Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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अमन सिंह

Comedy Drama Romance

3  

अमन सिंह

Comedy Drama Romance

आई नुक्कड़ यू(I LOVE YOU)

आई नुक्कड़ यू(I LOVE YOU)

13 mins
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हां लड़कों और लड़कियों स्वागत हैं बरेली में अरे जाना नहीं हैं सच में, बस जहां हैं वहीं ठहरे ठहरे आपको बरेली पहुँचाते हैं हम।

तो ये कहानी हैं गजेंद्र शुक्ला जो की रामचरण शुक्ला के एकलौते संतान हैं, इनका एक घर औऱ दुकान बरेली स्टेशन से थोड़ी दूर एक मोहल्ले में हैं। रामचरण जी दुकान के साथ साथ ज्योतिष में भी पाँव पसारे थे, इनका एक ही सपना था की इनका लौंडा यानी गजेंद्र शुक्ला उर्फ़ गज्जू ज़िन्दगी में कुछ ढंग का कर ले। रामचरण जी का भरोसा तो गज्जू के कक्षा आठवी में एक बार और कक्षा दसवीं में दो बार फेल होने पर तो टिका रहा मग़र वहीं बात थी की दलदल में कबतक खड़े रहते आख़िरकार बारहवीं में 3 बार फेल होने के कारण पढ़ाई छूट ही गयी। गज्जू की पढ़ाई बिल्कुल रन पिक्चर में लेग पीस जैसी ही कमज़ोर थी।

मगर इनकी माताजी यानी विमला शुक्ला को यक़ीन था उनका लाडला उनका नाम जरूर रोशन करेगा। पढ़ाई के साथ साथ गज्जू पंडिताई में भी फेल इसीलिए रामचरण जी एक दिन बोल ही दिए "बेटा गज्जू अब से दुकान का ज़िम्मा संभाल लो पढ़ाई लिखाई तो पैदा होते ही छोड़ दिए कम से कम कुछ तो कर लो"। पिताजी के इस सुझाव को अब गज्जू अपने दिल में उतार लिए थे औऱ काम पर भी लग गए थे।

भले ही पढ़ाई का कोई अक्षर औऱ पंडिताई का कौनो मंत्र इनको याद ना रहा हो,लेक़िन ई प्रेम के बड़े ही शातिर खिलाड़ी थे। साला जिस उम्र में बच्चा मिट्टी खाता हैं उस उम्र में ही इनका दिल स्वाति मिश्रा पर आ गया था। मगर एक बात में बैल थे ये आजतक कभी अपने प्रेम का प्रसंग नहीं किये। मोहल्ले के पास नुक्कड़ के उधर इनके महबूब का घर और इधर इनका तो अक्सर ही ये नुक्कड़ पर पाए जाते थे। भले अपने पढ़ाई नाहीं किये कौनो लेक़िन स्वाति मिश्रा यानी अपने प्रेम को पढ़ाने में कौनो कसर नहीं छोड़े।

पिताजी को किराना का पाठ पढ़ा के ये स्वाति के रिक्शा के पीछे अपनी सुपर स्प्लेंडर लगा लेते थे औऱ कॉलेज तक छोड़ के आते थे वो भी सिर्फ इसलिए की कौनो दूसरे पंक्षी का नज़र इनके दाना पर न पड़े।

तो हुआ उस रोज कुछ यूं ये रोज की तरह तैयार होकर नुक्कड़ पर आके खड़े हो जाते हैं,इतने में इनके बचपन का फिक्स्ड डिपॉजिट सामने आ जाता हैं अरे मतलब इनका एकलौता प्रेम जिसे आज़तक ये चूं तक न कहे हो प्रेम को लेकर। अब उस दिन न कौनो रिक्शा न कौनो गाड़ी रहती हैं समय पर औऱ स्वाति को लेट हो रहा होता हैं कॉलेज जाने के लिए। अब वो गज्जू भईया को देख लेती हैं,अरे बस हमारे आपके के लिए भईया स्वाती जी के तो प्रेमी थे।

स्वाति नुक्कड़ पर गज्जू के पास आती हैं और कहती हैं "यार गजेंद्र हमें कॉलेज छोड़ दोगे अपनी गाड़ी पर प्लीज " वो भी गज्जू के हाथ पर हाथ रख के कहती हैं अरे प्रेम में नाही वो तो ई बचपन से साथ पढ़े थे इसलिए।

अब मानो गज्जू को अमूल बटर लग गया हो और वो फिसलने को तैयार हो।

"अरे बिल्कुल छोड़ देंगे आओ बैठो " गज्जू इतना कहते हैं और गाड़ी पर स्वाति गाड़ी पर बैठ जाती हैं।

बरेली के सड़को को फ़ार्मूला 1 का ट्रैक समझ अब गज्जू गाड़ी चला रहे होते हैं,ज़िन्दगी में पहली बार उनके बत्तिस के बत्तिस दांत दिख रहे थे,उनके साथ उनके पीछे उनका प्रेम जो बैठा था। लेक़िन कहते हैं न की प से प्रेम तो प से पनौती हुआ कुछ ऐसा की गाड़ी का तेल ख़त्म अब नीचे उतर स्वाति जी बड़े प्यार से पूछती हैं " क्या हुआ गज्जू कोई दिक्कत हैं क्या"।

अब गज्जू भी कहें कैसे की 50 रुपये की पेट्रोल पर उनकी ज़िंदगी चलती हैं, "अरे वो पेट्रोल ख़त्म हो गया हैं आओ तुम्हें रिक्शा पर बिठा दूं " बड़ी मायूश सी शक्ल बना के गज्जू स्वाति से कहते हैं। अब वो रिक्शा रोककर स्वाति को रिक्शा में बिठा देते हैं और अपने गाड़ी खींचते हुए ले चलते हैं । आधा किलोमीटर गाड़ी खींचने के बाद ख़ुद को कोसते कम गरियाते ज्यादा हैं,जैसे तैसे करके गाड़ी पेट्रोल पंप लेके पहुचं जाते हैं और कहते हैं "भईया 500 का पेट्रोल" गाड़ी भी ख़ुद को धन्य मान रहा होगा की जबसे उतरा हैं पहली बार ढंग से पेट भरा उसका।

फ़िर गज्जू घर आ जाते हैं और सीधे जाके बिस्तर पर लेट जाते हैं, इनके पिताजी गुस्से कहते हैं की "आज बरेली के कौनसे झुमके पर नज़र मार कर आये हो जो इतना थक गए"।

"अरे आप भी न जाईये दुकान संभालिये इतनी धूप से बच्चा आ रहा हैं कुछ खाया पिया नहीं डांटना शुरू" मां के ये शब्द काफ़ी थे पिताजी को चुप कराने के लिए। अब लड़का भले ही सच में बरेली के झुमके ताड़ के थका हो मग़र मां तो उसे थका हारा ही मानेंगी। उसी दिन शाम को स्वाति की माताजी यानी गज्जू की ख्याली सास औऱ अगर खयाल सच हुआ तो रामचरण जी की समधन दुकान पर आयी "अरे भाईसाहब प्रणाम और कैसे हैं " इतना प्रेम इसलिए क्योंकि वो यहीं से किराने की चीज ले जाया करती हैं।

"सब बढ़िया बहन जी और बताइए क्या चाहिए" रामचरण जी बोले।

"अरे हम तो अभी जा रहे हैं मंदिर ये रही लिस्ट अग़र हो सके तो गज्जू से भिजवा दीजिएगा घर पर स्वाति होगी ले लेगी" स्वाति की माताजी बोलती हैं।

"अरे बिल्कुल आप चिंता न करिए पहुंच जाएगा" रामचरण जी बोलते हैं। बगल में खड़े गज्जू के चेहरे की मुस्कान लौट आयी थी की आज तो कर देंगे अपने प्रेम का इजहार।

समान बांधकर पिताजी गज्जू को देते हैं और कहते हैं 'इसे नुक्कड़ के बाद पहले वाले घर सुरेश जी के यहां पहुंचा दो"। गज्जू समान उठाये चल देते हैं,आज पहली बार समान का बोझ इन्हें अपने प्रेम से कम ही लग रहा था,जैसे ही ये नुक्कड़ पर ये सोचते सोचते पहुंचते हैं की आज प्रेम प्रसंग करके ही रहें वैसे ही एक औऱ ख़लल आ जाता हैं,आजतक तो ये अपने पिताजी से भी नहीं डरे लेकिन एक जो डर था वो इनके सामने खड़ा था यानी की कुत्ता।

अब ये आगे बढ़कर इंजेक्शन लगवाने का रिस्क ले या लौट जाए यहीं सोच रहे होते हैं तभी पिछे से आवाज़ आती हैं,

"अरे गजेंद्र यहां क्या कर रहे और ये क्या लिए हो" सुनते हुए पीछे मुड़ के देखते हैं तो स्वाति हाथ में सब्जी की थैली लिए खड़ी रहती हैं।

"अरे ये तुम्हारी मम्मी आयी थी दुकान पर समान घर पहुचाने को कहा था" गज्जू कहते हैं।

"अरे तो यहां क्यों खड़े थे आगे क्यों नहीं जा रहे थे" स्वाति जी गजेंद्र से पूछती हैं अरे सिर्फ़ यहीं एक हैं जो गजेंद्र को गजेन्द्र कहकर ही बुलाती हैं।

"अरे वो समान भारी था संभाल रहा था " गज्जू को झूट कहना पड़ता हैं क्योंकि अग़र सच कहते तो इनकी हंसी बन जाती।

"अरे आओ चलो घर " स्वाति के कहते ही पीछे पीछे चल देते हैं,अब कुत्ते का डर तो ग़ायब ही हो गया था।

दोनों घर पहुचते हैं स्वाति ताला खोलती हैं और गज्जू समान रख निकलने लगते हैं क्योंकि प्रेम के इजहार का डर फ़िर पनप गया था।

"अरे रुको कहां जा रहे हो बैठो मां आये तो चले जाना मैं अकेली हूं घर पर औऱ पापा भी शाम को आएंगे" स्वाति गज्जू का हाथ पकड़ के कहती हैं।

अब तो इतनी गुज़ारिश के बाद गज्जू रुक जाते हैं,

औऱ दोनी में बात होने लगती हैं।

"लो पानी पियो थक गए होंगे और एक बात बताओ यार ये प्यार व्यार जैसी चीजे होती हैं" स्वाति गज्जू को ग्लास पकड़ाते हुए पूछती हैं।

"हां होती हैं न प्यार ही तो सबको जोड़े रखता हैं" गज्जू कहते हैं।

"अच्छा तुम किये हो कभी प्यार किसी से बेइंतहा" स्वाति पूछती हैं।

"न न न नहीं क़भी नहीं " गज्जू हकलाते हुए बोलते हैं।स्वाति समझ जाती हैं की कुछ बात तो जरूर हैं।

" अच्छा एक बात बताओ मैं कैसी दिखती हूं अरे मतलब कैसी लगती हूं " स्वाति के इतना पूछते ही गज्जू सकपका जाते हैं।

" अरे बहुत अच्छी हो बहुत खूबसूरत हो " इतनी ही बड़ाई करते हैं,

तबतक स्वाति बोल पड़ती हैं " अरे कहाँ यार कोई प्यार नहीं करता मुझसे " 

" अरे नहीं हम करते हैं न बहुत प्रेम करते हैं " लो भईया अब इजहार तो हो गया।

" देखो गजेंद्र हमें पता हैं तुम बहुत अच्छे लड़के हो औऱ मुझसे प्यार भी करते हो ये भी पता हैं मैं तुम्हें हर रोज मेरा पीछा करते देखती थी लेक़िन अभी मेरा ब्रेकअप हुआ हैं औऱ मैं प्रेम में नहीं पड़ सकती हूं अगर मेरी वज़ह से तुम्हारा दिल दुखा तो माफ़ करना औऱ हां हम अच्छे दोस्त रह सकते हैं" इतनी सारी बातें स्वाति जी एक सांस में कह देती हैं।

" अरे नहीं बुरा नहीं लगा हां बिल्कुल बन सकते हैं दोस्त अच्छे " थोड़े ख़ुश थोड़े दुखी अंदाज़ में गज्जू कहते हैं।

तबतक स्वाति की मम्मी भी आ जाती हैं,"अरे गज्जू बेटा तू समान लेके आ गया "

" हां आंटी रख दिया हैं अब निकल रहा हूं " इतना कह गज्जू भईया सोचते सोचते घर चले जाते हैं।

अगले ही दिन सुबह दोनों फ़िर नुक्कड़ पर मिलते हैं इस बार भी स्वाति आके कहती हैं " गज्जू कॉलेज छोड़ दोगे प्लीज एग्जाम हैं औऱ रिक्शा का भरोसा नहीं यार" पहली बार गजेंद्र को गज्जू बोली और इतना कहते ही गज्जू तैयार हो जाते हैं और दोनों लोग बाइक पर बरेली के सड़को पर निकल पड़ते हैं।

आधे रास्ते पहुंचे ही होते हैं तभी स्वाति कहती हैं की 

" गज्जू तूम मुझें रोज कॉलेज छोड़ दिया करोगे" इतना सुनते गज्जू भईया के ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता।

 " अरे बिल्कुल" बस इतना ही कहते हैं औऱ बरेली की सड़के फ़िर से फार्मूला 1 ट्रैक बन जाती हैं।

उस दिन से रोज गज्जू बाइक लेकर नुक्कड़ पर आ जाते थे औऱ वहीं से स्वाति को बिठा के ले जाया करते थे।

क़रीब 1 महीने ऐसे ही चलता रहा वो लोग रोज कहीं न कहीं घूमने जाते थे कई कई बार तो स्वाति ने कॉलेज भी बंक किया घूमने के चक्कर में। गज्जू ख़ुद से भी ज़्यादा स्वाति का ख़्याल रखता था उसे उसकी पसंद का

 आइसक्रीम औऱ खाने की की चीज़ें खिलाता था।

फिर एक दिन नुक्कड़ पर दोनों मिलते हैं और बाइक से कॉलेज के लिए निकलते हैं तो स्वाति कहती हैं "गज्जू एक बात कहें" 

" हां बिल्कुल कहो पूछो मत" गज्जू स्वाति से कहता हैं।

" मुझे लग रहा हैं न की मुझें भी तुमसे प्यार हो गया हैं"

इतना सुनते ही बाइक रोक देता गज्जू।

" हां यार तुम इतना ख़्याल रखते हो मेरा तुम हमेशा मेरी ही सोचते हो अपनी बातें नहीं कहते क़भी इतना प्यार मुझें शायद ही क़भी मिला हो" स्वाति गज्जू की आंखों को देखते हुए बोलती हैं।

"अरे तो प्यार करती हो तो कहती क्यों नहीं काहे डरती हो"

गज्जू स्वाति से कहता हैं।

"यार मुझें डर लगता हैं की हम अगर हां कर दिए तो तुम बदल जाओगे और मुझे छोड़ के चले जाओगे" स्वाति गज्जू के हाथ पर हाथ रख के कहती हैं।

" अरे पागल तुम मुझसे प्यार करो या न करो मैं तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जा रहा" गज्जू स्वाति के हाथ को पकड़ते हुए बोला। फ़िर दोनों कुछ नहीं बोले कॉलेज के लिए निकल लिए उसके बाद 6 महीने तक ऐसे ही चलता रहा औऱ दोनों लोगो एक दूसरे को बेहद प्यार करने लगे फ़िर एक दिन स्वाति ने रात में गज्जू को कॉल किया औऱ कहा "नुक्कड़ पर आओ अभी"

हां बोलकर बिना कुछ पूछे गज्जू नुक्कड़ पर पहुंच गया और दोनों लोग ने चाय का ऑर्डर दिया फ़िर चाय पीते पीते ही स्वाति बोली "अब हमें रिलेशनशिप में आ जाना चाहिए"

ये सुनकर गज्जू बड़ा खुश हो जाता हैं। फ़िर क्या उस दिन से दोनों की फ़ोन पर रात रात भर बात होती सुबह भी दोनों दिनभर साथ ही रहते थे,औऱ अक्सर रात में नुक्कड़ पर मिलते थे,मतलब सारा का सारा वक्त वो दोनों एक दूसरे को देने लगे थे।

प्यार में कठनाइयों का दौर भी आता हैं औऱ वो उस दिन आया जिस दिन गज्जू छत की सीढ़ियों पे उल्टा लटके कान पर फ़ोन लगाए बात कर रहा औऱ उसके पिताजी आ जाते हैं औऱ कहते हैं की " बेटा तेरा रिश्ता तय किया हैं कल चलकर लड़की देख ले" इतना सुनते ही वो हड़बड़ा के उठता ही हैं की उसका पैर फिसल जाता हैं अपने तो अपने साथ में पिताजी को लिए धड़धड़ा के नीचे आ जाता हैं।

वो तो भला उसे औऱ पिताजी को कम चोट आती हैं वरना पिताजी गज्जू को दर्द देते।

इतने में गज्जू की मां दौडते हुए आती हैं औऱ पूछती हैं

"ये कैसी आवाज़ आयी जी सब ठीक ना"

"हां सब ठीक हैं तभी खड़े हैं वरना महराज आज अस्पताल का बिल तैयार ही किये थे" गज्जू के पिताजी उसे घूरते हुए बोलते हैं।

फ़िर सब सोने चले जाते हैं और गज्जू को याद आता हैं की मैं तो फोन पर बात कर रहा था,फ़ोन देखते हैं तो 10 मिस्ड कॉल औऱ 20 मैसेज।

तुरंत कॉल लगाते हैं औऱ स्वाति से थोड़ी देर पहले हुई घटना की व्याख्या करते हैं।

अब स्वाति सारी बात सुन हँसने लगती हैं औऱ इसपर गज्जू गुस्सा हो जाता हैं कहता हैं "यहां मरने से बचे हैं और तुम्हें हंसी आ रही अरे ये छोड़ो कल क्या होगा मैं लड़की देखने जा रहा"।

"तुम टेंशन न लो सो जाओ आराम से और हां मस्त तैयार होकर जाना मैं सुबह बताऊंगी क्या करना हैं" स्वाति फ़िर हंसते हुए बोली।

दोनों फ़िर सोने चले जातें औऱ सुबह उठते ही गज्जू के पापा औऱ मम्मी ऐसे प्यार से दखते हैं गज्जू को की जैसे गज्जू अभी पैदा हुआ हो। सब तैयार होकर घर से निकलते हैं औऱ रास्ते में ही गज्जू स्वाति को मैसेज करता हैं और मज़ाक में कहता हैं "घर से निकल दिए हैं जा रहें हैं नई खोजने तुम अपना देख लो"।

मैसेज तुरंत देख लेती हैं स्वाति औऱ कहती हैं "अपनी दोनों टांग सलामत चाहते हो या नहीं "

गज्जू मैसेज पढ़कर हंसने लगता हैं,वो लोग थोड़ी देर में पहुंच गए,

सब बैठकर बात रहें होते हैं चाय नाश्ता कर रहें होते हैं तभी लड़की आती हैं,गज्जू उसी को देख रहा होता हैं ध्यान से फ़िर वो दोनों अलग से मिलने छत पर चले जातें हैं तभी गज्जू बिना कुछ बोले स्वाति को वीडियो कॉल लगा देता हैं औऱ उस लड़की से कहता हैं की "मैं इससे प्यार करता हूं औऱ ये भी मुझे चाहती हैं वो तो मेरे पापा मुझें अचानक यहां ले आये"।

स्वाति भी उस लड़की से बात करने लगती हैं की " हां ये सच कह रहा" इतना सुनते ही वो लड़की गुस्से में चली जाती हैं।

स्वाति गज्जू से पूछती हैं "अरे कहाँ गयी वो"।

"मुझें क्या पता मेरी तो ख़ुद फटी हुई हैं कॉल रखो मैं बाद में करता हूं" इतना कह गज्जू कॉल रख उसके पीछे भागते हुए जाता हैं,वो कुछ कहता की लड़की ही पहले बोली "मुझें नहीं करनी शादी इससे" इतना सुनते सब सकपका जातें हैं,

" अरे क्यों क्या हो गया क्यों नहीं करनी" सब एक साथ पूछते हैं।

" अरे इसकी गर्लफ्रैंड हैं इसने वीडियो कॉल पर बात करायी मुझसे" इतना सुन सब मुझे देखने लगते हैं औऱ मैं उस लड़की को की बड़ी मुंहफट लड़की हैं यार अब क्या होगा।

जैसे तैसे बात करके वो वहां से निकल देते हैं रास्ते भर पापा औऱ मम्मी कुछ नहीं कहते हैं।

घर पहुंचते ही पापा पूछे "क़ौन लड़की हैं वो "

डरते डरते गज्जू ने कहा " वो सुरेश अंकल की बेटी पापा"

"लड़की तो अच्छी हैं मग़र एक शर्त हैं अब तेरी शादी तभी होगी जब तू कुछ करेगा ख़ुदसे" पापा ने गज्जू से कहा।

फ़िर क्या गज्जू ने ये बात स्वाति को तुरंत कॉल करके बताई और रात में मिलने को कहा नुक्कड़ पर मिलते हैं।

फ़िर रात को दोनों नुक्कड़ पर मिले चाय पी औऱ पापा के शर्त की बात बताई। स्वाति गज्जू के कंधे पर सर रख सब चुप चाप सुन रही थी सब मानो उसको सुकूं मिला हो किसी परेशानी के बाद।

"जानती हो स्वाति ये नुक्कड़ मेरे तुम्हारे लिए बहुत खास रहा हैं अगर ये न होता यहां तो शायद ही हम इतना क़रीब आ पाते मैंने तो इस नुक्कड़ का नाम प्यार रखा हैं " गज्जू ने कहा औऱ स्वाति के माथे को चुम लिया।

इसपर स्वाति बड़ी ही प्यारी बात कहती हैं गज्जू से

"अगर ये नुक्कड़ प्यार हैं तो आई नुक्कड़ यु"

ये सुन गज्जू हँसने लगता हैं।

फ़िर कुछ महीनों बाद गज्जू अपने मेहनत और अपने पापा की मदद से रेस्टूरेंट खोल लेता हैं और उस रेस्टोरेंट को मेहनत कर बरेली का सबसे फेमस रेस्टूरेंट बनाता हैं।

अभी तो गज्जू औऱ स्वाति की ज़िन्दगी में सबकुछ अच्छा चल रहा हैं बस ऐसे ही रहा तो दोनों अगले साल शादी कर लेंगे...

"इश्क़ की सच्ची बातें कभी भी अधूरी नहीं होती,

मांग कर देखो तो ज़रा तुम प्यार में क्या चीज पूरी नहीं होती।



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