फूलदेई त्यौहार की कहानी
फूलदेई त्यौहार की कहानी
"फूलदेई" का त्यौहार हिमालय की गोद में बसे 'उत्तराखण्ड' के गाँवों में मनाया जाता है। चैत्र संक्रांति तक जब हिमालय से बर्फ पिघलने लगती है और पूरी घाटी 'बुरांश' के लाल फूलों से ढक जाती है तो ऐसा प्रतीत होता है मानो सम्पूर्ण प्रकृति हिम की श्वेत, धवल साड़ी छोड़कर 'बुरांश' और 'फ्योंली' जैसे फूलों की लाल, पीली, रंग-बिरंगी साड़ी पहनकर अपने वसन बदल रही हो।
सम्पूर्ण क्षेत्र की खुशहाली एवं समृद्धि की कामना का यह त्यौहार विशेषकर किशोरी लड़कियों एवं बच्चों द्वारा मनाया जाता है। सर्वप्रथम बच्चों का समूह जंगल से फूल, विशेषकर पीले 'फ्योंली' के फूल, एकत्र कर गाँव के सभी घरों की देहली पर रखता है एवं प्रत्येक घर की सुख, शांति, समृद्धि तथा गाँव में प्रेम और भाईचारा बने रहने की कामना करता है।
एवज में उन्हें प्रत्येक घर से चावल, पैसे, मिष्ठान्न तथा पकवान आदि प्राप्त होता है। फिर चावलों का एक पकवान 'साय' बनाया जाता है जिसे सभी बाँटते और खाते हैं। यह त्यौहार न केवल आपसी भ्रातृभाव को बढ़ावा देने वाला परन्तु प्रकृति के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने एवं वसन्त के हर्षोल्लास का भी पर्व है।