फरिश्ता

फरिश्ता

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आज रमेश का कॉलेज में आखिरी दिन था।

लेकिन उसने गांव न जाकर यहीं शहर में ही कोई नौकरी करने का फैसला किया था।

उसने एक दफ्तर में नौकरी की बात भी कर ली थी। कल से ही तो उसे नौकरी पर जाना है, अभी वो गांव नहीं जा पायेगा।

गांव में बस उसकी बुड्ढी माँ के अलावा उसका कोई और सगा संबंधी नहीं है।

माँ के अलावा दुनिया में उसका और है ही कौन। दो चार महीने काम कर ले ,कुछ पैसा जमा हो जाये तो माँ को भी साथ ले आऊंगा , ।

सोचता हुआ रमेश अपनी मस्ती में चला जा रहा था। गांव में बैसे भी है ही क्या उसके पास दो ढाई बीघा जमीन एक कच्चा माकन बस यही संपत्ति जो उसे पुरखों से मिली थी।

नौकरी जम गई तो गांव जाकर करना भी क्या है ? खुद से ही सवाल करता । और हाँ माँ की बीमारी का इलाज भी कहाँ गांव में हो पाता है। खुद ही जबाब दे देता ।

कभी हँसता कभी उदास होता बढ़ा जा रहा था।

तभी! सड़क किनारे कुछ जमा लोगों की भीड़ देख उसकी तन्द्रा भंग हुई। कोई लड़की रो रही थी ।कोई तो मदद! कर खुदा के वास्ते,

आवाज सुनकर रमेश भीड़ को चीरता उधर तेज़ी से लपका। तो देखा कि, एक बूढ़ा आदमी शरीर पर तमाम घाव लिए जमीन पर पड़ा तड़फ रहा है।

और एक 19/ 20 स सुन्दर लेकिन फटेहाल लड़की उसके पास बैठी रो रही है।

कोई मेरी मदद करो खुदा के वास्ते ,उन्हें घर पहुंचादो, कोई तो सुनो।

तभी एक आदमी भीड़ से बोला ,"अरे बेटी,इसको कोन हाथ लगाये, न जाने य छू की बीमारी हमें भी लग जाये तो।

अरे 'अहमद 'पर तो खुदा का कहर टूटा है। न जाने किस गुनाह की सजा मिली है उसे,जो ऐंसी नामुराद बीमारी लग गई बेचारे को।

अरे इसे तो जीते जी दोजख की आग में जलना पड रहा है। चलो भाइयों चलो यहाँ से, अरे ये छूत की बीमारी है लाइलाज,, हम कियूं इसके गुनाहों के साझीदार बने, अरे पता नहीं कोन से संगीन गुनाह किये इसने अपनी गुजस्त जिंदगी में, जो इतनी ख़ौफ़नाक सजा तारी हुई इसपर ।

कोढी है कोढ़ी।

ये सुनकर लड़की तड़फ कर बोली, ऐंसा न कह मोलवी साहब , खुदा के वास्ते ऐंसा कुफ्र न करिये,अरे लाचारों की मदद करना तो सबाब का काम है।

लेकि वहाँ जमा भीड़ अजीब सा मुह बनाती हुई धीरे -धीरे छंट गई।

और रह गए मियां अहमद और उनकी बेटी।

ये सब देख कर रमेश को बहुत अजीब लगा , उसने पास जा कर लड़की से पूछा ,"क्या हुआ है इन्हें" ?

और ये सब ल गुनाह ,सजा सब क्या क्या बातें कर रहे थे ?

ये सुनकर उसने रमेश की और देखा ,और सिसकते हुए बोली,"मेरा नाम सादिया है , ये मेरे अब्बू हैं । जिन्हें पिछले कुछ महीनो से अजीब बीमारी लग गई है जिसे ये लोग कोढ़ कहते हैं।

और इस छूत की बीमारी कहकर हमारे साथ अछूतो सा वर्ताव करते हैं।

पिछले 2 महीने से इनकी बीमारी बहुत बढ़ गई है, ये अधिकतर घर मे ही पड़े रहते हैं।और खाना पीना भी बहुत कम कर दिया है। नतीज़ा कमज़ोरी बहुत बढ़ गई है।

अभी मैं जरा किसी काम से बाजार गई थी, लौटी तो ये यहाँ पड़े थे। न जाने कियूं घर से निकल आये और यहाँ आके बेहोश हो गए।

मै न अल्लाह जाने आज क्या हो जाता।

तब तक अहमद मियां को भी होश आया गया, उन्होंने धीरे से आँखे खोली और बोले , "अरे बेटी मैं अपनी इस जिल्लत भरी जिंदगी से आज़िज़ आ गया हूँ"।

और मेरी बजह से तुम्हारी जिन्दगी भी बेरंग ग़मगीन होती जा रही है।तुम् लोगो के रोज कितने ताने मेरी वजह से सुनने पड़ते हैं। यही सब सोचते हुए खुद क खत्म करने घर से निकला था, लेकिन ये भी शायद अल्लाह को मंज़ूर नहीं। जो मैं यहाँ गश खाके गिर गया और बेहोश हो गया।

तब रमेश बोला चलो बाबा अब घर चलो वहीँ बातें करेंगे।

उसने सहारा देकर उन्हें खड़ा किया, और सादिया की मदद से उनके घर ले आया ,जो की पास में ही था।

घर आके उसने लड़की से पूछा , तुमने इन इला नहीं कराया कहीं ? अरे ये अब लाइलाज बीमारी नहीं है । सही इलाज और देखभाल से ये पूरी तरह ठीक हो जाती है। और तो और सरकारी अस्पताल में इलाज भी एकदम मुफ्त होता है। ये सुनकर सादिया रोते -रोते बोली," मेरा दुनिया में अब्बा के इलावा कोई नहीं है।साल भर पहले जब इनके हाथ पर पहली दफा दाग देखा था , तो हम हाकिम जी के पास गए थे। लेकिन बीमारी बढ़ती ही गई, और धीरे धीरे पूरे जिस्म में फ़ैल गई"।

अब तो शरीर के घाव फूटने भी लगे हैं। लोग कहते हैं ये छूत की बीमारी है ,जो की गुनाहों की सज़ा की वज़ह से होती है। और अगर कोई उसे छू ले तो ये बीमारी उसे भी लग सकती है।

ये सुनकर रमेश अफ़सोस के साथ बोला, आप पढ़- लिखी समझदार लगती हो सादिया, फिर भी नीम हकीमो, और इन ज़ाहिल मोहल्लेबालों के कहने में आ गईं।

इन लोगों की बेशिरपैर की बातों को मानकर हिम्मत हार कर बैठ गई।

अरे तुम लोगों को बड अस्पताल जाना चाहिए था।

सादिया बोली लेकिन हमारे पास पैसे कहाँ हैं बाबुजी । कहाँ से कराती इलाज़ ?

अरे पागल !!मुफ्त इलाज होता है सरकारी अस्पताल में कुष्ट का बताया था न मैंने। रमेश अपनेपन से उसे झिड़क कर बोला ।

कल सुबह मैं खुद इन्हें अस्पताल ले जाऊंगा।

अभी तुम इनकी साफ सफाई करके घावों पर तेल लगा देना। सुबह तैयार रहना इन्हें अस्पताल ले चलेंगे।

ये कहकर रमेश वहाँ से चल दिया। दोनों बाप बेटी उस कृतज्ञता भरी नज़रों से देखते रहे।

अगले दिन सुबह 9 बजे रमेश उनके घर पहुंचा ,और बोला चलो बाबा अस्पताल वहाँ डाक्टर को दिखाना है।

आप तैयार हो जाओ मै रिक्शा ले आता हूँ।

अहमद मियां बोले अरे बेटा तुम तो हमारे लिए "फ़रिश्ता बनकर आये हो।

, यहाँ तो अपनों ने भी मुँह मोड़ लिए बिरादरी तो बिरादरी सगे भी किनारा कर गए। तुम तो हमें जानते तक नहीं फिर भी!!!

अरे बाबा इंसानियत भी कोई चीज़ होती है ,रमेश बोला । अच्छा अब ज्यादा बातें न करो ,और जल्दी चलो मै रिक्शा लाता हूँ।

रमेश रिक्शा ले आया और तीनों लोग अस्पताल पहुँच गए। वहाँ रमेश उन्हें सीधे कुष्ट उनमूलन केंद्र ले कर पहुंचा। डॉक्टर न मुआयना किया और पूछा, कब से है बीमारी ?

साल हो गया साहब अहमद ने जबाब दिया।

बहुत देर कर दी आपलोगो ने आने में, बीमारी बहुत बढ़ गई है।

क्या अब मेरे अब्बू ठीक न हो सकेंग डाक्टर साब, ? ? सादिया ने तड़फ कर पूछा।

ठीक तो हो जायेंगे लेकिन बहुत समय लगेगा अब। बीमारी बहुत ज्यादा बढ़ गई है।

मै दवाइयां दे देता हूँ लेकिन नियमित इलाज़ और देखभाल करनी होगी । और कुछ सावधानियां मैं सब लिख देता हूँ। इनको हर सप्ताह चेकअप के लिए लाना होगा। सब समझाकर डाक्टर ने उनको दवाइयां और आवश्यक निर्देश देकर घर भेज दिया।

घर पहुंचकर रमेश को याद आया आज उसे 10 बजे दफ्तर पहुंचना था ,अब 12 बज गए , आज पहले दिन ही छुट्टी हो गई।

लेकिन वह फिर भी दफ्तर चला गया, और वहाँ उसने कह दिया रस्ते में एक दुर्घटना हो गई थी। उसी में उसे देर हो गई।

लगा इलाज उचित खुराक और बेहतऱ देखभाल से अहमद साहब की हालत में काफी सुधार आने लगा था। रमेश रोज़ दफ्तर जाने से पहले और दफ्तर से लौट कर अहमद मियां की खबर लेने जाता। इन रोज़ रोज़ की रमेश और सादिया की मुलाकातो से दोनों के बीच मोहब्बत का जज़्बा सर उठाने लगा।

सादिया और अहमद दोनों ही रमेश की बहुत इज़्ज़त करते थे। धीरे धीरे सादिया और रमेश की नजदीकियां मोहल्लेबालों की आँखों में चुभने लगे।

कुछ लोगों ने रमेश से कहा भी कि, कोढ़ की देखभाल कर रहे हो अगर कहीं बीमारी तुम्हे लग गई तो ?

तुम एक अच्छे घर के समझदार लड़के हो थोड़ा ध्यान रखो।

लेकिन रमेश सब अनसुना कर गया। अब अहमद मियां लगभग ठीक हो चले थे 6 महिने गुज़र गए देखते देखते।

एक दिन रमेश ने सादिया का हाथ पकड़कर कहा, "सादिया मै कई दिन से तुमसे कुछ कहना चाह रहा था ,लेकिन तुम्हारे अब्बा की बीमारी के चलते खामोश था। अब चूँकि उनकी हालत पहले से काफी बेहतर है , तो मुझे लगता है कि , मुझे अपने दिल की बात तुम्हे बता देनी चाहिए"।

कहो ? सादिया ने संक्षिप्त उत्तर दिया।

और उसकी आँखिन में झाँकने लगी।

बात ये है सादिया कि, हम काफी दिनों से रोज़ मिल रहे हैं , एक दूसरे को जान समझ रहे है ।और अब मुझे लगता है कि मेरे दिल में तुम्हारे लिए चाहत होने लगी है।

मुझे लगता है कि, हम दोनों जिंदगी साथ में बिता सकते हैं। क्या तुम शादी करोगी ?

ये सुनकर सादिया बोली हम आपकी बहुत इज़्ज़त करते हैं रमेश जी। और आपके जज्बातो की हमारे दिल में बहुत कदर है। हमें फख्र होगा अपने आप पर और नाज होगा अपनी किस्मत पर,जो हमें आप जैसे शोहर मिले।

लेकिन क्या समाज और बिरादरी हमें इसकी इज़ाज़त देंगे ? क्या वो हमारे रिश्ते को क़ुबूल करेंगे ?


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