॉर्म नंबर 9 से रवाना होगी टू टू टू"
औऱ ट्रैन तबतक आ चुकी थी सब चढ़ रहे थे ट्रैन में,इतने में सुधीर बोलता है "अच्छा अक्षय चलता हूं मुम्बई वाला काम होने होने के बाद पार्टी देना"
"बिल्कुल यार चल ठीक" मैं इतना कहता हूं की इतने में वो लड़की B2 बोगी में चढ़ चुकी थी।
मैं भी दौड़ता हुआ बोगी में चढ़ गया औऱ जैसे ही देखा उसका सीट दरवाज़े के पास थी। बड़ी मासूम सी एक तरफ़ बैठी थी,वहां एक फ़ैमिली भी थी औऱ वो लड़की इंतज़ार कर रही बीच वाले सीट पर नज़र गड़ाए,शायद वो उसकी ही सीट थी।
"अंकल ज़रा मेरा बैग देखेंगे मैं आती हूं"कहते हुए बाहर चली जाती है।
वो स्टेशन पर उतर के खाने के लिए कुछ लेती है औऱ ट्रैन में दोबारा चढ़ जाती हैं। ट्रैन काशी स्टेशन पर ट्रैन पंहुचते ही फ़ैमिली जो थी खाना निकालकर खाने बैठ जाती है,औऱ ये देख वो लड़की उठती है औऱ बोलती है "अंकल आप लोग आराम से खाइए मैं बाहर दरवाज़े पर थोड़ी देर खड़ी हो जाती हूँ"
इतना कह वो बाहर हुई तो मैं भी बाहर हो लिया,मैं सामने वाले ही सीट पर बैठा था जिसपे कोई नहीं आया था अभी।वो दरवाज़े के एक तरफ़ और मैं दूसरे तरफ़ खड़ा हो गया,शायद वो मुझे देख रही है मैं सोच ही रहा था,
"एक्सक्यूज़ मी आपके पास सिम एजेक्टर पिन होगा वो क्या हैं न बनारस से वापस जा रही हूँ तो इस सिम का कोई काम नहीं" वो सारी बात मुझे ऐसे बोली पहली दफ़ा में जैसे मुझें सालों से जानती हो।
"हां बिल्कुल है लीजिए" मुझे बस मौक़ा चाहिए,यहां मौक़ा सामने से ख़ुद आ रहा था औऱ पिन तो मैं कवर के पीछे ही रखता था। वो सिम बदल रही थी औऱ मैं उसे देखकर अपने चेहरे की मुस्कुराहट का दायरा।
"हो गया थैंक्यू " कहकर पिन मुझे वापस थमा दिया।
"अरे कोई नहीं थैंक्स की जरूरत नहीं है"
मैंने मुस्कुराते हुए ऐसे कहा जैसे कोई महान काम कर दिया हो,
"मेरा नाम वैदेही हैं मैं मुम्बई में रहती हूं और तुम" इतना कह वो चुप हो गयी मुझे तो उसे बस सुनना था।
"मेरा नाम अक्षय है और मैं कहीं का नहीं रहने वाला हूं"मैंने एक घटिया जोक मारा जिसपे मुझे भी हंसी नहीं आई।
"मतलब मैं नहीं समझी" वैदेही ने बोला हाए क्या नाम था मन से होता है जैसे गंगा नहा लिया हो।
"अरे मेरे मम्मी-पापा कहते है की जैसी तेरी हरकतें है तू कहीं का नहीं रहेगा,तो वही बोल दिया मैंने वैसे मैं बनारस का हूं"इतना कहकर ख़ुद को राजपाल यादव जो समझने लगा था।
"अच्छा तो मुम्बई किस काम से" उसके इतना कहते ही मैं सोच में पड़ गया "अरे मुझे तो कहीं जाना ही नहीं है
"नहीं मुझें कहीं नहीं जाना वो तुम्हारे चक्कर में ट्रैन में चढ़ गया मैं तो मौसा जी को स्टेशन छोड़ने आया था,तुम्हें देखा औऱ प्यार हो गया" मैंने मन में बोला ऐसे कौन इज़हार करता हैं प्यार का।
"हैं क्या बक रहे हो" उसने तेज़ आवाज़ में कहा।
"पहले बताओ हम कहाँ पहुंचे तो मैं बताऊंगा"इतना कह मैं दरवाज़े से बाहर देखने लगा।
"मिर्ज़ापुर स्टेशन आ गए हैं हम अब बोलो क्या बोल रहे थे"
वैदेही ने कहा।
"917272... ये मेरा नंबर हैं कॉल या मैसेज करके पूछ लेना,मुझें उतरने के बाद बनारस वापस भी जाना है"
इतना कहकर मैं उतर गया औऱ ट्रैन 2 मिनट बाद चल भी दी।मैं मुस्कुराते हुए हाथ हिला रहा था औऱ वो भी मग़र न जाने ऐसा क्यों लग रहा था वो कह रही हो मेरे साथ मुंबई चलो।
मैं अगली ट्रैन से बनारस वपास आ जाता हूं,मोबाईल चेक करता हूं तो देखता हूं 20 कॉल 10 मैसेज,औऱ चेक किया तो देखा मैसेज में लिखा था,
"Hii अक्षय...
मैं वैदेही....
तुम घर पंहुचे की नहीं मैं कब से तुम्हारा नंबर ट्राइ कर रही हूं पर कॉल पिक नहीं हो रहा,प्लीज फ्री होकर कॉल करना,
मुझे तुमसे बात करनी है,औऱ वो बात भी जाननी है"
ये सब पढ़ के लगा मानो मैंने ईश्क़ का एवरेस्ट फ़तेह कर लिया हो,उससे बात करने के लिए तुरंत कॉल लगता हूं,
एक रिंग बजते ही "हाई अक्षय तुम कहा हो घर पहुंचे की नहीं तुम ठीक हो ना" इतना सब कुछ उसने एक झटके में कह दिया,प्यार तो झलक दिखला रहा था।
"अरे मेरा फोन साइलेंट मोड पे था पता नहीं चला औऱ हां मैं घर पहुंच गया"मैंने उसे रिलैक्स महसूस कराते हुए बोला।
"थैंक गॉड मैं तो डर गयी थी की तुम कहीं किसी मुसीबत में तो नहीं अच्छा सुनो तुम मुझें कुछ बोलने वाले थे ना"ये बोलकर चुप हो गयी औऱ मेरी बातें सुनने के लिए जैसे बेताब सी थी।
"देखो मैं इधर उधर बातें नहीं घुमाउंगा बस यही कहना था की मुझें तुमसे सच्चा वाला प्यार हो गया है औऱ रही बात यक़ीन की तो तुम ख़ुद जानती हो मैं मिर्ज़ापुर किस वज़ह से पहुंच गया था" मैंने हंसते हुए कहा,
"साथ रहोगे हमेशा कभी दूर नहीं जाओगे न मुझे छोड़कर" उसने मुझसे ये बात बड़ी आसानी से कह दिया।
"आई लव यु मैं तुम्हारे साथ हमेशा रहूंगा लेक़िन इतना प्यार करती हो तो मुम्बई साथ चलने को क्यों नहीं बोली" मैंने हंसते हुए कहा,
"टिकट कहाँ था तुम्हारे पास अगली बार आऊंगी तो ले चलूंगी साथ हमेशा के लिए" उसने कहा,
उसका मेरे साथ कुछ घंटो में इतना कनेक्ट हो जाना मुझें बहुत अच्छा लगा औऱ अज़ीब भी कोई लड़की क्यों आख़िर इतनी जल्दी किसी से इतना कनेक्ट हो जाएगी।
"अच्छा कहां पहुंची कुछ खाया या नहीं" सारी बातें भुला मैंने उससे पूछा,
"हां खा चुकी हूं अभी जबलपुर पहुंची हूं" वैदेही ने कहा।
"अच्छा एक बात पुछु तुमसे बुरा मत मानना" मैंने उसके इतने जल्दी कनेक्ट हो जाने की बात दिमाग में लेके पूछा।
"हां जरूर पूछो"उसने कहा।
"अच्छा मुझें एक बात हज़म नहीं हो रही हैं की तुम मुझसे ऐसे प्यार जता रही हो जैसे कोई पुराना रिश्ता हो" मैंने कहा। वो कुछ बोली नहीं बस हंस रही थी न जाने क्यूं!,
"अरे बताओ न क्या बात हैं मुझे पता है कुछ न कुछ बात जरूर है" मैंने वैदेही से कहा।
"अच्छा बाबा सुनो बताती हूं तुम्हें याद हैं पिछली साल जुलाई में तुम मुम्बई आये थे" उसने कहा।
"हां मैं आया था लेक़िन ये बात तुम्हें कैसे पता है" मैंने उससे पूछा।
"तो मैंने तुम्हें पहली दफ़ा स्टेशन पर देखा था एक ग़रीब लड़की को खाना खिला रहे थे अपने हाथ से जो की 2 दिन से भूखी थी,वहां से हज़ारो लोग गुज़रे किसी से कुछ नहीं दिया किसी ने सिर्फ़ पैसा दिया,मग़र तुमने उसका पेट भी भरा औऱ उसे प्यार भी किया,ये देख मुझे तुमसे प्यार हो गया"उसने सारी बात बड़े प्यार से बताई,
"ओह तो ये बात है" मैंने सांस में सांस लेते हुए कहा,
"औऱ तुम्हें प्यार हो गया था तब तुम्हें बोलना चाहिए था न उस वक्त क्यों नहीं बोली"मैंने उससे पूछा,
"अरे मैंने तुमसे बात करनी चाही मग़र तबतक तुम बनारस जाने वाली ट्रैन में बैठ गये थे"वैदेही ने कहा उसका बार बार नाम लेने में मज़ा आता है।
"बेह यार काश! मुझे पहले दिख जाती तुम मैं ही कह देता, तुम्हें भी मेरी तरह ट्रैन में चढ़ जाना चाहिए था तो बात बन जाती"मैंने मज़ाक में कहा,
"मेरे सोचने में ट्रैन निकल चुकी थी औऱ जानते हो मैं बनारस क्यों आई"उसने कहा,
"क्यों"मैं फ़िर सोचने लगा,
"अरे उल्लू मैं बनारस तुम्हें ढूंढने आयी थी लगभग एक हफ़्ते थी मैं वहां अपने फ्रेंड के यहां पर तुम कहीं मिले ही नहीं"उसने हंसते हुए कहा,
"लेक़िन तुम्हें कैसे पता मैं बनारस से था"मैंने उससे पूछा,
"तुमने उस दिन सी एस टी स्टेशन पर आई लव बनारस लिखा हुआ ब्लू कलर का टी-शर्ट पहना था गधे"उसने हंसते हुए प्यार से कहा,
" स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म पर छुटा हुआ ईश्क़ बनारस के प्लेटफ़ॉर्म पर मिला औऱ तुमने ख़ुद मुझे प्रपोज़ किया जानते नहीं हो मैंने तुम्हें कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा डफर मग़र कहते हैं न ईश्क़ सच्चा हो तो कुछ भी मुमकिन है"उनसे कहा,
"चलो तुम्हारा प्लेटफ़ॉर्म ईश्क़ पूरा तो हुआ औऱ मैं मुम्बई आ रहा हूं अगले महीने मिलते हैं,चलो बाद में बात करता हूं,औऱ कॉल करना सुबह मेरी लव जंक्शन लव यु" मैंने हंसते हुए कहा,
"लव यू टू मेरे बनारसी बाबू"कहके फोन रख दिया, जिसने भी कहा है सही कहा है जो मिलता है वक्त पर मिलता है।