पलायन
पलायन


पलायन- ना जाने यह शब्द कितनी बार सुना है, आपने भी सुना ही होगा। शब्दावली में पलायन का अर्थ ढूँढने जाएँ तो शायद "भागना" मिलेगा। यह कोशिश मैंने भी की, मैंने भी पलायन का अर्थ ढूँढना चाहा पर शब्दावली के अर्थ से मैं संतुष्ट नहीं हुआ। क्या पलायन का अर्थ केवल भागना है? मेरा जन्म वाराणसी में हुआ, शिक्षा गुरुग्राम में हुई, और जीवनी की तलाश मुझे बेंगलूरू ले आइ। देखा जाए तो जीवन भर मैंने पलायन ही किया। किंतु क्या ये भागना हुआ? क्या इसे भागना कह सकते हैं?
अक्सर लोग जीविका की तलाश में देश विदेश जातें हैं, अपने परिवार, अपने रिश्तों, अपना संसार पीछे छोड़ के। देखा जाए तो वो पलायन ही कर रहे हैं! एक बेहतर जीवन शैली की खोज में! लेकिन इसका अर्थ ये तो नहीं की वो भाग गए। घर की याद तो उन्हें आती ही होगी। याद में माँ के हाथो की बनी आचार की ख़ुशबू तो आती ही होगी। पर क्या करें साहब पेट के आगे सब बेबस हैं! पलायन तो उन्हें करना ही पड़ता है!
तो क्या पलायन का अर्थ भागना ही हुआ? क्या पलायन केवल भागने से ही संभोधिद करना उचित होगा?
समय तो बदल ही रहा है और साथ में शब्दों के अर्थ भी। अब देखिए ना आज राष्ट्रीयता का अर्थ 'बीफ़' ना खाना और 'भारत माता की जय' बोलने तक सीमित हो गया है! तो क्यूँ ना पलायन का अर्थ भी थोड़ा सा "मॉडिफ़ाई" कर दिया जाए! केवल भागने तक सीमित ना रह के इस शब्द के अर्थ को "हस्तांतरण" तक बढ़ा देना चाहिये। सम्भव है कि कुछ लोगों को आपत्ति हो। ऐसी अवस्था में "जीविका की तलाश में पलायन" को किसी और शब्द से सम्बोधित करना चाहिए!
"जीविकायन" या "अर्थोपार्जन" ऐसे की शब्द की खोज करनी चाहिए जो कि ठीक प्रकार से ऐसे अवस्था को सम्बोधित कर सके। "मॉडिफ़िकेशन" का ज़माना है साहब। नाम, अर्थ, सभ्यता, शिक्षा सब तो मॉडिफ़ाई हो रहा है। फिर ये 'पलायन' क्या चीज़ है!