भूल

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मनोहर, पच्चीस वर्ष का मेहनती किसान है, सांवला मज़बूत दरमियाना कद ऊंचे चौड़े मज़बूत कंधों बाला आकर्षक युवक।

अभी पिछले साल ही उसकी शादी हुई है मालती के साथ।

मालती एक सीधी शादी गांव की मेहनती लड़की है, बहुत सुंदर तो नहींं किन्तु सांवली सलोनी आकर्षक अवश्य है।

माध्यम कद और पतली सी मालती, जब लहरा कर चलती तो मनोहर का दिल जैसे उसकी पायल के घुंघरू की आवाज के साथ ताल मिला कर धड़कने लगता है।

शादी के चार महीने बाद ही खूब सिंह ने दोनो बेटों को उनके खेत मकान बांट कर, खुद मुख्तयार कर दिया।

और एक हिस्सा अपने पास रख जिम्मेदारी सीमित कर ली।

उनकी पत्नी ने कहा भी की,अभी से क्यूं ?

किन्तु उन्होंने कहा कि इनके लिए यही सही है कि, अपना कमाएं अपना बचाएं।

मनोहर मेहनती तो था ही, मालती के साथ ने उसे भाग्यशाली भी बना दिया। दोनों की मेहनत रंग लाई और एक ही दिन उनके घर बेटी राधा ओर ट्रेक्टर आ गया।

जमीन तो ज्यादा नहीं थी लेकिन उनकी मेहनत से तीस बीघा जमीन पचास बीघा वाले किसानों से ज्यादा अनाज छोड़ती थी।

और साथ ही बीस तीस बीघा मनोहर ठेके बटाई पर भी ले लेता था।

दो साल की अथक मेहनत से उनके घर मे सारी सुख सुबिधा सारी खुशियां आ गईं थीं।

सुबह ही मनोहर ने कुछ जमा कुछ कर्ज से ट्रैक्टर खरीदा था, ओर शाम को उनके घर एक पुत्री ने जन्म लिया, उसका नाम राधा रखा गया।

समय अच्छा था फसल सोना उगल रही थी।

मनोहर की मेहनत भी बरकार थी ।

सारे गांव में मनोहर और मालती मिशाल थे।

बेटी के जन्म के बाद मालती का समय खेत खलिहान में कुछ कम होने लगा। मनोहर भी ट्रेक्टर आने के वाद से ट्रेक्टर की कमाई के चक्कर मे खेतो में कुछ कम ध्यान देने लगा ।

नतीजा इस बार उनकी फसल पर दिखाई दिया।

मालती ने मनोहर को समझाया कि, ऐंसे काम नहींं चलेगा जी, ट्रेक्टर पर कोई आदमी रख लो और खेती पर खुद ध्यान दो।

खेती बिल्कुल बच्चों जैसी होती है, जैसे मां बाप के ध्यान न देने से बच्चे बिगड़ जाते हैं, वैसे ही मालिक के ध्यान न देने से खेती भी खराब हो जाती है।

मनोहर को बात जँच गई, उसने गांव में मज़दूरों से कहा कि अगर कोई ट्रेक्टर चलाना जानता हो और काम करने का इच्छुक हो तो उसके साथ काम करले।।

गांव का डालचंद ट्रेक्टर चलाया करता था, उसके पास खुद की जमीन न के बराबर थी उसने मनोहर के साथ काम करना शुरू कर दिया।

ऐंसे ही साल बीत गया मनोहर के घर बेटे का जन्म हुआ, डालचंद अपने घर से शराब की बोतल ले आया और बोला आओ मनोहर आज बेटे के जन्म की खुशी में दावत करते हैं।

मनोहर बोला, न भाई डालल्लू मैं नहीं पीता यार।

अरे यार यूं कोन रोज़ पीता है, आज तो मौका है, फिर थोड़ी सी से क्या होता है।

लो पीओ हमारे साथ हम कोनसा रोज़ रोज़ कहते हैं।

और ये कह कर उसने गिलास मनोहर को थमा दिया।

और मनोहर न जाने कियूं उसे मना नहीं कर पाया।

किन्तु ये सिलसिला यहीं खत्म नहींं हुआ और आये दिन ऐसी दावतें होने लगीं।

मालती दो छोटे बच्चों की देखरेख में मनोहर की ओर थोड़ा कम ध्यान देती थी, उधर मनोहर ये कमी शराब पीकर पूरी करने लगा। डालचंद गांव में छिप कर शराब का अबैध धन्धा करता था और घर पर उसकी पत्नी भूरी भी शराब बेचने में मदद करती थी। एक दिन शाम को डालचंद शराब लेकर नहीं आया, तो मनोहर उसके घर चला गया। डालचंद का घर गांव के बाहर एक छोर पर तालाब के किनारे था। कच्चा छोटा सा लेकिन सुंदर।

मनोहर ने आवाज लगाई," डालु,, ओ डाल्लू !

कौन है ? भूरी ने दरवाजा खोल कर पूछा।

अर्रे मालिक आप आओ आओ अंदर आओ।

कह कर भूरी अंदर हो गई

मनोहर भूरी को देख,, देखता ही रह गया जैसा नाम बैसा ही रूप रंग।

भूरी तीस वर्ष की गोरी लंबी चंचल औरत है।

उसकी सुंदरता किसी को भी दीवाना करने के लिए पर्याप्त है।

क्या देख रहे हो मालिक ? भूरी ने अदा से मुस्कुरा कर पूछा।

आये, कु.. कुछ भी नहींं

डालचंद कहाँ है आया नहीं आज ?

ये तो दो तीन दिन के लिए बाहर गए हैं,कोई काम था मालिक।

न ना ! का, म !

कोई काम नहीं था भाभी बस ऐसे ही।

अच्छा चलता हूं, मनोहर भूरी को एकटक देखते हुए अचकचा कर बोला।

मालिक कोई काम हो तो हमसे बता दो हम भी आपकी ही हैं कोई कमी नहींं छोड़ेंगे सेवा में।

कहते हुए भूरी अदा से आंख दबाकर उठी और बोतल उठा लाई।

लो मालिक कुछ जलपान तो कर लो चले जाना मैं कोनसा आपको खा जाऊँगी।

खा जाऊंगी पर जोर देते हुए भूरी ने शराब गिलास में उड़ेल दी।

लो मालिक आज मेरे हाथ से पीओ।

कह कर भूरी भेद भरी मुस्कान से मनोहर को देखने लगी।

मनोहर बैठ कर पीने लगा और भूरी उसके सामने नीचे जमीन पर बैठ गई।

भूरी का आँचल यँ ही सरका या किसी मतलब से सरकाया गया मनोहर समझ ना पाया किन्तु भूरी के योवन पुष्पों का इतने करीब से यूं दीदार उसे मदहोश करने लगा।

अब ये नशा शराब का था या भूरी के जवान जिस्म का, जो भी हो मनोहर के होश पूरी तरह उड़े हुए थे।

तभी भूरी ने पूछा मालिक, मालकिन आपको अब समय नहींं दे पाती होंगी,

दो दो छोटे बच्चे हैं कहाँ समय मिलता होगा, थक जाती होगी बेचारी।

बस रात को ही बच्चों को सुलाने के वाद ?

मनोहर भावुक हो गया, अरे नहीं भूरी उसे सच मे टाइम नहींं मिलता अब, ना रात को ना दिन को, बस खुद में ही मस्त है।

मुझसे तो जैसे उसे अब कोई सरोकार ही नहींं है।

रात को हाथ लगाऊं तो कहती है, दो दो बच्चे हो गए अब ये सब ! अच्छा लगता है क्या।

ये तो गलत है मालिक प्यास तो प्यास है, भूरी ने बड़ी अदा से कहा।

तो क्या करूँ भूरी, कहाँ प्यास बुझाऊँ बस ये शराब ही एक सहारा है।

कहीं और हाथ लगा कर देख लो मालिक, भूरी उसके सामने थोड़ा और झुकते हुए बोली, शायद कोई और भी आपकी तरह प्यासा हो।

और न जाने जान कर या अनजाने मनोहर का हाथ भूरी के वक्ष से टकरा गया।

उन दोनों के बीच वो सब हो गया जो शायद नहीं होना चाहिए था। महीनों के प्यासे मनोहर को भूरी ने भरपूर शबाब का रस पिलाया।

मनोहर को डाल्लू के घर शराब और शबाब दोनों मिलने लगे।

मालती की लापरवाही और भूरी के रंग रूप ने मनोहर को भूरी का ही बना दिया।

मनोहर का पैसा भूरी के घर जाने लगा कुछ शराब के मूल्य के तौर पर। कुछ भूरी की ज़रूरतों और उसके प्यार के हक के नाम पर।

इधर खेती पर ध्यान न देने से फसलें चौपट होने लगीं, उधर रोज ट्रेक्टर बिगड़ने लगा और मरम्मत के नाम पर अच्छी खासी रकम जाने लगी।

मनोहर के घर के हालात बिगड़ने लगे, उधर डालचंद का पक्का और बड़ा मकान बन गया।

मालती जब तक समझ पाती बहुत देर हो चली थी। अब तो उसके समझने के दिन गए थे। आर्थिक कमज़ोरी से ट्रेक्टर की कर्ज़ की किस्तें भी जानी बन्द हो गईं, बैंक से नोटिस आने लगे। तब भूरी और डालचंद्र ने उसे सुझाया की ट्रेक्टर बेच दो नहींं तो बैंक ट्रेक्टर और ज़मीन दोनो ले लेगी।

और डालचंद ने मात्र दस हज़ार रुपए और कर्ज चुकाने के बदले ट्रेक्टर अपने नाम कर लिया। उस समय भूरी ने बड़ी अदा से कहा था कि, मालिक ये ना समझना कि ट्रेक्टर पराया हो गया, हम आपके हैं हमारी हर चीज आपकी है।

जैसे आपकी हर चीज़ हमारी है, क्यूँ है ना मालिक ?

और ये कहते हुए उसके चेहरे पर एक अर्थ पूर्ण कुटिल मुस्कान थी, और वैसी ही मुस्कान के साथ डालचंद उसका समर्थन कर रहा था।

मालती रो रही थी खुद की लापरवाही को कोस रही थी, अपनी बर्बादी पर सर पीट रही थी कि क्यूं वह मनोहर का ध्यान नहींं रख पाई क्यूं वह पति पत्नी के स्वाभाविक संबंधों से उदासीन हो गई।

इधर मनोहर की शराब की आदत में उसके खेत भी बिकने लगे, मुश्किल से दस बीघा खेत बचे थे अब घर मे भुखमरी के हालात पैदा होने लगे।

मनोहर उस खेत का भी सौदा करने की बात कर रहा था कि, मालती रोते हुए उसके पैरों में गिर गईं कहने लगी आपका दोष नहीं है, मैं ही अपने घर गृहस्थी और आपके प्यार को संभाल नहीं भूल है मुझे माफ़ कर दो।

अब से आप बस मेरे वही मनोहर बन जाओ वह रोती जाती थी और कहती जाती थी।

हम फिर से मेहनत करेंगे फिर से सुखी जीवन जिएंगे बस आप शराब छोड़ दो।

उस दिन मनोहर ने शराब नहीं पी थी वह भी थक गया था उधर भूरी भी अब इस से सीधे मुंह बात नहींं करती थी।

उसने रोती हुई मालती को उठा कर गले लगा लिया।

प्यार का दरिया पूरे वेग से बहा जिसके साथ दोनों के मन की प्यास बुझने के साथ ही सारे गीले शिकवे वह गए।

मनोहर अब शराब नहीं पीता, वो फिर से मेहनती किसान बन गया है।

मालती अब इसे बिल्कुल अकेला नहीं छोड़ती। रात को भी उसे पूर्ण प्यार का अहसास कराती है।

मनोहर इसके साथ पूर्ण सन्तुष्ट और खुश है।

कभी कभी वह अपने यानी डालचंद के ट्रैक्टर पर मज़दूरी करता है जिसकी एवज में उसे अपना खेत जोतने का पैसा भी नहीं देना पड़ता और कुछ पैसे भी कमा लेता है। मालती अपने बच्चों और खेतों की समान देखभाल करती है उसे डर है कि कहीं फिर भूल ना हो ओर फिर कोई ना बिगड़ जाए।

भूरी अब मनोहर को देखती भी नहीं किन्तु मनोहर उस से भी खुश है।

वह कभी - कभी अकेला बैठ कर सोचता है कि उसकी शुरुआती भूल क्या थी।

शराब पीना या भूरी की ओर आकर्षण और वह पाता है कि वास्तविक भूल शराब पीना है, क्योंकि न उसे शराब की लत होती और न वह भूरी के घर जाने की भूल करता, ओर ना ही हालात ऐसे खराब होते।


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