लगन
लगन
मुन्नू बिना मां बाप का आठ दस वर्ष का अनाथ बालक था, उसके मां बाप और छोटी बहन पिछले साल गांव में फैले हैजे का शिकार हो गए।
और मुन्नू अकेला रह गया उदास हताश असहाय।
मुन्नू को भूख लगती तो वह रोता रहता क्योंकि उसके पास ना तो पैसे थे और ना ही उसे खाना पकाना आता था
मुन्नू का परिवार बहुत गरीब था उसके मां और पिता दोनों हो लोगों के खेतों में काम करते थे, उनके पास अपना कहने को एक कच्चे मकान के अलावा कुछ नहीं था।
उसके बाप "रामदास" की हार्दिक इच्छा थी कि वह इस साल एक दुधारू गाय अवश्य लेगा, इसके बच्चे भी दूसरों की तरह दूध का स्वाद जानेंगे।
किन्तु वक्त और विधि के विधान के आगे किसकी चली है।
और वक़्त के एक झटके से मुन्नू अनाथ हो गया अब उसका कोई सरपरस्त नहीं था जो उसके भविष्य के बारे में सोचे।
मुन्नू को कुछ दिन पड़ोसियों ने खाना दे दिया किन्तु फिर एक दिन किसी ने कहा, " मुन्नू कब तक हम तुम्हे ऐसे मुफ्त में खाना देंगे ? और फिर तुम्हारी अन्य ज़रूरतें भी तो हैं कपड़े आदि, तो क्या तुम सब कुछ मांग कर लोगे ? "
"तुम्हे भी आगे की जिंदगी के लिए कुछ काम करना चाहिए।" दूसरे व्यक्ति ने भी पहले की हाँ में हाँ मिलाई।
"लेकिन मैं क्या काम करूंगा चाचा ? मुझसे तो खेतों में काम भी नहीं होगा, मैं तो वजन भी नहीं उठा सकता", मुन्नू उदासी में बोला था ।
"डंगर तो घेर सकता है ?,, चाचा ने कहा।
"हाँ वो तो मैं कर लूंगा", मुन्नू ने धीरे से कहा।
"ठीक है मैं दो चार घरों में बात करता हूँ और कल बताता हूँ तुझे", चाचा ने उसे रोटी देकर कल आने को कहा और चले गए।
अगले दिन से मुन्नू चार घरों की गाय भैंस चराने का काम मिल गया जिसकी एवज में उसे महीने के चार सौ रुपए ओर रोज़ एक घर में खाना मिलना तय हुआ।
अब मुन्नू को सुबह दो रोटी गुड़ चटनी देकर गाय भैंसों के साथ जंगल भेज दिया जाता और शाम को लौटने पर अपनी बारी के घर से रात का खाना खिला दिया जाता।
सुबह से शाम तक नन्हा मुन्नू डंगरों के पीछे दौड़ता रहता।
शुरू में तो उसे बहुत बुरा लगा लेकिन बाद में यही इसके लिए खेल बन गया और कल्लो, लल्लो, भूरी, चांदी (गाय; भैंस)आदि उसकी दोस्त, जिन्हें वो अपनी अम्मा ओर बापू के किस्से सुनाता और उनके गले लगता।
उसे याद आता था कैसे उसकी अम्मा उसे रोज कहानी सुनाती और बड़ा आदमी बनने को कहती।
वह गाय भैंसों से पूछता, "क्या तुम कोई कहानी जानती हो, मेरी अम्मा जैसे ?"
और भैंस बस हम्ममम्मममम्म करके रह जाती,
गाय भी उसके जबाब में अम्म्म्महहहह के अलावा कुछ नहीं कह पाती।
फिर वह पूछता,"ये बड़ा आदमी क्या होता है", लेकिन फिर जबाब हम्ममम्मममम्म, अम्म्म्म के अलावा कुछ नहीं मिलता।
एक दिन वह अपनी रो में यही बातें कल्लो (भैंस) व लल्लो (गाय) से पूछ रहा था और वहां से दूसरे गांव के अध्यापक जा रहे थे, उन्हें एक छोटे बच्चे का इस तरह भैंस और गाय से बातें करना कुछ अलग सा लगा, मुन्नू के चेहरे की मासूमियत उन्हें अपनी ओर खींचने लगी।
"क्या बात है बेटा ?" उन्होंने मासूम मुन्नू के सर पर हाथ रख कर कहा।
मां के बाद पहली बार किसी ने मुन्नू के सर को इतने प्यार से सहलाया था।
उसकी आँखों में जमी साल भर की बर्फ पिघल कर उसके गालों पर बहने लगी, उसकी सिसकी बंध गयी, मुन्नू सुबक सुबक कर रोने लगा आँसू उसके गौरे किन्तु धूमिल गालों को भोगोकर एक निशान बना रहे थे।
अध्यापक उसके सर पर हाथ फेरते रहे, उसकी मासूमियत ओर उदासी उनके मन को विचलित कर रही थी।
"क्या पूछ रहे थे तुम इन जानवरों से ?"उन्होंने धीरे से मुन्नू से पूछा।
मुन्नू खुद को संयमित करते हुए बोला, "मैं इनसे कहानी सुनाने को कह रहा था काका, जब से अम्मा मरी है किसी ने कहानी नहीं सुनाई।"
"क्या तुम्हें पढ़ना नहीं आता ? तुम खुद कहानियां पढ़ सकते हो में तुम्हे किताब दे दूंगा कहानियों की", मास्साब ने कहा।
"पढ़ना ?" मुन्नू को समझ नहीं आया।
गांव में कोई स्कूल नहीं था तो मुन्नू को पढ़ाई के बारे में कुछ भी पता नहीं था।
"पढ़ाई क्या होती है काका ? और ये किताबें क्या कहानी सुनाना जानती हैं ?" मुन्नू जिज्ञासा से भर उठा।
"हाँ किताबें तुम्हारे सारे सवालों के जबाब जानती हैं बेटे बस जरूरत है तुम्हे उनसे दोस्ती करने की उन्हें पढ़ना सीखने की।" मास्साब ने मुस्कुरा कर कहा।
"मैं करूँगा उनसे दोस्ती काका", मुन्नू ने दृढ़ता से कहा।
"अच्छा तुम वो नदी पार बाला गांव जानते हो ?" मास्टर जी ने पूछा।
"हाँ काका", मुन्नू ने धीरे से कहा।
"तो तुम शाम को वहीं आ जाना मेरे घर, आ जाओगे ? किसी से भी पूछ लेना कहना मास्टरसाहब के घर जाना है।" मास्साब ने उसे अपना पता समझाया।
"ठीक है काका", मुन्नू ने खुश होकर कहा।
आज मुन्नू ने डंगर जल्दी ही हांक दिए और बिना खाये पिये ही दौड़ लगा दी नदी पार के गांव की ओर जो उसके गांव से बस एक डेढ़ किलोमीटर दूर ही होगा।
दोनो गांव के बीच में एक छोटी सी नदी बहती थी जो बरसात के अलावा लगभग सूखी ही रहती थी, उसे पार करने के लिए उसके ऊपर दो बड़े खजूर के पेड़ काटकर पुल जैसा बना रखा था।
मुन्नू पुल को भी दौड़ कर पार कर गया, उसे तो लगन थी कहानियों की।
वह गांव में सीधा मास्साब के घर पहुंचा, गांव में घुसते ही पहले ही आदमी से उसे मास्साब का घर पता चल गया था।
मास्साब ने उसे बिठाया पीने को दूध और गुड़ दिया।
"मास्साब लाओ किताब मैं उससे कहानियाँ सुनूंगा।" मुन्नू उतावलेपन से बोला।
"हा हा हा!!"
मास्साब जोर से हँसने लगे।
"क्या हुआ ?" मुन्नू उन्हें देखते हुए बोला।
"किताबे कहानी सुनाती नहीं उन्हें खुद पढ़ना पड़ता है", मास्टर साहब बोले।
"पढ़ना?लेकिन मुझे पढ़ना नहीं आता", मुन्नू उदास होकर बोला।
"मैं सिखाऊंगा तुम्हे पढ़ना", बस तुम्हे लगन से मेहनत से सीखना होगा।
"मैं सीखूंगा", जो कहोगे करूँगा मुन्नू ने कहा।
"ठीक है कल से रोज इसी समय आना होगा", मास्साब ने उसे एक तख्ती औऱ एक किताब देकर कहा ओर कुछ अक्षर बताकर नकल का अभ्यास करने को दिया।
मुन्नू घर लौट आया, रात भर वह उस किताब में छपे चित्र देखकर उन्हें समझने का प्रयास करता रहा, फिर कुछ अक्षर तख्ती पर खड़िया से लिखने लगा, उसे इस खेल में मज़ा आ रहा था, रात भर में उसने कितनी ही बार तख्ती लिखी।
मुन्नू रोज शाम को मास्साब के घर जाकर पढ़ने लगा, उसकी लगन और मेहनत से कुछ ही महीनों में वह बिना रुके बिना हिज्जे किये पुस्तक पढ़ने लगा, और बहुत सुंदर लिखाई भी करने लगा।
जल्दी ही मुन्नू ने बहुत सारी कहानियां भी पढ़ लीं थी अब उसे पता था कि बड़ा आदमी क्या होता है।
मास्साब ने उसका नाम स्कूल में लिखवा दिया और उसे शाम को घर पर ही पढ़ाने लगे, उन्होंने मुन्नू को इम्तिहान देने के लिए मना लिया था।
पांचवी का परिणाम मुन्नू के लिए बहुत खुशी लेकर आया वह स्कूल में प्रथम आया था, मुन्नू को भाषा, गणित और सामाजिक अध्ययन में बहुत अच्छे अंक मिले थे।
इधर मुन्नू इन तीन सालों में अपने सारे पैसे बचा कर रखता रहा अब उसके पास करीब सात आठ हजार रुपए की पूंजी थी, जिसकी मदद से उसने पक्की सड़क के किनारे एक कच्ची गुमटी बना ली और चाय नाश्ता बेचने की एक छोटी दुकान खोल ली।
अब मुन्नू किसी का नौकर नहीं था और अब उसके पास पढ़ने के लिए पर्याप्त समय था।
उसकी लगन और मेहनत ने हमेशा उसका साथ दिया और उसने समय के साथ गांव से आठवीं की परीक्षा पास करके शहर में दाखिला ले या मुन्नू पढ़लिख कर बड़ा आदमी बनना चाहता था , वह अपनी अम्मा का सपना पूरा करना चाहता था।
मुन्नू बहुत ईमानदारी और मेहनत से अपनी दुकान चलाता और पूरी लगन से पढ़ाई करता, जल्दी ही उसे एक और अनाथ लड़का मिल गया उसके पास भी खाने रहने को कुछ नहीं था।
मुन्नू ने उसे अपने साथ रख लिया अब दुकान में दो लोगों के रहने से उसे पढ़ने के लिए अधिक समय मिलने लगा और वह उस लड़के को भी पढ़ाने लगा।
दसवीं की परीक्षा में मुन्नू को जिले में प्रथम स्थान मिला इससे उसकी और पढ़ने की लगन को बहुत बल मिला।
ऐसे हैं पूरी लगन से मुन्नू परिश्रम करता रहा, अब उसने अपनी गांव की झोपड़ी बेच कर सड़क के किनारे जमीन का एक टुकड़ा खरीद लिया था जिसमें कच्चा बड़ा मकान ओर आगे वही चाय की दुकान बना ली थी।
अब उसके साथ चार पांच अनाथ लड़के रहते थे जो उसकी दुकान सम्भालते और वह उन्हें भी लगन से पढ़ता।
इसी प्रकार समय के साथ मुन्नू आगे पढ़ता गया और उसका घर बड़ा होता गया जहां अनाथों बेसहारा लोगों के लिए हमेशा स्थान मिलता रहा।
मुन्नू अपनी मेहनत और लगन से एक दिन भारतीय प्रसाशनिक सेवा में चयनित हो गया, अब वह सच में बड़ा आदमी था उसकी मां का सपना साकार हो चुका था।
उसने अब अपने घर को अनाथालय और बृद्धाश्रम बना दिया जहां उसे कितने सारे भाई- बहन और मां बाप मिल गए जो हमेशा उसके लिए दुआएँ करते हैं।
मुन्नू को अभी भी लगन है कि कोई अनाथ कभी भी बिना कहानी सुने न सोये, और कोई भी इसलिए अनपढ़ ना रहे कि वह अनाथ है।
उसमे अभी भी लगन है हर शहर में एक ऐसा आलय खोलने की जिसमे अभावग्रस्त लोगों को मुफ्त शिक्षा और रहने की व्यवस्था हो।
मुन्नू सच्चा बड़ा आदमी है, यूँ तो अब उसका नाम श्री मुनेश कुमार है, किन्तु वह मुन्नू कहलाया जाना ही पसंद करता है।