Afzal Hussain

Drama Tragedy Inspirational

3.4  

Afzal Hussain

Drama Tragedy Inspirational

अंधेरे रिश्ते

अंधेरे रिश्ते

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तकरीबन रात के ग्यारह से ज्यादा बजते होंगे.. छत पर अपने खटिया पर लेटा एकटक उस मुस्टंडे बकरे को देखकर जीभ लप्लपाए जा रिया था जिसे आज शाम ही पूरे पच्चीस हज़ार में खरीद के लाया..किस टेम कुर्बानी करूँ..कितना गोश्त निकलेगा.. किन किन को बांटना है..कुर्बानी होते ही अच्छा गोश्त फ्रिज में छुपा देना है इससे पहले के कमबख्त के मारे मांगने वाले आ जाएं..सुबह पराठे के साथ भेजा और कलेजी का नाश्ता..दोपहर में गोश्त पुलाव और रात में कबाब के साथ बकरे की बिरयानी.. बस यही सब पिलानिंग करते करते आंखों की नींद ही हवा हो गई ऊपर से पीरेसर भी बढ़ने लगा तो धार छोड़ने के लिए मुंडेर के पास आके बैठ गया..क्या करूं बचपन चला गया पर बचपना नहीं जा रिया


रिजवान के घर की तरफ नजर गड़ाए धार मार रिया था के अचानक उसके घर का दरवाज्जा खुला.. मैं सकपका के नीचे झुक गया ..रिजवान की बीवी रुखसाना पल्ले से मुंडी निकाली इधर उधर देखी और मुंडी वापस अंदर ले गई.. मैं सोच रिया था इत्ते रात गली में रुखसाना क्या ढूंढ रही ..तभी उसके पीछे से एक लोंडा निकला और गमछे से मुंह छुपाए हबड़ तबड़ करता भागा..मैंने उसे पहचानने की कोशिश करी

“ओह ..ये तो भगत का लोंडा सुंदर दिख्खे.. आधी रात को रिजवान के घर में..तेरी जात का भेंडा मारूं.. चांद हमारे मोहल्ले का ईद कोई और मना रिया है


सुंदर और रिजवान बचपन के दोस्त हैं वैसे तो... खूब पड़े रहा करे थे एक दूसरे के घर में..मगर ये कमिना रिजवान के पीछे उसकी बीवी के साथ…हमकू तो अल्लाह की बंदी देखती भी ना और इस काफ़िर कू दस्तरख्वान सजा री है बदजात औरत...ख़ुदा कसम खाकर कह रिया हूं मेरे तो जीसम में आग लग गई


रिजवान की हनुमान मंदिर वाले चौक पे मोबाइल रिपेयर की दुकान थी..खूब बढ़िया चला करे थी..चार साल पहले रुखसाना से शादी हुई दो बच्चे हैं..अब्बू जन्नती बहुत पहले अल्लाह को प्यारा हो गया..और कुछ महीने पहले अम्मी भी डेंगू का झटका ना झेल पाईं।


.पिछले साल किसी ने वॉट्सएप पर अफवाह उड़ा दी के बामन के लौंडों ने मुल्लों की लौंडिया छेड़ दी..बेगैर सच जानें दोनों पार्टी में दंगा छिड़ गया.. उसी बीच कुछ कमीनों ने रिजवान की दुकान में आग लगा दी ..दंगे में कुछ उनके मेरे कुछ हमारे शहीद हुए.…बस तबसे दोनों के मोहल्ले अलग..दुआ सलाम हुक्का पानी सब बन्द ..ना वो हमारे मोहल्ले में आत्ते ना हम उनके मोहल्ले में जात्ते.. जे कोई आया गया तो बेटा सही सलामत ना लौटा


दुकान बर्बाद होने के बाद यही कोई आठ महीने पहले बंबई के एजेंट को पैसे देके रिजवान सऊदी अरब गया नौकरी पे.. लेकिन तबसे उसकी कोई खबर नहीं..कहने वाले कहते किसी शेख की भेड़ बकरी चराता.. तो कोई कहता जेल में बन्द है.. कुछ तो यहां तक कहते की किसी बिहारण बंगालन से दूसरी शादी कर ली वा ने तभी इधर कु ना अत्ता


अगली सुबह दरवाज़े पे बैठा दातुन घिस रिया था के रुखसाना अपने घर से बूर्का पहने हाथ में थैला लिए निकली और बाज़ार की जानिब चल पड़ी.. उसे देखते ही रात की सारी फिलम मेरे दिमाग में रिवाइंड हे गई..मैंने झट कुल्ली करी और लुंगी संभालते हुए हो लिया उसके पीछे


“कैसी है रुखसाना..कहां कू जारी..और हो गी बकरीद की तयारी” मैंने पीछे से टोका

“अलहम्दुलिल्लाह सब बढ़िया... यहीं..बाज़ार” बिना पीछे देखे हलके से बोलते हुए उसने अपनी चाल तेज कर दी..

“हमारी भी हो गी.. त्यारी....कुर्बानी कर रा मैं..पूरे पच्चीस हज़ार का बकरा लाया कल.. ज्यादा नहीं तो कम से कम बीस किलो माल निकलेगा.. गोश्त भेजूंगा..मुस्टंडा बकरा है..खुश हो जागी गोश्त देखके..कलेजी खाती हो तो बता.. पहुंचाने आ जाऊंवा..” मैं अकेला बड़बड़ाए जा रिया था.. वो और तेज़ चली जा रही थी..

“पी टी ऊषा काईकू बन री हो रुखसाना बेगम...पदक ना दे रा कोई तुम्हें” बोलकर मैं खिख्याके हँस पड़ा..

“भाईजान आप हमसे बात मत कीजिए..कोई देखेगा तो गलत समझेगा..बाज़ार का माहौल है”

“बड़ी पाकीजा बन री है रुखसाना..सब पता मेरे कू..रात भर चूल्हा जलाके कौन सी निहारी पका रही है तू आजकल” मेरी बात सुनते ही एकाएक वो रुक गई....लगा बस अब हो गया मेरा काम.. मुड़ के मेरी तरफ आयी..

“क्या पता है..” उसने बुर्के में से झांकती आंखों को फैलाते हुए तन के पूछा..

“यही के भगत का लौंडा तेरे दम पे हमारे पूरे मोहल्ले के साथ आइस पाईस खेल रिया है .. और तू रात में खूब दस्तरखान सजा रही है आजकल उस लौंडे कू....एक रात हम कू भी दावत दे दे..भाई मुर्गी हमारे आंगन की और लेग पीस वो भगत का लौंडा चबा रिया है…ये तो बड़ी नाइंसाफी है...मैं कह रिया था तरी तरी तो चखा दे हमें..कसम ख़ुदा की किसी को कुछ ना कहने का..नहीं तो अभी सबे जाके बता दूँगा उस बामण के साथ रोज रात भर लूडो और सांप सीढ़ी खेलती ह..ह..ह …” अभी मैं पूरा बोल भी नहीं पाया था के उसने झन्नाटेदार तमाचे की रसीद मेरे गाल पर फाड़ दी..और रोती हुई वापस अपने घर की तरफ भाग गई..मैं गाल सहलाते हुए सबकी सवालिया निगाहों को देख रिया था.. मन में आया सबको पकड़ पकड़ के इस बदजात की हकीक़त बता दूँ ..फिर सोचा ऐसे कोई नहीं मानने का.. सबको सबूत दिखा के इस कमीनी को पत्थर ना मरवाए तो एक बाप का जना नहीं..”


रात होते ही मैंने अपना मोबाइल जेब में रखा और भगत के लौंडे के इंतजार में मुंडेर के पीछे छुपके बैठ गया..तभी मुंह पर गमछा लपेटे भगत का लौंडा हाथ में थैलियां लिए इधर उधर झांकता सरपट आया और अन्दर घुस गया..मैं भागा हुआ नीचे कू गया..मोबाइल के कैमरे की रिकॉर्डिंग चालू करी और उसे ले के खिड़की पर चढ़ गया इस उम्मीद पर के आज तो वीडियो बनाऊंगा और सारे कस्बे को इनके सांप सीढ़ी का खेल दीखाउंवा... 


मैंने खिड़की से अंदर कू झांका तो देखा अंदर कुछ और ही चल रिया है...


“ ये लो बहन मां ने तीज भेजी है.. अब रक्षा बंधन भी आ रहा है तो उसका उपहार भी इसी में ले आया..और साथ में बच्चों के ईद के कपड़े और राशन का सामान है” थैलियां हाथ में पकड़ाते हुए सुंदर ने बोला..

“सुंदर भाईजान ख़ुदा के लिए आप आज के बाद मत आना.. हमें हमारे हाल पर छोड़ दीजिए” रुखसाना हाथ जोड़े खड़ी थी सुंदर के आगे और रोए जा रही थी..

“ऐसे हाल में अपने दोस्त के परिवार और अपने बहन भांजों को अकेला छोड़ दूँगा तो भगवान नर्क में नहीं जलायेगा मुझे..वो तो गैरों के हक का भी ख्याल रखने का हुक्म देता है और तुम तो मेरे अपने हो”

“नहीं भाईजान बस अब आप नहीं आओगे हमारे यहां..हम मरे या जिएँ ख़ुदा निगेहबान है”

“क्या हुआ रुखसाना..भगवान साक्षी है ..मेरी कोई बहन नहीं इसलिए जिस दिन से तुम मेरे भाई रिजवान से शादी करके आई हो उस दिन से तुम्हें भाभी नहीं बल्कि अपनी सगी बहन माना है..आँख खुलते ही हर रक्षा बंधन के दिन तुमसे सबसे पहले राखी बंधवाने आता हूं हमेशा ...क्या तुम्हें मेरी नीयत में कोई खोट दिखा..अगर हां तो बताओ..तुम्हारा भाई कल का सूरज नहीं देखेगा… 

“अरे नहीं भाईजान…आपको मेरी भी उम्र लग जाए..आप तो फरिश्ते हैं..आठ महीने से हमने रिजवान की आवाज़ तक नहीं सुनी..अगर आप नहीं होते तो मेरे बच्चे भूखे मर जाते..ना जाने हमारा क्या होता..अपने रोज की मजदूरी में से अपना पेट काटकर आप हमारा पेट भरने चले आते हैं ..मगर अब आपकी जान को खतरा हो सकता है..लोगों को पता चल गया है आप मेरे यहां आते हैं..मैं इतनी ख़ुदग़र्ज़ नहीं के अपने और अपने बच्चों के लिए अपने भाई की ज़िंदगी जोखिम में डालूं..अब आप मत आना भाईजान” सुंदर की हथेली पर माथा रखके रुखसाना गिड़गिड़ाते हुए रोई जा रही थी..

“ज़िंदगी की किसको पड़ी है..ऐसी सौ ज़िंदगी अपने बहन और भांजों पर कुर्बान..और ये कौन होते हैं एक भाई को उसकी बहन से मिलने से रोकने वाले..ये कौन होते हैं किसी को किसी से मिलने से रोकने वाले..क्या सरहदों की लकीरें कम पड़ गई थी जो इन्होंने मोहल्लों में लकीरें खींचनी शुरू कर दी..क्या ज़मीनों पर लकीरें खींचते खींचते थके नहीं ये लोग जो अब दिलों पर लकीरें खींच रहे हैं..अपने बहन भांजों को मरता हुआ देखने से बेहतर मैं खुद मरना पसंद करूंगा..तू रो मत बहन..जब तक तेरे भाई की एक भी सांस बाकी है कोई उसे तुझसे मिलने से नहीं रोक सकता..”बोलते बोलते सुंदर खुद फफक फफक पर रोने लग गिया रिजवान के बच्चों को सीने से चिपका कर....


अंदर का ये मंज़र देखकर मेरे हाथ पैर कांपने लगे..जिस्म सुन्न पड़ने लगा..मोबाइल मेरे हाथ से छूटकर नीचे गिर गया और उसके साथ ही धड़ाम से मैं नीचे गिर पड़ा..बदहवासी में ज़मीन की मिट्टी को मुट्ठी में हंसोत्ते हुए मैं भर्राई हुई आवाज़ में चिल्लाया उस पर .. "तूने क्यूं रोका मुझे .. तू फट क्यूं नहीं गई..जितनी गिरी हुई मेरी सोच है उतना ही नीचे गिराना चाहिए था मुझे..तू अभी मेरी कब्र बन जा..दफ़न कर दे मुझे..मैं शैतान इब्लिस से भी बदतर हूं....क्या करने चला था मैं..एक भाई बहन के पाक रिश्ते को अपनी मैली सोच से मटमेला करना चाहा मैंने.." याद नहीं कब तक रोते रोते वहीं ज़मीन पर सो गया..


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