पग-पग पर रेड लाइट

पग-पग पर रेड लाइट

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घर से निकलने के पहले के सारे पड़ाव पार कर अब वह मुख्य सड़क पर थी। वसु उर्फ वसुंधरा माथुर...... बिलासपुर की एक मशहूर एम एन सी में साफ्टवेयर इंजीनियर.... यह था परिचय उसका।

"ऑटो.......... " हाथ दिखाकर वसुंधरा ने ऑटो रुकवाया। "जनकपुरी चलो भैया " "ज़रा जल्दी करना भैया। लेट हो रही हूँ । " बीच-बीच में ट्राफिक की रेड लाइट उसका सबसे बड़ा अवरोध बन गयी थी आज। "भैया इस गली से........." "हाँ भैया इधर से ले लो........" भैया इधर ट्रैफिक सिग्नल नहीं है ,इधर से ही लो...... वगैरह-वगैरह.... दिशा निर्देश जारी करते हुए आखिरकार वसु ने अपनी मंज़िल पा ही ली। आफिस पर उतरते ही दौड़ते हुए ऑटो चालक को पैसे थमाए और लिफ्ट में जा घुसी। आनन फानन में वह बाॅस के सम्मुख खड़ी थी। आज ही क्यों..... वसु के रास्ते में तो प्रतिदिन ही एक नहीं ऐसी कई रेड लाइटें गतिरोध पैदा करती ही रहती हैं। वसु अभ्यस्त हो चली है ऐसी रेड लाइट्स को लेकर।

आज सुबह उठने में थोड़ी देरी क्या हो गई सभी के मुंह कुप्पा ही मिले। "भाभी मेरा टाॅवेल दे देना प्लीज़ । " बाथरूम से पुकारती वसु के जवाब में भाभी झुंझलाई-" मुझे क्या पता। खुद आकर देखो।" अरे बाप रे! पहली रेड लाइट जल गयी। गलती हो गयी जो पहले कपड़े चैक नहीं किये । बेचारी वसु। नहाकर किचन में घुसी तो ताई जी की पावरफुल रेड लाइट जल- बुझ रही थी। बुझना दया और ममता की निशानी थी। ताईजी बोली - "रहने दो। तुम तो तैयारी करो अपने जाने की। घर का काम तो होता रहेगा।"

"ताईजी मैं आज उठ न पाई। "

" कुछ कहा क्या "वे बोलीं।

वसु का दिल टूट गया। यही ताईजी माँ के सामने कितना मीठा बोलती थीं। माँ का स्वर्गवासी होना वसु का सबसे बड़ा दुर्भाग्य था। सबसे बड़ी लाल बत्ती थी दादी माँ। क्या नहीं करना अर्थात् रेड लाइट यानि बंदिशों के निर्देश ज्यादा थे और ग्रीन सिग्नल (छूट) के निर्देश बहुत कम। क्या लड़की होना सचमुच अपराध है या मुझे ही ऐसा लगता है। हर कदम पर स्क्रीनिंग। छन-छन कर निकलना पड़ता है यहाँ पर पल-पल में। "शीघ्रता से काम निपटाती चलूं। शाम को जल्दी ही वापस लौटना भी है। वर्ना दादी, ताऊजी, पापा, बड़े भैया की प्रश्नों की लम्बी फेहरिस्त हाज़िर मिलेगी।" कहा न ज़िन्दगी में रेड लाइट हर पड़ाव पर उसकी प्रतीक्षा में खड़ी मिलेगी। लौटने वाले रूट की लाल बत्तियाँ...... वसु मुस्कुराई।

ज़िन्दगी पर छाई लाल रंग की बत्तियों से जीवन की हरियाली जैसे सिमट-सी गई थी ग्रीन सिग्नल की तरह ही। वसु लैपटॉप पर उंगलियाँ चलाते हुए आप ही आप से बुदबुदाती जा रही थी।



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