पेंटिंग
पेंटिंग
आकांक्षा और अर्पण की ये आखरी मुलाकात थी। कॉलेज के आखरी दिनों में हुई लड़ाई का अबतक कोई समाधान नहीं निकल पाया था। आकांक्षा ने तय किया था कि अपने आप को सही साबित करने के लिए और इस रिश्ते को बचाने के लिए ये उसकी आखिरी कोशिश होगी। इसी एक कोशिश के लिए अर्पण को मनाने में आकांक्षा ने जमीन आसमान एक कर दिया था । आखिर बहोत मुश्किल से ही सही वो बात करने के लिए तैयार हुआ।
वो ऑटो से निकलकर सीधा गार्डन की ओर आगे बढ़ी, ये वहीं गार्डन था जहां वो हर रोज़ अर्पण से मिला करती थी। मन में बहुत सारी दुविधा के बीच अर्पण को आते देख आकांक्षा की आंखों में चमक आयीं पर उसके हाथ में पॉलीथिन बैग देख आकांक्षा को थोड़ी हैरानी हुई पर अर्पणने आते ही बैग उसके हाथ मे देते हुए कहा कि मैं यहाँ कुछ कहने सुनने के लिए नही आया हूँ और न ही मुझे कोइ सफाई चाहिए, में इस रिश्ते को यहीं खत्म करना चाहता हूँ इतना कहकर वो चला गया। आखिर वो सिर्फ सामान नही था, बहोत सारी यादें इन चीजों से जुड़ी थीं। पर उस वक़्त तो वो कुछ समझ ही नहीं पाई की क्या करें। कुछ पल बाद वो थोड़ी स्वस्थ हुई और अपना मन बनाकर वो भी अपने घर जाने के लिए तैयार हुई।
वो सीधा अपनी रूम पर पहुंची और अपना बैग उठाकर सीधा स्टेशन पहुंची। उसी वक़्त अर्पण के दोस्त का कॉल आया। वो शाश्वत को मनाने के लिए और असल बात बताने के लिए उसे मना रहा था पर आकांक्षा ने कुछ भी बताने के लिए मना कर दिया। वो हमेशा के लिए घर जा रही थी क्यूंकि अब उसकी पढ़ाई खत्म हो चुकी थी। बस में बैठे बैठे वो सारे रास्ते अर्पण के बारे में सोच रही थी पर अब बात बिगड़ चुकी थी।
वो घर पहुँचने के कुछ दिन बाद अपनी सभी स्कूल फ्रेंड्स से मिली वहीं उसे मालूम हुआ की कुछ दिन बाद उनकी एक बेस्ट फ्रेंड हृतिका की सगाई हैं ।
दोस्त की सगाई में काफी सारी पुरानी स्कूल फ्रेंड्स से मिलकर वह काफी खुश थी और अपना मन उसमें पिरोने की कोशिश कर रही थी साथ ही साथ बार-बार अपना फोन भी चेक कर रही थी शायद अभी भी उसे अर्पण के मेसेज का इंतजार था और उसी दौरान उसका फोन पर्स में डालते वक़्त नीचे गिर गया, पर अचानक एक लड़के का ध्यान गया उसने फोन को नीचे गिरते देख तुरंत फोन उठाया और उसे लौटाने के लिए उसके पास आया मगर वो कहीं और ही खोइ हुई थी उसने फोन तो हाथ में ले लिया मगर थैंक्यू कहने तक कि चेष्टा नहीं की। फिर एक दोस्त ने ईशारा कर जताया तब जाकर उसने थैन्क्स कहा पर उसे ये शुक्रिया कुछ हजम नहीं हुआ, वो बीना कुछ बोले चला गया।
कुछ दिन बाद सभी फ्रेंड्स ने इस खुशी में कहीं बाहर जाने का प्लानिंग किया। हृतिका ने अपने चाचा के बेटे को बोलकर गाड़ी का इंतजाम किया। बाहर जाने से पहले उसने सबको इंट्रोड्यूज कराया। हाय..! मै शाश्वत..! कहकर उसने आकांक्षा को छोड़कर सबसे हाय हेल्लो किया। ये वही बंदा था जिसने आकांक्षा का मोबाइल लौटाया था। शायद वो अभी तक उस बात से नाराज़ था। सब गाड़ी मै बैठे, थोड़ी इधर उधर की बातें, थोड़ी मस्ती थोड़ा ड्रामा, खाना पीना और शाम को बीच का मज़ा और रात को सभी घर लौटे।
ऐसे ही गर्ल गैंग में अकेला कान्हा, सबकी काफी अच्छी दोस्ती हो गई थी ।अब रितिका की शादी भी नजदीक आने लगी थी तो आकांक्षा और शाश्वत का बार बार मिलना होता रहता था। वैसे ही एक दिन वो रितिका के साथ पार्लर के लिए गई वहीं शाश्वत ही गाड़ी लेकर साथ आया था।
वो दोनों गाड़ी में बैठे बैठे बोर हो रहे थे कि अचानक आकांक्षा का ध्यान गाड़ी में लटके किचेन पर पड़ा। उसमे लगी एक लड़की की फोटो देख वो बोल पड़ी " वाउ...! ब्यूटीफुल गर्ल, गर्ल फ्रेंड हैं?" पूछते हुए उसने शाश्वत की ओर देखा। जवाब में "हमम..! पर है नहीं , थी" कहते हुए अधूरा सा उत्तर दिया। प्रतिक्रिया में आकांक्षा ने दुःख जताया। फिर शाश्वत ने आकांक्षा को अपने बारे में बताने को कहा। उत्तर में वो भी अपने ब्रेक अप के बारे में बताने लगी कि कैसे दोस्तों के बीच लगी एक छोटी सी शर्त के तहत किए छोटे से प्रेंक ने उसके गहरे प्यार में दरार डाल दी और अब उनके बीच कोई रिश्ता नहीं रहा। ये सुनकर शाश्वत ने भी अपने ब्रेक अप के बारे में बताया । वो ये बात बताते हुए काफी भावुक हो गया था। उसे देख वो खुद भी भावुक हो जाती है और थोड़ी देर के लिए माहौल थोड़ा गमगीन हो जाता है पर बाद में आकांक्षा हालात संभालते हुए लौंग ड्राइव पर जाने का सुझाव देती है, और उसका मन बहलाने के लिए उसे कॉफी शॉप ले चलती है। इस तरह एक नई दोस्ती कि शुरुआत होती है। दोनों के बीच दोस्ती धीरे धीरे और गहरी हो जाती है।
शॉपिंग हो या कहीं बाहर जाना हो, दोनों हर जगह साथ में ही दिखते थे। शाश्वत के मन में भी आकांक्षा को लेकर प्रतिभाव अब बिल्कुल बदल रहा था। वो धीरे धीरे उसे पसंद आने लगी थी।
अब शाश्वत इस दोस्ती को थोड़ा और आगे बढ़ाना चाहता था। एक दिन मौका देखकर उसने आकांक्षा के हाथ में एक छोटी सी डायरी दी और कहा कि उम्मीद है तुम इसे पढ़ोगी। उसमे आकांक्षा से जुड़ी हर एक छोटी से छोटी बात का ज़िक्र था कि कैसे पहली मुलाकात में ही हल्की सी बेरुखी हुई उससे और बाद में उसे उसकी हर बात पसंद आने लगी, इस तरह हर एक मुलाकात का हर अनुभव लिखा था उसने और आखिर में प्यार का इजहार किया।
आकांक्षा को भी शाश्वत पसंद था पर थोड़ा वक़्त लगा उसे संभलकर नए रिश्ते में ढलने में मगर अब धीरे धीरे दोनों ही एक नए ढांचे में ढलने लगे थे।
दोनों खुश थे और मुलाकातों के सिलसिले और भी गहरे होते जा रहे थे ऐसे ही एक दिन दोनों कॉफी शॉप में बैठे थे कि अचानक अर्पण का कॉल आया। स्क्रीन पर फ़्लैश होते नंबर को देख वो थोड़ी बौखलाई पर संभलते हुए उसने कॉल उठाया तो सामने से अर्पण बौखलाते हुए कुछ बोले जा रहा था। आकांक्षा ने थोड़ा शांत होकर बात करने के लिए कहा पर वो अजीब हड़बड़ी में था, उसने बताया कि कैसे वो अपने दोस्त के घर गया और वो पेंटिग जो तुम्हे उस दिन किसीने गिफ्ट की थी वो उसे वहां स्टोर रूम में मिली और दोस्तों से मारपीट के बाद उसने उसे उस पेंटिंग के बारे में बताया कि वो एक मजाक था।
वो हर मुमकिन कोशिश करने लगा उसे समझाने की और बहुत गिड़गिड़ाने लगा पर आकांक्षा ने बड़े ही शांत होकर कहा कि अगर एक बेजान, बेआवाज और अनजान तस्वीर हमारे तीन साल पुराने रिश्ते की उम्र एक ही झटके में तय कर सकती है तो ऐसे रिश्ते को मै ताउम्र कैसे चलाऊं ?
तकलीफ इस बात की नहीं की तुम ने रिश्ता ही खत्म कर दिया तकलीफ इस बात की है कि तुम ने एक बार कोशिश तक नहीं की कि आखिर बात क्या है , वो पेंटिंग किसने गिफ्ट की, कौन था वो, नाम, पता कुछ तो जानने की कोशिश या सुनने की कोशिश की होती तो इतना दुःख नहीं होता। खैर अब जो हुआ सो हुआ पर अब मैं बड़ी मुश्किल से आगे बढ़ी हूं और पीछे मुड़ना नहीं चाहती। मै एंगेज्ड हूं और खुश हूं, बेहतर है तुम भी आगे बढ़ जाओ। इतना कह कर उसने बिना रेस्पॉन्स का इंतजार किए फोन काट दिया। वो व्यथित थी पर मन में संतोष भी था कि आज एक किस्सा खत्म हुआ।
