पीछे का दरवाज़ा

पीछे का दरवाज़ा

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ये कहानी यूपी के बुलंदशहर के एक छोटे से क़स्बे रुआ की है, जहाँ एक तरफ़ उस क़स्बे में पैदा हुए लोग वहाँ जाने से कतराते थे, वहीं दूसरी ओर एक पुलिस इंस्पेक्टर का तबादला वहीं के थाने में हुआ था। सुमित (पुलिस इंस्पेक्टर) अपनी पत्नी (स्मिता) औऱ बेटे (राहुल) के साथ वहीं के सरकारी मकान में रहने आये थे।

कुछ दिन बीत जानें के बाद एक रोज़ आम दिनों की तरह सभी सोने जा रहे थे, तभी पीछे के दरवाजा किसी ने खटखटाया औऱ आवाज़ आई, "मुझें बचा लो मेरे ससुराल वाले मुझे मार डालेंगे।"

अब सुमित औऱ उसके बीवी, बच्चे डर गए थे कि इतनी रात को कौन हो सकता है।

इतने में फिऱ से आवाज़ आई, "ये लोग मुझें नहीं छोड़ेंगे मेरी मदद करो !"

सुमित ने राहुल औऱ स्मिता को रुकने को कहा औऱ ख़ुद डरते हुए दरवाज़े की ओर बढ़ने लगा। जब उसने धीरे से दरवाजा खोला तो बाहर कोई नहीं था लेक़िन हाँ ज़मीन पर कुछ लाल चूड़ियाँ, सिंदूर औऱ लाल साड़ी रखी थी। सुमित औऱ डर जाता है पर वो सब वहीं छोड़, वो वापस दरवाजा बंद कर अंदर आ जाता है और स्मिता, राहुल से कहता है कि कोई ऑफिस से आया था।

फिऱ इस घटना के अगले हफ़्ते ही स्मिता औऱ राहुल किसी रिश्तेदार के यहाँ शादी में चले जाते हैं और सुमित को नौकरी की वजह से रुकना पड़ता है। जिस रोज़ वो जाते हैं उसी रात में फिऱ से सोने के वक़्त आवाज़ आती हैं दरवाज़े के खटखटाने की पर इस बार किसी लड़की के रोने की भी आवाज़ आ रही थी।

सुमित और सहम जाता है पर हिम्मत जुटाकर दरवाज़ा खोलता है तभी बाहर एक दुल्हन के रूप में सजी हुई लड़की रोते हुए कहती है, "मुझे बचा लो, ये पापी लोग मुझे नहीं बख्शेंगे। जब तक सुमित कुछ समझता तब तक वो लड़की सुमित की आंखों से ओझल हो चुकी थी। उस रात सुमित बस करवटें बदलता रहा तब भी ना सो पाया। अगले दिन जब ये सारी बातें वो पुलिस थाने में बताता है तो सभी चौंक जाते हैं और उनमें से एक पुराना हवलदार कहता है, "अरे ! साहब शुक्र मनाइए की आप ज़िंदा है।"

इतना सुनते ही सुमित बोलता है, "क्यों क्या बात है, बताओ हमें।

फिऱ हवलदार सारी बात बता देता है, "कुछ महीने पहले उस जगह आपकी तरह एक साहब आये थे,अपनी बीवी,बेटे और बहू के साथ,शायद ! कुछ वक्त पहले ही शादी हुई थी उनके बेटे की। साहब ! आस-पास के लोग कहते हैं कि उसने अपनी बहू को दहेज़ के लिए जलाकर पीछे के दरवाज़े पर ही जमीन में दफ़ना दिया था। तब से वो आत्मा बनकर कर घूमती है, उसने अपने ससुराल वालों को तो मारा ही और जिसने भी दहेज़ लेने की जुर्रत की उन सभी को मौत के घाट उतार दिया।"

सुमित ने तो अपना तबादला करवा लिया वहाँ से पर रुआ में मौत का सिलसिला जारी रहा क्योंकि सभी उनमें से थे जिनकी दहेज़ की भूख शायद कभी ना मिटे।


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