फेयरवेल पार्टी

फेयरवेल पार्टी

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  बारहवीं कक्षा के अंतिम दिन थे। एक महीने बाद इम्तिहान देने थे। इसलिए ग्यारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों ने हमारे लिए फेयरवेल पार्टी रखी थी।

बात पुरानी है। तब फेयरवेल पार्टी में ड्रेसकोड नहीं होता था। जिसके पास जो सबसे अच्छा लिबास होता था वही पहन कर चला जाता था।

इत्तेफाक से उसी साल की सर्दियों में मेरी दीदी की शादी हुई थी। तब मेरे लिए सूट सिलाया गया था। मैं खुश था कि फेयरवेल पार्टी में वह सूट पहन कर सबकी तारीफ बटोरूँगा। 

हाँ अपने दोस्त शशांक के बारे में सोंच कर दुखी था। उसका परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। उसके पास जो अच्छे कपड़े थे वह पुराने थे। पर वह शशांक की मदद भी नहीं कर सकता था। उसे बुरा लगता। 

फेयरवेल पार्टी के दिन सभी अपने हिसाब से बन ठन कर आए थे। मैं अपने सूट में इतरा रहा था। शशांक एक जींस और टीशर्ट पहन कर आया था। 

कई क्लासमेट्स ने मेरी तारीफ की। उनमें लड़कियां भी थीं। मैं हवा में उड़ रहा था। शशांक कुछ सकुचाया सा सबसे मिल रहा था। 

पार्टी में कुछ लोगों ने परफार्मेंस दी। किसी ने डांस किया। किसी ने कॉमेडी। एक ने दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे फिल्म के सीन में शाहरुख खान की नकल करके दिखाई। सबने तालियां बजाईं। मैंने भी खूब ताली बजाई। 

अंत में शशांक कुछ संकोच से आगे बढ़ा। उसके बैठने के लिए एक कुर्सी रखी गई। म्यूजिक रूम का गिटार उसे दिया गया। 

शशांक ने गिटार थामा। उसके बाद तो जैसे उसमें गज़ब का बदलाव आ गया। उसने गिटार बजा कर एक बहुत अच्छा गाना गाया। सबसे अधिक तालियां बजीं। एक और एक और का शोर गूंजने लगा। फिर तो शशांक ने चार गाने गाए। 

सभी शशांक के इर्द गिर्द जमा थे। उसकी तारीफ करते नहीं थक रहे थे। 

मैंने भी अपने दोस्त शशांक की तारीफ की। पर पहली बार मेरे मन में किसी के लिए ईर्ष्या का भाव जागा था।


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