Afzal Hussain

Tragedy Others

5.0  

Afzal Hussain

Tragedy Others

फूलसिंह की बेटी

फूलसिंह की बेटी

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भीड़ को छांटते हुए हम आगे बढ़े तो सामने का दृश्य देखकर भौंचक रह गए..पेड़ पर खून से लिखा था “बेटी मने माफ़ कर दिए..”

जो देख रहा था उसपर यकीन नहीं हो पा रहा।  अभी कल की ही तो बात थी ऑफिस में अफरा तफरी मची हुई थी, आनंद सर ने हाथ जोड़ लिए थे यहां आने के नाम से। 

“सर ये रहे मेरे दोनों हाथ और ये मैंने जोड़ लिया आपके आगे.. मैं उस तांत्रिक को नोटिस देने नहीं जाऊंगा

“क्या भसड़ है यार..चल दीपक ऐसा कर तू चला जा” मैनेजर साहब चिड़चिड़ा रहे थे। 


“सर क्यों ले रहे हो मेरी....एक बालक मेरा चौथी में है दूसरा पहली में तीसरा पेट में ..सबका इकलौता बाप हूं और आप मुझे उस भूतिए के पास भेज रहे हो.. मैं ना जाने का..सब कहते हैं अघोरी है वो शमशान में जाकर चिता से मांस निकाल के खाता है आधी रात में.. साला मंतर मुंतर मार देगा बीवी विधवा हो जाएगी मेरी। 


“अरे एक नोटिस देके आना है, कोई बम लगाने नहीं भेज रहा जो इतना डर रहे हो। 

“सर लादेन कि कसम खा के बोल रहा हूं एक बार को बम लगाने चला जाऊंगा लेकिन उस अघोड़ी को नोटिस देने नहीं जाऊँगा, गुप्ता गया था पिछली बार अगले दिन पहले दस्त लगे उसे हफ्ते भर बाद बैंक आ रहा था तो पीछे से सांड चढ़ गया उसपर तबसे इजिप्ट की मम्मी जैसा पड़ा है बेड पे। 

“यार तो किसे भेजूं..”

“सर एक काम करो, कुलदीप को भेज दो..उसे अभी इस मैटर का घंटा भी नहीं पता..दे आएगा नोटिस। 


“कुलदीप” मैनेजर साहब ने हमको आवाज़ लगाई और हम सरपट उनके पास भागे। 

“जी सर जी..आदेश कीजिए..” हम दोनों हाथ बांधे खड़े हो गए सामने

“एक काम कर घमौरी चला जा..चौधरी फूल सिंह है वहां..उसे ये नोटिस दे आ

“ठीक है सर जैसा आपका आदेश, लेकिन अगर फूल सिंह जी नहीं मिले तो उनके परिवार में किसी और को दे दें..जैसे उनका बेटा बीवी बहू कोई। 

“अरे बुड्ढा एकला है..कोई नहीं है उसका..उसी के हाथ में दियो


 नए नए लगे थे बैंक में पहला काम मिला तो बड़े उत्साहित होकर हम चल दिए घमौरी गाँव में, जब पहुंचे तो बड़ा विचित्र लगा..जिससे भी फूल सिंह का पता पूछते तो कोई कहता कौन वो पगलेट फूला..तो कोई पूछता कौन तांत्रिक फूला.. तो कोई बोलता कौन वो अघोरी .. पता बताने से पहले हर कोई एक डरावनी कहानी सुनाता जैसे वो भूतों से बात करता है, जादू टोना करता है फिर सचेत करता मत जा, मन में आया छोड़ साला वापस चलते हैं कौन उलझे भूत प्रेत से मगर पहला कोई काम बोला था मैनेजर तो बिना किए लौटने की हिम्मत नहीं हुई।


फूल सिंह को ढूंढते ढूंढते बताए निशान पर पहुंचा तो देखा एक विशाल महुआ के पेड़ के नीचे तकरीबन साठ पैंसठ साल का एक बूढ़ा, एकदम मैले कुर्ते बड़ी दाढ़ी, धूल और पसीने से चिपके काले सफेद बाल, पैंतालीस डिग्री के कोण में झुका हुआ धोती के ऊपर से अपने नितम्बों को खुजाते हुए पेड़ पर चिपके किसी पर्चे को पढ़ने की कोशिश कर रहा है।


“फि…स्स..के लिखा है…दिखता भी कोन्या..चस्मा कित गया मेरा..” इससे पहले के मैं आवाज़ देता, उसने दाएं बाएं देखा और उसकी नजर मुझपर पड़ गई।

“ओह..के नाम तेरा.. एनक वाले भाई सुनिए” उसे देखते ही गाँव वालों की सुनाई सारी कहानियां फिल्म बन के मेरे दिमाग में चलने लगी।

छाती पर हाथ रखकर गर्दन को एक सौ अस्सी डिग्री में उत्तर से दक्षिण की तरफ हिलाकर कंपकंपाते हुए हमने पूछा.. “क्क.. कौन हम?..”

“ ना..तेरे भूत ने न्योत रहा हूं..” ए साला बुढ़वा तो अभी से भूत प्रेत करने लग गया, एड़ियां कह रही थी भाग चल पर हमने दिल की सुनी क्यूंकि वो खुद इतनी ज़ोर से धड़क रहा था के किसी और की सुनने ही नहीं दे रहा था।

“सॉरी ताऊ जी राम राम..” पिछले तीन हफ्ते से हम हरियाणा में हैं जिसमें के कू के अलावा हम केवल इतना सीख पाए के हर बुढ़वा बुढ़िया लोग को ताऊ ताई बोलना होता है।


“सब राम राम ही है भाई.. सुन...चार आँख ले रा है, अगर पढ़ना आता हो तो ज़रा पढ़के बताईए यो के नोटिस चिपका गए बैंक याले।” हम सोचे भाई बैंक वाले तो हम हैं हमसे पहले कौन नोटिस चिपका गया, डरते हुए आगे बढ़े और पर्चा पढ़के सुनाया।

“ताऊ जी इस पर लिखा है भगंदर व फिसर का सर्तिया इलाज, पुराने से पुराना खूनी बवासीर एक टीके में जड़ से खत्म, मर्दाना कमजोरी से पीड़ित पुरुष नवज दिखाएं मात्र इक्कीस रुपए में..मिलें वैध खतरुल जहान से, पुराने बस अड्डे के पीछे, लोहे वाले पुल के नीचे, जिलाधिकारी कार्यालय घमौरी के सामने।


“यो तो किसी हस्पताल का पर्चा दिखे” पेशानी पर प्रश्नचिन्ह लिए ताऊ जी ने पूछा।

“जी ताऊ जी, किसी हकीम वैध का पर्चा है”

“ फेर शकल के देखे है, फाड़ पर्चे को, मेरी सासू के ने धड़कन बढ़ा दी..”

“कोई कर्जा लिए हुए हैं क्या बैंक से ताऊ जी, डिफॉल्टर हो गए हैं क्या जो इतना डर रहे हैं “ पर्चा फाड़ते हुए मैंने पूछा।

“लिया भी हो तो क्यों बताऊं तने, तू चुका देगा मेरा कर्जा..” दाँत पीसते हुए उन्होंने कड़क के पूछा हमसे।

“नहीं ताऊ जी, बस ऐसे ही पूछे…चलते हैं अब हम” उनका हाव भाव देखकर हमारी हिम्मत ही नहीं हो पाई नोटिस देने की।


“चला जाइए मेरे यार..तू भी कती हवाई जहाज पे सवार हो रहा है ..नू तो बता..किसके आ रहा है तू..गाम का तो ना है..” अचानक उनका तेवर दोस्ताना हो गया।

“ताऊ जी हम गाँव दीनापुर जिला मोतिहारी बिहार से हैं..”

“फेर..यहां के ले रहा है”

“कुछ..काम के सिलसिले में आए थे”

“अच्छा काम ढूंढे है.. नू बता पलस टू कर रखा है तूने”

“ताऊ हम मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किए हैं देवीलाल इंजीरिंग कालेज मथुरा से..”

“ए बेटे तभी तो नौकरी ना मिली, पलस टू कर लिया होता तो फौज में लग जाता, बेटा नौकरियाँ में नंबर वन नौकरी है फौज की..बाकी सब उसके नीचे नीचे ही हैं..हमारे गाम में लीलू का छोरा कलुआ लाग रहा है फ़ौज में..भाई साल में दो बार घर आजा, तनखा भी मोटी ले रा है..और के चाहिए..देख खूब ज़ोर का मकान ठोका है दो माले का..बुड्ढे बुढ़िया खाट तोड़ते रह्वें हैं दिन भर..बहू लगी रह सेवा में.. धे चाय धे पानी धे रोटी ..कती नाक तक झिका रखा है बुड्ढे बुढ़िया को।”


“आपका अपना कोई नहीं है क्या ताऊ जी” सब जानते हुए भी हम अनजान बन के पूछे।

“क्यों ना है एक बेटी है म्हारी..वो देख सामने खड़ी तेरे, मेरे बुढ़ापे का सहारा है यो..जब भी मरूंगा इसकी गोद में सर रखकर मरूंगा।”

हम इधर उधर देखे लेकिन हमको कोई नहीं दिखा..हम समझ गए बुढ़वा पागल है..भूत प्रेत से बात करता है, हमको तो अपने आस पास किसी प्रेत आत्मा के होने का अहसास तक होने लगा..तभी फूल सिंह चहकते हुए बोला..


“वो देख संतरा आ रही, यो गाम के उन दो तीन लोगों में से है जो मेरे से बात करे है...बस इनसे हँस बोल लूं।” हम मन में सोचे हां भूत प्रेत से फुर्सत मिले तब इंसान से बात करेंगे ना आप..हम देखे संतरा की तरफ।

“अरे संतरा ताई..ई तो बैंक में आयी थी पैसा निकलवाने।”


“और सुना दे संतरा..के ले री है…कित ताती ताती उड़ी जा री है… मेरे पास बैठ के सुस्ता ले ने..नए घड़े का कती ठंडा पानी लेरा हूं तेरी सेवा में..पीके देख आत्मा तृप्त ना हो जा तो बोलियो..”

“मेरे पास टेम कोन्या बुड्ढे.. ऊपले ठापे थे.. सूख गए होंगे…जाके जल्दी से उसने बटेड में रखना है..बारिश पड़ गई तो गोबर गोबर होजगा”

“इधर हम गोबर हो रहे तेरे प्रेम में, हमने कौन थापेगा..सुन तो ले उड़न तस्तरी.. मैं यो के सुन रहा हूं”

“जल्दी बोल निपुते के सुन ली तने..”

गाम में हल्ला है के हरी सिंह के पोते के ब्याह में कती धुआँ ठा दिया संतरा ने..वेदपाल कहवे था इतनी ज़ोर की नाची के सपना चौधरी फेल कर दी तने..हमने कौन से तेरे खेत के टमाटर तोड़ लिए..हमें भी दिखा दे सपना चौधरी वाले ठुमके..जी सा आ जागा कसम से”

“मान जा बुड्ढे..ना मुंह में दाँत है ना पेट में आंत और सपने अखरोट चबान के ले रहा है, चिता पर लेटने का बखत आ रहा है..पर हरकतें ना सुधर रही तेरी..हरी भजन कर भाभी छेड़न की उमर ना बची अब। छोरे.. तू यहां के ले रहा है” संतरा ताई हमको पहचान गई और हम झट ताई की तरफ लपके अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए।


“चलिए ताई हम आपको बताते हैं” मैं ताई को एक तरफ ले गया और पूछा..

“माफ़ कीजिएगा ताई जी मगर एक बात बताइए ये फूल सिंह पागल पुगल है क्या”

“पागल ना है यो, इस फूल सिंह की कभी चौधराहट चले थी बेटे पूरे जिले में..पर जब किसान की कमर बूढ़ी और औलाद कमीना निकल जा तो उसका यो ही हाल होया करे है”

“औलाद, हमको कुछ समझ नहीं आ रहा.. बैंक वाले बोले इनका कोई नहीं..ये बोले इनकी एक बेटी है..किसी की तरफ इशारा भी कर रहे थे मगर हमको कोई नहीं दिखा”

“कून सी बेटी, इसके कोई बेटी ना है, तीन छोरे हैं बस..तीनों नालायक”

“क्या बोल रही हैं आप..वो बोले एक बेटी के अलावा कोई नहीं उनका”

“बेटा मैं लेट हो रही हूं लंबी कहानी है फिर बताऊंगी” हमसे नज़र चुराते हुए हमारे सवाल से बचकर वो भागना चाह रही थी, तो हम सीधा मुद्दे पर आए..

“आंटी हमको ये नोटिस देना है फूल सिंह को, कैसे दें हमको तो अब और डर लग रहा है”

“ डरण की के बात है, उसने ही देदे..कुछ ना कहेगा...मैं जा रही अब.. उपले सूख गए होंगे मेरे” हड़बड़ाते हुए हमको जवाब दिया और भाग निकली।


हम डरते हुए वापस फूल सिंह ताऊ के पास गए और हकलाते हुए बोले..

“ताऊ जी..वो… हमको बैंक वालों ने भेजा है आपको नोटिस देने के लिए”

“अच्छा तू बैंक वाला है के, फेर बता क्यूं ना रहा था.. मैं के तने खा जाता.. सुन.. मैं चस्मा कहीं रखके भूल गया, तू ही पढ़के बता दे के लिखरा है नोटिस में” नोटिस वाली बात सुनते ही उनका चेहरा पीला पड़ गया और आवाज़ लड़खड़ाने लगी..


हमने नोटिस खोला और पढ़कर बताने लगे..

“फूल सिंह पुत्र श्री घसीटा राम को सूचित किया जाता है के उनके द्वारा बैंक से लिए गए ऋण की अदायगी ना करने के परिणामस्वरूप उनकी गिरवी रखी दो सौ गज़ ज़मीन की दिनांक 10.12.2019 को नीलामी कर दी जाएगी..”

“बेटा आज कोन सी तारीख है”

“नौ.. न..नौ दिसंबर है ताऊ जी”

“मतबल कल तुम नीलाम कर दोगे मेरी ज़मीन को”

“इस..इसमें तो ऐसा ही लिखा है ताऊ जी”

“यो ज़मीन नीलाम हो जाएगी तो मेरा बेटी कहां रहेगी..बता ना..कित रहेगी मेरी बेटी.. उसके लिए सपेसल मैंने ये ज़मीन खरीदी थी..” बोलते बोलते वो आगे बढ़े और हमारा कॉलर पकड़ लिया और चिल्लाते हुए बोले .. “ मुंह में दही जमा ली के, बता ना मेरी बेटी कहां रहेगी ज़मीन तुम ले लोगे तो..तुम मार दोगे मेरे बेटी को..” मेरे पैर कांप रहे थे समझ नहीं आ रहा था क्या करूं…मन में आया बोल दूँ के वो तो भूतनी है कहीं भी रह लेगी...उन्होंने मेरा कॉलर छोड़ दिया घुटने के बल बैठ गए और हवा में हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगे।


“बेटी मने माफ़ कर दिए..तेरे खातर ज़मीन का एक टुकड़ा भी नहीं बचा पाया तेरा ये स्वार्थी बाप..माफ़ कर दिए बेटी मने..” बोलते बोलते वो अपने हथेली से सर को पीटने लगे..एक अजीब सी पत्तों में सरसराहट शुरू हो गई..पेड़ की डालियां अजब तरीके से हिलने लगीं..लगा आ गई भूतनी..मेरे रोंगटे खड़े हो गए..मैंने नोटिस फेंका और बस गिरता पड़ता भागा वहां से।


अगले दिन दो पुलिस के सिपाही पटवारी अमीन और बैंक के मैनेजर के साथ फूल सिंह की ज़मीन नीलाम करने हम पहुंचे, गाँव में गए तो देखा महुआ के पेड़ के नीचे लोगों का जमावड़ा लगा है..पहले लगा नीलामी देखने लोग इकट्ठा हुए हैं मगर सबके चेहरे कुछ और बयान कर रहे थे..भीड़ को छांटते हुए आगे बढ़ा तो देखा..महुआ से सटा हुआ फूल सिंह निष्प्राण बैठा है..पेड़ पर खून से लिखा था “बेटी मने माफ़ दिए..” जब लाश के पास गया तो फूल सिंह की घायल उंगली बता रही थी के किस शिद्दत से फूल सिंह ने अपनी उंगलियों को पेड़ पर रगड़ रगड़ के उस रहस्यमय बेटी से माफ़ी मांगी थी..उसका कुर्ता अब भी आंसूओं से भीगा हुआ था..आँखें रो रो कर सूज गई थी..मगर सवाल था के वो बेटी है कौन...फूल सिंह की लाश को वहां से हटाया गया..जब लाश हटी तो मेरी नजर पेड़ के जड़ में रखी एक मटमेली कॉपी पर गई..सबसे नजर बचाकर मैंने वो कॉपी उठा ली..थोड़ा बगल में हट गया ..इधर नीलामी की प्रक्रिया शुरू हो गई थी..उधर मैंने कॉपी खोली तो उसमें एक तस्वीर मिली..जिसमें एक बांका नौजवान एक खूबसूरत महिला के साथ खड़ा था और साथ में तीन बेहद खूबसूरत लड़के थे..शायद ये परिवार था फूल सिंह का..उस तस्वीर में मुझे कोई बच्ची नहीं दिखी..मेरी जिज्ञासा अब चरम पर थी..या तो फूल सिंह पागल था या कोई भूतनी का चक्कर है...जानने के लिए पन्ने पल्टे तो कुछ पन्नों पर अध्पकी हिंदी में कुछ लिखा था..मैंने पढ़ने की कोशिश की..


पहले पन्ने पर लिखा था.. “फूल सिंह संग केलावती..साथ जन्म जन्म का..”

मैंने पन्ना पलटा तो अगले पन्ने पर पारिवारिक संतुष्टि की कामना करता एक साधारण व्यक्ति दिखा..

“तीन बेटे दे दिए तने अब बस एक बेटी और हो जाए तो परिवार पूरा हो जाएगा केला अपना..”


अगले पन्ने में फूल सिंह अपने बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंतित दिखा..

“केला मैं कहूं था मत ना भेज बालकों को शहर में पढ़ने..वहां की हवा ठीक ना है..पलस टू करके फौज में लग जाते बालक तो अनुशासन में भी रहते और देश की सेवा भी करते।”


मैंने अगला पन्ना पलटा तो बात गंभीर हो चली थी.. फूल सिंह गुस्से में था..

“तेरी ज़िद के आगे मैंने अपनी माँ समान धरती गिरवी रख दी केला..तूने कही थी बालक पढ़ जाएंगे तो खुद कमा के छुड़ा लेंगे धरती अपनी..बालक कमान लायक के हुए भूल गए हमें केला..उनके घर में ना माँ बाप के लिए जगह है ना उनके पास बात करने का टेम..हमसे भी ग़लती हुई केला हमने बालकों को ऊंची शिक्षा दे दी लेकिन ऊंचे संस्कार ना दिए.. गाँव घर माँ बाप बड़े बुजुर्ग की अहमियत और ज़रूरत ना समझा पाए..हम एक असफल माता पिता निकले केला।”


मुझे फूल सिंह की कहानी कुछ कुछ समझ आने लगी थी…बेटों की नमकहरामी का शिकार था ये, मगर मुझे बेटी के बारे में जानना था तो पढ़ना जारी रखा..इस बार केला से शिकायत करता दिखा फूल सिंह..

“फिर तू गलत साबित हो गई केला, तने कही थी सरकार वादा कर री है कर्जा माफ़ कर देगी...देख दस रपिए माफ़ किए हैं सरकार ने..इससे अपना के होगा..”

जिस फूल सिंह से मैं कुछ देर पहले तक डरता था, उसपर अब दया आने लगी थी..पर मुझे बेटी का रहस्य जानना था..अगला पन्ना पढ़कर मन धक से रह गया।


“केला आज अपना घर पशु और ज़मीन सब नीलाम हो गया..सबके जाने का इतना दुख ना है जितना तेरे जाने का है केला, मैंने कभी तेरे से कुछ ना कही..बस इस कापी में लिख देता ताकि तुझे दुख ना पहुंचे....मुझे एकला छोड़कर तने नहीं जाना चाहिए था केला..”

इतने सीधे आदमी को सब ना जाने क्या क्या बोलते थे..ये तो हालात का मारा था.. बस दो पन्ने बचे थे मगर मेरा जवाब नहीं मिला था मुझे.. मैंने उन्हें भी पलटा।


“केला एक बेटी के लिए हमने कितनी कोशिश करी कितने व्रत किए मन्नत मांगी पर कोई फायदा ना हुआ, जब मेरी उदासी तेरे से देखी ना गई तो तू मंदिर से मेरे लिए भेंट लेके आयी और बोली ये ले अपनी बेटी और मैंने छाती से लगा लिया तेरे भेंट को..तेरे जाने के बाद आज म्हारी बेटी ही मेरा सहारा है..उसी के साथ रहता हूं, रात दिन अपनी बेटी के गोद में लेटा रहता हूं..यो खूब सेवा करे हैं मेरी ..खूब बात करे है मुझसे..सारे दुख दर्द मैं इससे बांटा करूँ हूं..लोग पागल स्याना समझे हैं मने ..पर लोगों की चिंता में के अपनी बेटी से बात करना छोड़ दूँ..”


अन्तिम पन्ना बचा था उसे पलटते हुए पेट में अजब सी बेचैनी हो रही थी…पैर हाथ सब कांप रहे थे..चेहरा लाल सुर्ख़ हुए जा रहा था लगता था अभी चेहरे से आग निकलने लगेगी..पढ़ने से पहले मन जानने को विचलित था अंतिम पन्ने में आखिर क्या लिखा होगा..कांपते हाथों से आखिरी पन्ना मैंने पढ़ना शुरू किया..


“केला मैं तने कभी माफ़ नहीं करूँगा..तूने मेरी बेटी की ज़मीन भी लाख मना करने के बाद गिरवी रखवा दी..तेरे बेटों ने उसे भी वापस नहीं दिलवाया.. मैं जीते जी अपने बेटी को बेघर होता नहीं देख सकता.. मैं तुझे और तेरे बेटों को कभी माफ़ नहीं करूँगा केला..ना हमारी बेटी महुआ हमें कभी माफ़ करेगी..ज़मीन बिकते ही हमारी बेटी महुआ की हत्या कर दी जाएगी..उस काट डाला जाएगा।”


महुआ??..

मतलब ये पेड़..हैरत से मेरा रोम रोम सिहर गया..फूल सिंह जी की बेटी ये महुआ का पेड़ है..इससे बात करते थे..इसी से लिपट कर सारी रात रो रोकर माफ़ी मांगते मांगते स्वर्ग सिद्धार गए..मैंने सभी दृश्य को फिर से याद किया तो आभास हुआ वो रात दिन इस पेड़ से बात करते थे..इसी की तरफ तो इशारा करके उन्होंने बेटी कहा था और मैं अंधा कुछ और समझ रहा था…प्रकृति और मानव का ऐसा रिश्ता मैंने तो कहीं नहीं देखा...भावुक होकर मैंने गर्दन उठाई ..अनाथ हो चुकी महुआ के तरफ देखा तो मेरी आँखें आश्चर्य से फटी रह गई..महुआ के सारे पत्ते निढाल होकर मुरझा गए थे..वो मृतप्राय लग रही थी जैसे उसके प्राण भी निकल गए हों..अभी मैं इस विचित्र रिश्ते पर यकीन करने की कोशिश कर ही रहा था के चरचराहट की आवाज़ आने लगी लोग पेड़ से दूर भागने लगे और देखते देखते वो विशाल महुआ धड़ाम से ज़मीन पर गिर पड़ी।



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