पीड़ा
पीड़ा
लावण्या आज बेबस लग रही है। इधर से उधर बस भाग रही है, और बार बार घड़ी की ओर देख रही है। फिर एक आवाज आई "क्या हुआ बेटा? तुम ऐसे घूम क्यों रही हो?"
लावण्या ने जवाब दिया "क्या पापा आपको पता नहीं है आज दशवीं की रिजल्ट आने वाली है? आपको कुछ याद नहीं रहता।"
पापा ने बोला "मुझे याद है, पर तुम ऐसे अगर पागलों की तरह घूमते रहोगी तो रिजल्ट में कुछ बदलाव नहीं आने वाला, तू ने जो भी लिखा होगा उसी हिसाब से मार्क आएगा।"
लावण्या - हाँ पर.....
पापा - "क्या पर कुछ मार्क काम आ भी गया तो क्या होगा।"
इतने में अंदर से आवाज आई "ऐसे कैसे कम मार्क आयेंगे पढ़ाई तो ठीक तरह से की थी ना फिर कम क्यों? अगर 95% से कम मार्क आए तो देख लेना।"
लावण्या - (सहमी हुई) हाँ...हांँ... माँ , 95% से कम नहीं आएगा।
इतने में वो मोबाइल लाकर रिजल्ट देखने लगी। उसे 96% मिले थे। वो खुश थी बहुत ही ज्यादा। माँ की कही हुई परसेंटेज से ज्यादा आए हैं तो वो भी बहुत खुश थी।
हमारे यहाँ सालों से एक प्रथा चलती आती है मानों किसका भी रिजल्ट आया हो रिश्तेदार की फ़ोन आना शुरू हो जाता है। जो रिश्तेदार हालचाल पूछने के लिए एक बार भी कॉल नहीं करते हैं रिजल्ट के दिन बार बार कॉल करके परेशान कर देते हैं। यहाँ भी ऐसा ही हुआ रिश्तेदारों की कॉल आना शुरू हो गया। लावण्या की माँ बड़े ही गर्व से सबको कह रहे थे "मेरी बेटी को पूरी 96% आए हैं, इसके बाद मेरी बेटी science लेकर पढ़ाई करेगी और उसके बाद मेडिकल की पढ़ाई करेगी डॉक्टर बनेगी देख लेना तुम।"
इतने में लावण्या की पापा आकर बोले "अरे! और कितनी देर बातें करते रहोगी कुछ मिठाई भी तो लाओ मुंह मीठा करवाओ।" लावण्या मिठाई का डिब्बा लेकर पहले ही हाजिर हो गई और सबका मुंह मीठा की। पापा बहुत खुश थे तो उन्होंने सोचा क्यों न आज बाहर लंच पे जाएं।
बाहर जाने की बात सुन कर लावण्या उछल पड़ी क्योंकि पिछले 3 महीनों से वो बस परीक्षा की तैयारी कर रही थी घर से बाहर कदम तक नहीं रखी थी।
सब लोग तैयार हो के खाने के लिए निकले खाना खाया, बहुत घूमे , देर सारे मस्ती किए फिर शाम को घर लौटे।
लावण्या की माँ के मन में बेटी की आगे की पढ़ाई को लेकर बहुत कुछ चल रहे थे। वो इस बारे में लावण्या के पापा को बताई, वो चाहती थी आगे की पढ़ाई के लिए लावण्या को घर से दूर भेज देंगे। लेकिन लावण्या के पापा यह बिल्कुल मानने के लिए तैयार नहीं थे । यूँ इतने से उमर में घर से दूर हॉस्टल में रहना उन्हें सही नहीं लग रहा था। पर यह सब वो कहाँ सुनने वाली उनकी एक ही जिद्द बेटी अपने आगे की पढ़ाई घर से दूर की कॉलेज में करेगी।
कुछ दिन बीत गए। पापा ने बेटी को पास बुलाकर अपने आगे पढ़ाई के बारे में पूछा कि तुम क्या पढ़ना चाहती हो क्या बनना चाहती हो। लावण्या ने बोला - "मैं arts stream लेकर पढ़ाई करूँगी और उसके बाद BA,MA और पढ़ाई करूँगी एक lecturer बनूँगी, बच्चों को पढ़ाऊँगी ।"
पापा - अरे! बस बस तुमने पहले से ही सब कुछ सोच कर रखा है। अच्छा है, खूब पढ़ो और अपनी सपना पूरी करो।
लावण्या यह सुन के माँ के पास गई और बोली - "माँ ...माँ ... मैंने मेरे future के बारे में सबकुछ सोच लिया इसके बाद क्या पढ़ूँगी, क्या करूँगी और पापा ने भी मेरी तारीफ की।"
माँ - "ओहो! मेरी बेटी अभी से डॉक्टर बनने की तैयारी में लग चुकी है। शाबाश! मुझे यही उम्मीद थी।"
लावण्या - पर माँ मुझे डॉक्टर नहीं बनना मुझे lecturer बनना है, बच्चों को पढ़ाऊंगी और .....
माँ - बस! बिल्कुल नहीं तुम्हें डॉक्टर बनना है। (यह कहकर बाहर चली आई) और आप आपसे मैंने कहा था ना ये क्या पढ़ेगी क्या नहीं। दोनों बाप बेटी बस अपनी मनमानी करते हो।
पापा - लेकिन वो lecturer बनना चाहती है इसमें बुराई क्या है। और.....
माँ - और कुछ नहीं वो इस साल हॉस्टल जायेगी मतलब जायेगी । अब इसके बारे में कोई और बात नहीं करेगा।
पापा - सुनो तो सही.....
लावण्या - (रोते रोते) मुझे हॉस्टल नहीं जाना है पापा आप समझाओ न माँ को।
(अंदर से आवाज आई) मैंने जो बोला वही होगा। चलो आके चुप चाप खाना खाओ।
लावण्या - (रोते रोते) नहीं खाना है मुझे खाना। और दौड़कर अपने रूम में चली गई।
मां की तो यही जिद्द थी बेटी उनकी इच्छा मुताबिक पढ़ाई करेगी। पर उस बच्ची की भी कुछ थी बनने की लगता अब वो अधूरी रह जाएगी।
दिन भर दिन गुजरते रहे। माँ ने science कॉलेज में एडमिशन भी करवा दिया। ना चाहते हुए भी लावण्या को हॉस्टल जाना पड़ रहा है। अपने घर से, दोस्तों से सहर से और सबसे एहम अपने सपनों से कोसो दूर जा रही है।
अब वो कुछ और कर भी नहीं सकती थी । अपने माँ की खुशी के लिए अपने सपनों को भूल गई। और खुशी खुशी हॉस्टल चली गई। वहाँ पे नए दोस्त, नया सहर सब कुछ नया। धीरे धीरे सबके साथ घुलमिल रही थी।
हॉस्टल में दोस्तों के साथ अपने आपको खुश रखा करती थी। घर जैसा माहौल बना रहता था । बीच बीच में माँ , पापा को कॉल करके बात करती थी और कभी कभी वो बेटी को मिलने भी आते थे। माँ जब भी कॉल करती थी सबसे पहले पढ़ाई के बारे में पूछा करती थी। इस बार भी साफ साफ बोल दिया था मां ने 90% से ज्यादा मार्क्स तो आने ही चाहिए। लावण्या एक होशियार लड़की है सब जानती है पर यूंँ हमेशा उसके ऊपर पढ़ाई का दवाब डालना भी तो सही नहीं था। देखते ही देखते फाइनल एक्जाम नजदीक आ रहा था। अब दो महीने बचे थे एक्जाम को। लावण्या ने सोचा बहुत दिन हो गए घर नहीं गई एक हफ्ता के लिए चली जाती हूँ फिर बाद में नहीं जा पाऊँगी।
वो अपने माँ पापा को सरप्राइज देना चाहती इस लिए बिना कुछ कहे सीधा अगले दिन घर पहुँच गई। दरवाजे पर दस्तक दी तो पापा ने दरवाजा खोला। पापा बेटी एक दूसरे को देख कर उछल पड़े। बड़े खुश लग रहे थे। पापा ने आवाज दिया - सुनते हो, देखो कौन आई है।
अपने पल्लू में हाथ पोंछते पोंछते रसोड़े से बाहर आई।
लावण्या को देख कर बोल पड़ी - "दो महीने बाद एक्जाम है, अभी घर क्यों चली आई। वहाँ तुझे पढ़ाई करने भेजा था। हमसे बिना पूछे तू क्यों चली आई।"
लावण्या ने सोचा था मां उसे देख कर बड़ी खुश होगी। उसे लगा था जाते ही वो मैं कैसी हूँ, पढ़ाई कैसी चल रही है यह सब पुछोगी। पर यहाँ तो उसकी फिकर है ही नहीं फिकर है तो एक्जाम की अच्छे मार्क्स की।
लावण्या कुछ नहीं बोली शाम को वापस हॉस्टल चली गई।
घर पर लावण्या की पापा ने उसकी मां को बैठा कर समझाया कि बच्चों पर ऐसे पढ़ाई का दबाव नहीं डालना चाहिए। इससे उनका मानसिक रूप से कमज़ोर हो जाते हैं।
फिर उसकी माँ बोली -"आपको भी लगता है मैं एक बुरी माँ हूँ? मुझे भी अच्छा नहीं लगा इतने दिनों बाद अपनी बेटी से मिल कर भी नहीं मिल पाई। आपको पता है मैं क्यों हमेशा पढ़ाई को लेकर सख्ती से पेश आती हूँ ? मेरा भी सपना था मैं भी बहुत पढ़ाई करूँ डॉक्टर बनूँ। लेकिन मेरे माता पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो मुझे पढ़ते। इस लिए तो कम उम्र में शादी करवा दिया। अब मैं तो नहीं चाहूँगी मेरी बेटी भी मेरी तरह बने। उसे डॉक्टर बना हुआ देख कर मैं खुद को उसके ढूँढूँगी, समझ लूंगी कि यह मैं हूँ। अब आप ही बताइए क्या ऐसा सपना देखना गलत है ?"
पापा - "नहीं! कुछ गलत नहीं है पर ऐसे डाँट कर दबाव डालकर कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। अगर तुम उसे प्यार से बात करोगी तो वो समझेगी वरना तुम्हारे लिए उसके मन में नफरत बढ़ जायेगा।"
माँ - हाँ, आप सही बोल रहे हो। तो फिर हम कल चलेंगे उसे लेने को 2 - 3 दिन यहाँ रहेगी तो अच्छा लगेगा।
पापा - अच्छा ठीक है मैं कॉल करके बोल देता हूँ फिर।
माँ - नहीं नहीं हम कल सुबह सुबह पहुँच जायेंगे और उसे surprise देंगे।
अगले दिन सुबह सुबह लावण्या के हॉस्टल में जाकर दोनों पहुँचे। दूर से भीड़ दिखाई दे रही थी। भीड़ हटा कर देखा तो लावण्या नीचे लेटी पड़ी है। माँ दौड़ के उसे अपने गोद में उठा ली और जोर जोर से पुकारने लगी लेकिन वो नहीं उठ रही थी। सब रोए जा रहे थे। हॉस्टल की वॉर्डन आकर बोली - हमें इसकी लाश फैन से लटकती हुई मिली।
लावण्या की माँ बस अपनी बेटी को अपने गोद में लिए उसकी मासूम चेहरा को देख रही थी और बार बार उसे पूछ रही थी क्यों किया तूने ऐसा। और उसके पापा स्तब्ध खड़े थे। ना उनके मुंह से बोलने के लिए कुछ था और न ही वो कुछ सुनने को परिस्थिति में थे। बस दूर से अपनी बेटी को देख रह थे। उनके आँखों के सामने जैसे वो सारे पल एक बार फिर से दौरा रही थी जिनमें वो अपनी बेटी के साथ थे।
कुछ देर बाद लावण्या की अंतिम यात्रा निकली। सारी क्रियाकर्म खतम होने के बाद उसकी माँ और पापा उसी हॉस्टल की कमरे में गए जहाँ उनकी बेटी रह रही थी।
उसकी माँ उसकी कपड़े को अपने सीने में लगाकर रो रही थी। और पापा अपनी बेटी की सारी चीज़ें समेट रहे थे। टेबल पर एक चिट्ठी पड़ी हुई थी। पापा ने उसे उठाकर पढ़ने लगे। वो आखरी चिट्ठी लावण्या ने लिखा था अपने माँ पापा के लिए। चिट्ठी को लेकर वो लावण्या के माँ के पास बैठे और पढ़ने लगे। उस चिट्ठी में लिखा था -"मुझे माफ कर देना, मैं नहीं जानती ये जो मैं करने जा रही हूँ सही है या गलत। लेकिन मैं थक चुकी हूँ ऐसे डर डर के पढ़ने में। बचपन से ले के आज तक बस यही आपने मेरे दिमाग में डाला है कि 90% से ज्यादा मार्क्स लाना ही है। मैं पूछती हूँ क्या सिर्फ वो बच्चे समझदार माने जायेंगे जिनके 90% से ज्यादा मार्क आते हैं? मुझे lecturer बनना था पर आपके जिद्द के सामने मैंने अपने सपनों का कुरबान कर दिया। आप लोगों ने कभी यह जानने को चाहा ही नहीं मैं क्या चाहती हूँ। बस आपने सोच लिया मेरी बेटी 95% लाएगी और आकर मुझे बोल दिया 95% तुझे लाना ही है। और जो मेरे दिमाग में प्रेशर बढ़ता रहा उसके बारे में क्या? हाँ, मानती हूँ हर माँ बाप चाहते हैं उनके बच्चे खूब पढ़े और कुछ बन जाए। पर यह जो exam की डर से अपने मुझे घर आने को भी माना कर दिया उसका क्या? आपको भी तो समझना चाहिए जिंदगी में सिर्फ पढ़ाई नहीं होती उसके साथ और भी बहुत कुछ होता है। पर आप तो बस यही चाहेंगे हमारी बेटी बस दिन भर किताबें पकड़ के बैठी रहे तो सही है अगर दोस्तों के साथ घूमने गई तो बेटी हाथ से निकल रही है। किसी से ज्यादा बात न करना, अपने हिसाब से हॉस्टल से घर नहीं आ पाना, और इतने परसेंटेज आने ही चाहिए यही बात हमेशा दिमाग में डालकर चलना मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकती। इस लिए मैं जा रही हूँ। I'm sorry माँ पापा। मुझे माफ कर देना।"
आपकी लावण्या।
चिट्ठी पढ़ने के बाद दोनों बहुत रोए । और बस यही बोले जा रहे थे "काश हमने उसके बारे में सोचा होता तो यह दिन देखने नहीं मिलता।" हमने उस पर इतनी जोर क्यों डाला? क्यों ऐसे सख्ती से पेश आए ?
दोनों एक दूसरे को बस यही सब बोलकर कोसते रहे।
बस यही थी कहानी। इससे हमें यह सीखने को मिला के आप अपने बच्चों के साथ सख्ती से पेश आओ कोई बात नहीं, उसे क्या करना है अपने जीवन इसके बारे में सलाह दो पर उनकी क्या मर्जी है, वो क्या बनना चाहते हैं यह भी जानना जरूरी है। पढ़ाई को लेकर ज्यादा जोर नहीं डालना चाहिए। वो वही ग्रहण कर सकेंगे जितना उनकी दिमाग ग्रहण करने को सक्षम होगा जबरदस्ती ज्यादा देर तक पढ़ोगे तो भी वो याद नहीं रहेगा।
