Nirpendra Sharma

Drama

0.6  

Nirpendra Sharma

Drama

भूत राजा,

भूत राजा,

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बहुत पहले की बात है, कोई पचास साल पहले राजस्थान के किसी गांव में एक चरवाहा रहता था।

वह कुछ अपनी, कुछ दूसरों की भेड़ बकरियां चरा कर गुजारा करता था। खेती उसके पास थी तो किन्तु बस नाम मात्र को ही।

यूँ तो मखाई की शादी बचपन में ही हो गई थी "मखाई" जी हाँ लोग उसे इसी नाम से बुलाते थे, यूँ बेशक उसका नाम मलखान सिंह था किंतु ये नाम तो अब उसके माँ-बाप भी भूल चुके थे, सबको याद था तो बस मखाई।

मखाई जब बीस इक्कीस वर्ष का हुआ तो घरवालों ने उसका गौना करा दिया, फूल सी कोमल सांवली सलोनी चन्दकला को पाकर मखाई निहाल ही हो गया।

चंदा बहुत संस्कारी सुशील और कार्यकुशल थी, और मखाई को उसने हर तरह से खुश कर रखा था, वह तो दीवाना था चंदा का।

गौने के कोई बीस पच्चीस दिन बाद चन्दकला का भाई उसे विदा कराकर मायके ले गया।

चन्दकला के जाने के बाद मखाई बहुत उदास रहने लगा वह बहुत चिड़चिड़ा हो गया था, कभी किसी बकरी को बेवजह पीटना कभी किसी भेड़ को लात मारकर गली देना उसका स्वभाव बन गया था।

आखिर एक दिन उसके पिता ने कहा, "मखाई बहू को जाकर घणे दिन हो गए जाके ले आ बिंदड़ी ने।"

मखाई की तो जैसे मन मुराद मिल गई हो, वह सुबह जल्दी ही चल दिया अपनी ससुराल, उस समय लोग अधिकतर पैदल ही यात्रा करते थे। मखाई भी पैदल ही दोपहर तक अपनी ससुराल पहुंच गया, वह बिना रुके बिना थके बहुत तेज़ चलकर आया था।

अगले दिन सुबह जल्दी ही वह पैदल ही चन्दकला को साथ ले कर बापस आने लगा। चंदा बहुत धीरे धीरे चल रही थी, मखाई बार बार कहता, थक गई क्या ? आराम करें, कठे छांव में ?

और चंदा बार बार एक ही जवाब मुंह हिला कर देती ऊँ हूँ,,, ओर ये चलते रहते।

चलते चलते दोपहर हो चली थी, रास्ते में इक्का दुक्का बबूल, शमी और झरबेरी को छोड़कर कोई पेड़ भी नहीं थे। रास्ते की रेत भी सूरज की गर्मी से भाड़ की रेत सी दहक रही थी। मखाई अब थोड़ा आगे हो गया था इन दोनों के बीच का फ़ासला कुछ बढ़ गया था, आगे सड़क नीचे गहरी घाटी में उतर कर फिर उपर चढ़ती थी, यह खेतों के पानी को नदी में डालने के लिए बना एक गहरा चौड़ा नाला (गोड) था।

मखाई जब नाला पार करके ऊपर चढ़ गया तो थोड़ी दूर पर एक नीम का पेड़ था गौड के किनारे, उसके नीचे सुस्ताने लगा। वह काफी देर खड़ा रहा लेकिन चन्दकला नहीं आयी।

मखाई ने सोचा कहीं दिशा मैदान के लिए बैठ गई होगी और वह अपना हुक्का सुलगाकर गुड़गुड़ाने लगा।

मखाई के हुक्के की चिलम दो बार ठंडी हो गई लेकिन चन्दकला ऊपर नहीं आई तो मखाई उसे पुकारने लगा,

चंदा,,, !अरे ओ बींदणी कठे रुक गई ! घणी देर लाग री, जल्दी आजा घणो दूर जानो से। किन्तु उसे कोई जवाब नहीं मिला वह बहुत देर तक पुकारता रहा, फिर नाला उतर कर दूर तक देख भी आया किन्तु उसे चन्दकला कही नहीं मिली। उसने नाले के अंदर भी दोनो तरफ दूर तक देख लिया बहुत पुकार भी लगाई लेकिन किसी ने नहीं सुना। हार कर वह ससुराल के एकदम पास तक दौड़ता हुआ गया और फिर उसी जगह लौट आया।

मखाई को समझ नही आ रहा था कि आखिर चन्दकला गयी कहाँ। दिन ढलने लगा था और मखाई बहुत उदास, हताश, परेशान था उसे समझ नही आ रहा था कि अब वह घर क्या बताएगा। लेकिन फिर भी वह थक कर घर लौट आया और कह दिया कि उन्होंने भेजा नहीं कह दिया अगले महीने भेजेंगे। मखाई ने घर में तो झूठ बोल दिया लेकिन उसे रात भर नींद नहीं आयी। सुबह जल्दी ही उसने अपनी भेड़ बकरियां इकट्ठा की और निकल पड़ा गौड़ की तरफ।

खेर को छोड़ कर वह फिर चन्दकला को खोजने लगा, दिन भर भूख, प्यास भूल कर वह चंदा चंदा पुकारता रहा किन्तु कोई सुराग नहीं मिला ओर निराश घर लौट आया। अब तो रोज वह सुबह घर से निकलता नाले में चंदा चंदा पुकारता ओर रोते हुए घर लौट आता। आज उसे पांचवा दिन था वह रो रहा था चन्दकला को पुकार रहा था तभी उसने एक आवाज सुनी,

क्या हुआ बेटा ! कुछ खो गया थारा ? एक बूढ़ा चरवाहा उसे पुकार रहा था।

न्न ना ! मखाई ने धीरे से कहा।

देख मुझे सच बता दे, हो सके मैं थारी कोई मदद ही कर दूँ।

मह्यारी मदद कोई कोनी कर सके काकू सा, मखाई रोते हुए बोला।

क्या हो गया बता तो मन्ने ? बूढ़े ने पूछा।

मेरी चंदा, मखाई ने रोते रोते सारी बात बताई।

भाई या में तो थारी मदद, भूत राजा ही कर सके स इब।

भूत राजा ? मखाई को कुछ समझ नहीं आया।

हाँ भूत राजा उनका दरबार लगे स पुनमासी को रात में, एक दफे मह्यारी भैंस गायब हो गई थी तो मैंने उनके दरबार में गुहार लगाई थी, अगले दिन मिल गई थी मह्यारी भैंस।

काकू सा दो दिन बाद ही तो है पुनमासी ?

हाँ,, देख दो दिन बाद तू शाम को इस नीम के पेड़ में छिप कर बैठना, नीचे से तुझे कोई देखने ना पावे और दरबार की सारी कारवाही देखते रहना, जब भूत राजा अपनी गद्दी पर बैठ जावें ओर फ़रयाद सुन ने लगें तब पेड़ से कूद जाना, सीधा उनके सामने।

डरना मत और जब वे पूछें तो उन्हें बींदणी के गायब होने का सारा किस्सा बता देना। अब आराम से घर जाकर आराम कर ओर चिंता मत कर, वे दिला देवेंगे तेरी बींदणी न।

मखाई घर आ गया और पुनमासी कि रात के लिए खुद को तैयार करने लगा।

पुनमासी की शाम को ही मखाई नीम के पेड़ में छिप कर बैठ गया, रात के दूसरे पहर उसे नीचे नाले में कुछ हलचल दिखाई दी, सफेद कपड़े पहने कुछ लोग नीचे रेत पर मसक से पानी का छिडक़ाब दूर तक कर रहे थे, फिर कुछ लोगों ने वहां पर सफेद चादरें बिछाईं और बीच में गद्दे बिछाकर उस पर गंदुम तकिए लगाकर एक ओर खड़े हो गए।

उसके बाद कुछ डरावने चेहरे वाले लोग आकर वहां खड़े हो गए, कुछ की केवल हड्डी ही दिख रही थीं तो कुछ ने लंबे दांत बाहर निकाले हुए थे, मखाई उन्हें देखकर डर से कांप रहा था।

कुछ ही देर में ठंडी ठंडी हवा चलने लगी वातावरण में अध्भुत सुगन्ध फैल गयी, मखाई चौकन्ना हो गया और सांस रोके देखने लगा। एक लंबे चौड़े रौबदार व्यक्तित्व, लंबी सफेद दाढ़ी, सफेद ही लिबास पहने गद्दी पर आकर बैठ गए बाकी सारे लोग उनके दमन को चूम कर खड़े हो गए। बैठ जाओ, उनका गम्भीर स्वर गूंजा और सभी लोग अपनी जगह पर बैठ गए।

दरबार शुरू करो, भूत राजा की गम्भीर आवाज सुनाई दी, तभी,

दुहाई हो महाराज ! दुहाई हो !, कहकर मखाई ने ऊपर से कूद लगा दी और अपनी हड्डीयों के टूटने की चिंता किये बिना उनके पैरों में गिर गया। कोण है ? कठे स आयो ? मारो भगाओ इसने,, सारे भूत एक साथ चिल्ला उठे,,

रुको ! भूत राजा ने हाथ उठा कर सबको शान्त किया। बतातो क्या बात है यहां कैसे आये ? उन्होंने मखाई से प्रेम से पूछा।

महाराज मैं अपनी बींदणी के साथ यहां से जा रहा था एक हफ्ते पहले, मगर म्हारी बींदणी अठे गायब हो गयी कुछ पता नहीं चला उसका महाराज, मैं क्या करूँ ? इब तो थम ही कोई रास्ता बताओ घणी उम्मीद लेकर आया हूँ माई बाप, हुकुम के दरबार से कोई निराश नई होता बहोत सुणा है मन्ने।

भूत राजा ने सबकी ओर गुस्से से देखा, सारे भूत सहम गये।

किसकी हरकत है यो, किसने गायब करी इसकी औरत,, उन्होंने सबकी ओर देखा, कौण नहीं आया आज दरबार में। बिगाड़ा हुकुम। एक भूत ने धीरे से कहा।

जाओ चार लोग पकड़ कर लाओ उसे, जल्दी, आराम से बैठो तुम फरियादी, तुम्हारी बीवी मिल जाएगी,  भूत राजा ने मखाई से प्यार से कहा। कुछ ही देर में चार लोग एक बेहद बदसूरत, डरावने जले चेहरे बाले भूत को पकड़ कर ले आये। कहाँ है इसकी औरत बिगाड़ा ? भूत राजा ने कड़क कर पूछा। मुझे नहीं पत सच बता दे बिगड़ा तू पहले भी लोगों का समान चोरी कर चुका है बता कहाँ रखा है उसे नहीं तो....

सच कह रहा हूँ हुकुम, मुझे कुछ नहीं मालूम,, बिगाड़ा मासूम सी आवाज में बोला।

जाओ इसके घर की तलाशी लो दो लोग जाकर ,भूत राजा ने कुछ बुदबुदाते हुए कहा और बिगाड़ा पर फूँक दिया...

नहीं !

बताता हूँ हुकुम, ऐसे मत जलाओ मुझे, बिगाड़ा तड़प कर बोला, मेरे घर में है हुकुम।

क्यों लाया था ?

बहुत सुंदर लग रही थी हुकुम, दिल आ गया मेरा उस पर और उसने जो खुशबू लगा रखी थी मन्ने बावला कर गई बो, इसी लिए उठा लिया उसे।

कुछ किया तो नही उसके साथ ? भूत राजा ने कड़क कर कहा।

नहींं हुकुम ,अभी तो नहीं।

खबरदार अगर उसे गलत नियत से छुआ भी तो, इज़्ज़त के साथ बापस कर उसे नहीं तो... भूत राजा ने हाथ उठा कर कोई मन्त्र पढ़ते हुए कहा।

नही हुकुम दे दूंगा वापस, कल उसी समय ये आ जाये इसकी बींदणी बठे गोड में मिल जावेगी।

देखले, नहीं तो तेरी खैर नहीं, भूत राजा ने क्रोध में कहा।

हुकुम लौटा दूँगा कोई गलत काम नही करूँगा, बो बस मुझे अच्छी लगी थी और खुशबू ।

अच्छा ठीक है अब तुम जाओ, कल दोपहर में आना तुम्हारी औरत मिल जाएगी, यहां तुमने क्या देखा किसी को बताने की जरूरत नहीं है सब भूल जाना और उस से कुछ मत पूछना, जाओ अब।

अगले दिन मखाई ने घर में कहा कि आज बिंदड़ी को लाने जा रहा है और दोपहर को नाले में जाकर खड़ा हो गया, कुछ देर बाद चन्दकला धीमे धीमे चलती हुई आ गई, बहुत देर लगाई चंदा कब से बाट जोह रहा था थारी, कठे रुक गई थी ? मखाई ने कहा और हँसने लगा। दोनों हँसी खुशी घर आ गए किसी ने किसी से कुछ नहीं पूछा और ना ही किसी और को कुछ बताया।

बहुत साल बाद मखाई ने एक दिन चन्दकला से पूछा कि वह नाले में कहाँ गायब हो गई थी ? कहाँ रही ? तो उसने बताया की एक बहुत बड़ा महल जैसा मकान था, नरम बिस्तर और एक भद्दा सा आदमी आता था, मुझे घूरता रहता था, कहता कुछ नहीं था।

खाने को भी बहुत सारे फल लाता था, मुझे नहीं पता कौन लोग थे वे। मुझे पता है चंदा, कहकर मखाई मुस्कुरा दिया और चन्दकला को सीने में छिपा लिया। चन्दकला और मखाई बाद में ना जाने कितनी बार उस रास्ते से गुजरे किन्तु मखाई ने भूल कर भी जाते समय चन्दकला को कोई खुशबू नहीं लगाने दी।


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