Pehli car
Pehli car
हैलो ऑटो ! खाली नहीं है।
दूसरे ऑटो को ! इतनी रात को वहां नहीं जाऊँगा।
यह कहकर न जाने कितने ऑटो वाले अपने - अपने रास्ते निकल लिए !
इधर मैं अगले ऑटो वाले को बुला ही रहा था कि पीछे से आवाज़ आयी।
"भाई साहब ! अब इस समय तो ऑटो मिलना बहुत मुश्किल है।" - पास में खड़े एक सज्जन ने मेरी ओर अपनी निगाह डालते हुए बोला।
" सही कह रहे है आप , कोई भी रुकने को तैयार ही नहीं है।" - मैंने एक मुस्कान के साथ उनकी बात का जवाब दिया।
" वैसे कहा जाना है आपको ? " - उन्होंने मुझसे पूछा।
जी लालपुर जाना हैं।
" अरे वहां तो बहुत मुश्किल है कि कोई ऑटो वाला इस समय जाएगा।" - उन्होंने एक भरी जुबान से कहाँ। " भाई साहब अगर आपको कोई ऐतराज ना हो , तो मै आपको वहां छोड़वा सकता हूँ।"
" वो कैसे ! " - मैंने थोड़ा आश्चर्य होते हुए पूछा।
" दरअसल मेरे पास खुद की कार है बस मेरा बेटा लेकर आता ही होगा।" - उन्होंने फ़ोन पर किसी को फ़ोन लगाते हुए कहा।
ओह ! अच्छा है।
हाँ ! क्या करे मुझे लेना पड़ा , दरअसल एक बार की बात है मैं भी एकदम आपकी तरह यहाँ पर फ़स गया था ; और उस समय मेरे साथ दो छोटे - छोटे बच्चे भी थे I फिर हमने तो मन बनाकर कार लेली , ताकि आने वाले समय में इस तरह की परेशानी का सामना ना करना पड़े।
" बिलकुल सही कहा है आपने आदमी को अपनी जरूरत के हिसाब से सामान ले लेना चाहिए। " - मैंने उनकी बात का पूरा समर्थन करते हुए बोला।
" ली जिये आ गया मेरा बेटा , भाई साहब आप लोग पीछे की सीट पर बैठ जाईये और हम लोग आगे और बीच वाली सीट पर बैठ जायेंगे। " - कार का दरवाज़ा खोलते हुए बोले।
जी बहुत बहुत शुक्रिया ! आपको आज आप तो हमारे लिए फरिस्ता बन के आए है।
हाँ... हाँ ... भाई साहब ! मेरा तो ऐसा ही स्वभाव है कि हम तो बहुत जल्दी ही घुल मिल जाते है। और वैसे भी भाई साहब दो पल की जिंदगी है ; अगर हम सभी एक दूसरे के काम नहीं आएँगे ; तो हमलोगों के इस धरती पर जन्म लेने का मकसद ही समाप्त हो जाता है।
भाई साहब ! मैं तो " जैसी करनी वैसी भरनी पर विश्वास रखता हूँ। "
हाँ बहुत सही बोल रहे है आप,
जो जैसा करता है वैसा ही उपर वाला उसको देता है।
" वैसे मैं रमेश सिंह , दिल्ली में एक प्राइवेट कंपनी में काम करता हूँ , और ये मेरी पत्नी ' पूनम 'है I " - ये कहते हुए मैंने अपना परिचय दे दिया।
ओह ! अच्छा है, मेरा नाम समशेर यादव है और ये मेरा बेटा पंकज है। हम लोग का निर्माण कार्य का बिज़नेस है।
" अच्छा ! मैं जहाँ काम करता हूँ वो कंपनी भी निर्माण कार्य करती है जैसे का सड़क निर्माण , ओवर ब्रिज निर्माण आदि ... । " - मैंने उनकी बात में और अधिक उत्सुकता दिखाते हुए बोला।
" क्या बात है भाई साहब ! चलिए आपकी कंपनी में कुछ काम होगा मेरी कंपनी लायक तो जरूर बताएगा " - इतना बोलते ही एक हाथ से अपना कार्ड मेरे को दे दिए।
वैसे आप की कार तो बहुत अच्छी है अगर आप बुरा नाम माने तो एक बात पूछ सकते है ?
हाँ ... हाँ ... पूछिए भाई साहब !
" आपकी कार बहुत महंगी होगी ना? " - मैंने अपने मन को बहुत रोकते हुए पूछ ही लिया।
धन्यवाद भाई साहब ! महंगी क्या कहेंगे १२ लाख की पड़ी है।
" १२ लाख .. १२ लाख ... पूनम उठ गयी, जोकि कुछ समय से कार में सो रही थी
और इधर हमारा लालपुर भी आ गया।
" अरे आइए घर पर एक कप चाय ही पी ली जिये ? " - मैंने आग्रह करते हुए पूछा।
" अरे नहीं ! बहुत रात हो गयी है फिर कभी आएँगे। " - ये बोलते हुए वे निकल गए।
" क्यों न हम लोग भी एक कार खरीद ले। " - पूनम ने रास्ते में चलते हुए मुझसे पूछ ही लिया।
कार ! तुमने मेरे दिल की बात पढ़ ली , सोच तो मैं भी रहा हूँ इस बारे में लेकिन पापा, भैया लोग नहीं मानेंगे। और वैसे भी इतने पैसे तो मेरे पास नहीं है कि मैं खुद ही एक कार खरीद सकूँ।
ट्रिन ट्रिन .. पापा जी ने दरवाज़ा खोला।
" जम्हाई लेते हुए .. आ गए तुम लोग , कितनी देर से इंतज़ार कर रहा था " - हम दोनों को देखते हुए बोले l
हाँ ! हमलोगों को आने में बहुत देर हो गयी, क्योंकि कोई ऑटो वाला आने को तैयार ही नहीं हो रहा था। वो तो भला हो एक सज्जन का जिन्होंने इतनी रात को हम लोग को घर पर छोड़ दिया ; वरना सारी रात वही पर इंतज़ार करना पड़ता।
" कितनी बार कहा है तुम लोगो को की लोकल से आ जाया करो , कम से कम ये सब दिक्कतें तो नहीं उठानी पड़ती " - मेरे को देखते हुए बोले।
आपको तो पता है ना कि कितनी भीड़ होती है लोकल में !
" अच्छा ठीक है अब जाओ सो जाओ " - एक गुस्से भरी आवाज़ में ' भीड़ होती है लोकल में ' भुनभुनातें हुए दरवाज़ा बंद कर दिया।
" अरे सुनिए, बाबू जी बुला रहे है। " - पूनम ने नीचे से आवाज़ लगाते हुए बोला।
" अरे रमेश ! जा जरा बाजार से एक ऑटो लेते आ तेरी भाभी को मैके जाना है l"- पिता जी ने बोला।
ऑटो ! क्या हुआ ? सब कुशल मंगल तो है ?
" अरे इनके पापा की तबियत बहुत ज्यादा ख़राब है। " - मेरे को देखते हुए थोड़ा उदास मन से बोले।
क्या ! किसने बताया ?
" भाभी को फ़ोन आया था ! आप जल्दी जाइए एक ऑटो लेते आइए , ये सब बातें करने का समय नहीं है। " पूनम ने बोला।
हाँ - हाँ ठीक है। लेकिन मुझे लगता नहीं की इस समय कोई ऑटो वाला जाने को तैयार होगा।
" अरे! अभी गया नहीं और भविष्यवाणी पहले ही कर दी। "- पिता जी चिल्लाते हुए बोले।
ट्रिन ट्रिन ...
"हाँ पूनम बोलो " - फ़ोन रिसीव करते हुए मैंने बोला।
"ऑटो नहीं मिली क्या ? " - उधर से आवाज़ आयी।
अरे कितनो से पूछ चूका हूँ लेकिन कोई भी वहाँ चलने को तैयार ही नहीं है।
"पापा जी ! इनका अभी फ़ोन आया , बोल रहे थे कि कोई भी ऑटो वाला चलने को तैयार ही नहीं हो रहा हैं। " - पूनम ने कमरे में प्रवेश करते हुए बोला।
रुको ! मैं देख कर आता हूँ ये सही से पूछ नहीं रहा होगा । दरवाज़ा खोलकर जैसे ही बाहर निकलने लगे वैसे ही पीछे से आवाज़ आयी।
" पापा जी रहने दीजिये, इन्होने अपने किसी दोस्त को बोल दिया ,वो अपनी कार लेकर आते ही होंगे।" - भाभी ने बोला।
कौन आएगा ?
वो शुक्ला जी का बेटा है ना ?
अच्छा ! ऐसा करो रमेश आ जाये , तो उसको भी अपने साथ ले जाओ , तुमको वह छोड़ते हुए आ जायेगा " - पापा जी ने कहा I
अरे पूनम उसको जल्दी आने के लिए बोलो ?
जी अभी फ़ोन करती हूँ।
" लीजिये ये भी आ गए।" - पूनम ने पिता जी की ओर इशारा करते हुए बोली।
"चलो सब सामान हो गया ? " - पापा जी ने बोला।
" सब हो गया पापा जी !" - भाभी जी आखिरी सामान रखते हुए बोली।
ठीक है अब चलती हूँ , पिता जी और माता जी का आशीर्वाद लेते हुए भाभी जी कार में बैठ गयी।
दरअसल मम्मी का स्वास्थ्य इन दिनों अच्छा नहीं चल रहा है इसीलिए वो अपना ज्यादा समय पलंग पर ही रहती है।
" मम्मी जी ये आपकी शाम की दवाई " - पूनम ने कुछ खूराक उनकी हाथों में देते हुए बोली।
मम्मी जी आपसे कुछ बात कहना चाहती हूँ ?
" हाँ बेटी बोलो ! " - मम्मी जी बहुत प्यार से अपना हाथ पूनम के चेहरे पर फेरती हुई बोली।
दरअसल मैं और ये सोच रहे थे कि अगर ...
क्या हुआ बेटी ? क्या बात है ?
" कुछ नहीं मम्मी जी बस ऐसे ही मन में विचार आया " - बहुत सोचते हुए पूनम ने बोला।
क्या विचार आया तुम्हारे मन में ?
यही कि ! क्यों ना हम लोग भी एक कार ले ले ?
कार ! लेकिन.. तेरे बाबू जी एकदम नहीं मांनेंगे तू तो जानती है ना उनका गुस्सा।
" हाँ मम्मी जी ! लेकिन आपको तो पता ही है कि कितनी मुसीबत होती हैं हमलोग को बिना कार के कही जाने में ! " - पूनम उनका सर दबाते हुए बोली।
हाँ समझती हूँ मैं बेटा ! क्यों ना तू एक बार बात करके देख शायद कुछ बात बन जाए ?
मैं !
" नहीं मम्मी जी आप एक बार बात करिये ना " - एक आग्रह के साथ निवेदन किया।
"अरे नहीं बेटी मेरी बात तो वो नहीं मानेंगे ! तू आज जाकर बात करके देख क्या बोलते है ? " मम्मी ने गाल पर हाथ लगाते हुए बोली।
"बहुत देर तक सोचने के बाद , ठीक है मम्मी जी आज पापा जी से बात करती हूँ। " - इतना कहते हुए और लाइट बंद करके अपने कमरे में चली गयी।
"हाँ पूनम " - उधर से आवाज़ आयी।
आप लोग ठीक से पहुंच गए ?
हाँ पहुंच गए और यहाँ पर अभी सब ठीक है वहाँ पर सबको बता देना।
" ठीक है ! बता देती हूँ , अच्छा वो जो कार लेने की बात थी आज मैंने मम्मी जी से चर्चा कर दी। " - पूनम ने अपना समझते हुए बोली।
क्या ! क्या बोली मम्मी ?
मेरे को बोली की तुम बात कर लो पापा जी से एक बार !
फिर ?
" सोच रही हूँ की जाके एक बार बात कर लूँ आप क्या बोलते हो ? " पूनम एक अच्छी पत्नी की तरह अपने पति से राय मांगी।
नहीं मानेंगे वो मुझे पता है।
एक बार बात करने में क्या हर्ज़ है।
ठीक है जाओ कर लो अच्छा ! मैं रखता हूँ , भाभी के पापा बुला रहे है।
" पापा जी इनका फ़ोन आया था , बोल रहे थे कि सब कुछ ठीक है और कल सुबह वहाँ से निकल लेंगे। " - पूनम गरम दूध और दवा देते हुए बोली।
" चलो अच्छा है ! वहाँ सब ठीक है जाओ अब तुम भी सो जाओ " - गर्म दूध का गिलास हाथ में लेते हुए बोले।
पापा जी मैं कह रही थी कि अगर ..
हाँ बताओ ?
" देखिये ना आज दीदी को जाने में कितनी दिक्कत हुई और उस दिन भी हम लोग को बहुत परेशानी हुई थी। " - पूनम ने अपनी असली बात ना कहते हुए फिर भी अपनी बात सामने वाले को अहसास करवा दिया।
क्या कहना चाहती हो ?
" पापा जी अगर कोई बड़ी समस्या ना हो तो क्यों ना हम लोग भी एक कार खरीद ले ? वैसे भी हम लोग का परिवार भी बड़ा हो गया है। " - अपनी नज़र एकदम नीचे करते हुए बोली।
" क्या दिक्कत होती है ? क्या लोग कार के बिना नहीं रह रहे है क्या ? " - पिता जी के सवाल दो और जवाब एक भी नहीं !
" क्या यादव जी के पास कार है क्या ? उनका परिवार तो हमसे भी बड़ा है। "- फिर वही जवाब पिता जी का जिसका पूनम के पास कोई उत्तर नहीं था।
और इसी के साथ पूनम ने अपना काम पूरा किया और पिता जी के कान में कार लेने की बात डालते हुए सोने चली गयी।
हैलो ! रमेश - भैया का फ़ोन !
"हाँ भैया " मैंने जवाब दिया।
पहुँच गए वहाँ ? कैसी तबियत हैं पापा जी की ?
हाँ भैया ! हम लोग तो पहुंच गए है और भाभी अभी हॉस्पिटल में पिता जी के साथ है।
मैं तो बाहर उनका इंतज़ार कर रहा हूँ और यहाँ पर सब ठीक है ,आप लोग परेशान मत हो। " - मैंने एक विश्वास भरी आवाज़ में कहा।
मैं कई बार तुम्हारी भाभी को फ़ोन किया मगर वो उठा नहीं रही है , बात कराओ अपनी भाभी से ?
भैया ! अभी तो केवल एक लोग को अंदर जाने की अनुमति दे रहे है ; जैसे ही बाहर आती है ; मैं आपसे बात करवाता हूँ
अच्छा ठीक है रमेश! मैं रखता हूँ बॉस बुला रहा है जैसे ही भाभी आये मुझसे बात कराना - इतना बोलते हुए भैया ने कॉल कट कर दी।
एक यही तो सबसे बड़ी समस्या है नौकरी पेशे वालो की ,
बॉस बुला रहा है , बॉस का फ़ोन है , बॉस को रिप्लाई देना है वगैरह ..
छोड़िये ये सब तो नौकरी वाले जाने , हम तो आगे बढ़ते है और देखते है और क्या - क्या होने वाला है इस कार खरीदने की प्रक्रिया में !
इधर मैं अपने घर आ गया। पूनम और मेरी बातचीत शुरू होती है।
" कल मैंने पापा जी से कार के बारे में बात की लेकिन वो तो एकदम नकार दिए , बोले क्या जरूरत है ? " - पूनम ने रमेश से कहा।
मैं जानता था कि वो नहीं मानेंगे।
" मेरी सलाह मानो तो एक बार भैया से भी बात कर लो ? " - पूनम एक जिम्मेदार बहू की नज़र से बोला।
" हाँ ठीक कहती हो , एक बार भैया से इस बारे में बात करता हूँ। "- इतना कहते हुए फ़ोन को स्पीकर पर लगाते हुए भैया को फ़ोन लगा दिया।
" हाँ रमेश !" - उधर से आवाज़ आयी।
भैया आप से कुछ बात करनी है अगर आप खाली है ?
हाँ बोलो रमेश ?
भैया ! मैं और पूनम बहुत दिन से सोच रहे थे। ... लेकिन आप से बोलने में हिचकिचा रहे थे कि पूछे कि ना पूछे ?
अरे अपनों से क्या हिचकिचाना ! बोलो क्या बात है ?
भैया ! क्यों न हमलोग भी एक कार खरीद ले , वैसे भी हम लोग का परिवार अब बढ़ गया है और आये दिन हमलोग को कार की जरूरत भी पड़ती रहती है।
कार ! तुमको तो पता है ना ! पिता जी कभी नहीं मानेंगे ?
हाँ भैया मैं जानता हूँ लेकिन प्रयत्न करने में क्या हर्ज़ है , वैसे भी पूनम ने अपनी कार वाली बात पिता जी के कानों में डाल दी है।
" सही कहा ! हमलोग को प्रयत्न करना चाहिए " - उनकी बात में एक मुस्कान और विश्वास साफ़ झलक रहा था।
मुझे तो यहाँ पर हरिवंश राय "बच्चन " की एक कविता याद आ गयी
" लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती ...
हिम्मत करने वालो की कभी हार नहीं होती ..."
तब मैंने कहा अब हमलोग को "तंगी " बनाने का वक़्त आ गया है ?
"तंगी" हमलोग का कोड वर्ड है जिसमें पिता जी को छोड़ हम सभी लोग इसके सदस्य है।
इसका उपयोग हमलोग तभी करते है ; जब हमलोगों को कुछ प्रस्ताव पिता जी के सामने रखना होता है ; जिसमें उनकी मंजूरी नहीं होती है। और ये कार खरीदने का प्रस्ताव भी उसी में है।
इसी प्रकार तंगी के सभी सदस्यों ने मुलाकात का समय रात को 8 बजे मम्मी के कमरे में रखने का निर्यण लिया, क्योकि उस समय पापा जी दुकान पर पान खाने जाते है।
तंगी की सभा में एक बात सबके सामने कांटे की तरह चुभ रही थी कि पिता जी के सामने बात रखने का भार कौन उठाएगा ?
पूनम तो नहीं क्योकि वो पहले ही उठा चुकी है ,
मैं तो नहीं क्योंकि आये दिन पिता जी से मेरी कहा सुनी होती रहती है।
फिर बचा कौन ?
भैया !
" अरे मैं नहीं " - एकदम साफ़ इंकार कर दिया।
मम्मी आप ?
अरे ! मैं नहीं इस उम्र में आग में घी डालने का काम नहीं करुँगी।
भाभी भी अभी नहीं है ?
" तब तो भैया को ही वो भार उठाना होगा " - मैंने सबकी सर्वसम्मति से बोला।
" अब आप सभी लोग कि यही इच्छा है तो मैं बस एक बार पूछूँगा, उसमे चाहे हाँ हो या ना हो ! " - भैया ने भी अपना फैसला सुना दिया।
जैसा कि हमेशा से होता है आज हमारी तंगी सेना के राजा "भैया " आगे - आगे और हम सभी सेना पीछे -पीछे अपने लक्ष्य ( पिता जी ) की ओर बढे जा रहे थे I और हमारे युद्ध की शुरुवात हो गयी और सामने वाली सेना ने शुरुवात में ही धावा बोल दिया , जिस धावे का हमारी सेना के पास कोई जवाब नहीं था।
साफतौर पर ! हम युद्ध हार गए और हमारी सेना दुम- दुमाकर वहाँ से भाग खड़ी हुई , इसको दूसरें शब्दो में कहे तो कार खरीदने के प्रस्ताव को एक सिरे से नकार दिया गया।
योजना के मुताबिक अब हम अपने "प्लान बी " पर धावा बोल दिए। महेश भैया ..
"महेश भैया " हमारे बगल के पड़ोस में रहते है और उनकी मेरे पिता जी से बहुत अच्छी बनती है।
अक्सर ! वो हमारे लिए "तास के पत्ते का एक्का " साबित होते है। जब कभी भी हमलोग को पिता जी से बात मनवानी हो और हम सभी लोग फेल हो जाये , तो हम सभी लोग अपने ' 'एक्का ' महेश भैया पर धावा बोलते है।
महेश भैया घर में प्रवेश करते हुए ,
" अरे चाचा आजकल घर पर नहीं आ रहे है " - महेश भैया की यही स्टाइल है वो सीधी बात नहीं करते है।
" अरे क्या बताये ? " - पिता जी ने बड़े बेरुखे मन से बोले।
" क्या हुआ चाचा कोई बात है क्या ? " - सब कुछ जानते हुए भी अनजान की तरह व्यवहार करते हुए।
" अरे क्या बताये आजकल पता नहीं इन लोग को कौन सा भूत सवार हो गया , कार लेने का ! क्या बिना कार के लोग नहीं रह रहे क्या ? "- उनका इशारा हमलोग को सुनाना था।
अच्छा ! चाचा एक बात बोले ?
" हाँ बताओ " - पिता जी ने अब अपनी नज़र घूमाते हुए बोले।
चाचा वैसे अब आपको भी एक कार ले लेनी चाहिए।
क्या महेश ! अब तुम भी इन लोग की भाषा बोलने लगे ?
" अरे ! क्या भाषा चाचा ! अब आपको भी कार की जरूरत है वैसे भी आपके दोनों बेटे और बहू सर्विस करते है ; और चाची का पेंशन भी आ रहा है ; तो इस हिसाब से पैसे की तो कोई दिक्कत मुझे दिखाई नहीं पड़ती है। " - महेश भैया ने अपना पूरा ज़ोर लगाते हुए बोला।
" अरे ! क्या होगा कार- वार लेके ? सिर्फ पैसे की बर्बादी ही है। " -पिता जी ने अज़ीब मन से बोला। उनको देख के ऐसा लग रहा था कि जैसे वो बोलना बहुत कुछ चाह रहे है लेकिन अपनी मर्यादा को समझ के रुक गए।
" अच्छा ! ये बताओ महेश तो तुमने क्यों नहीं लिया कार ? वैसे देखा जाये तो जरूरत तो तुम्हारे यहाँ भी है। " - पिता जी ने खुद भैया को उन्ही के मकसद में फ़सा दिया।
" अरे चाचा ! आप तो जानते है कि हमारे यहाँ केवल एक ही सैलरी है और उस पर कितने लोग आश्रित है,अगर मेरे यहाँ आप की तरह इनकम होती तो हम लोग कार जरूर ले लेते " - भैया ने ईट का जवाब पत्थर से दिया।
अरे सब पैसा की बर्बादी है।
और इस तरह यहाँ पर हमारा एक्का ! ट्रम्प कार्ड से काट दिया गया।
इधर एक दिन मम्मी की तबियत इतनी ज्यादा ख़राब हो गयी कि उनसे तो उठा भी नहीं जा रहा था।
फिर से मुसीबत आ गयी उनको अस्पताल ले जाने की ?
फिर कार कि जरूरत आन पड़ी क्योकि टेम्पो और रिक्शे से जाना संभव नहीं था।
अब फिर हमारी इस मुसीबत का दूर करने के लिए वही भैया के दोस्त को फ़रियाद लगाई गयी , जिसको पूरी सहमति से मान लिया गया और कार ने हमारे यहाँ दस्तक दे दी।
अरे ! हमारी कार नहीं , भैया के दोस्त की कार ..
इधर भाभी भी मम्मी की तबियत का सुनके घर लौट आयी , और सीधे अस्पताल चली गयी। मामा - मामी और भी कुछ रिश्तेदार भी सीधे अस्पताल पहुँच गए।
जाहिर सी बात है कि ऑपरेशन रूम के बाहर बहुत मायूसी का माहौल बना हुआ था और बार - बार सबकी नज़र ऑपरेशन रूम के दरवाज़े के ऊपर के लाइट पर टिकी थी। जो कि ऑपरेशन का सिग्नल दे रही थी मतलब अगर लाल है , तो ऑपरेशन चल रहा है और अगर हरी है , तो ऑपरेशन खत्म हो जाने का संकेत है।
इधर हम कुछ सोच ही रहे थे कि उधर सिग्नल हरा हो गया और खटाक से दरवाज़ा खुलता है और दरवाज़ा खुलते ही सभी लोग डॉक्टर साहब को घेर लेते है।
" डॉक्टर साहब .. डॉक्टर साहब ! कैसी तबियत है अभी मम्मी की , दीदी की , चाची की वगैरह वगैरह " - लगभग सभी ने एक साथ धावा बोल दिया उन पर।
" एक मिनट पहले ये बताये की इनके परिवार से कौन कौन है यहाँ पर "- डॉक्टर साहब ने सबको दूर करते हुए और अपने सर पर से टोपी हटाते हुए बोले।
" सर ! मैं इनका छोटा बेटा , ये इनकी बहू , ये इनके पति ... " - मैंने मामले को अपने हाथ में लेते हुए जवाब दिया।
" देखिये ! अभी उनकी हालत में तो सुधार है , भगवान का शुक्रिया कीजिये कि आप लोगो ने उनको सही समय पर अस्पताल पंहुचा दिया , अगर थोड़ी सी और देर होती तो केस हाथ से निकल भी सकता था।"- इतना बोलते हुए डॉक्टर साहब जाने लगे।
और मै कुछ और जानने की इच्छा से डॉक्टर साहब के पीछे निकल लिया।
कुछ ही दिनों बाद मम्मी भी ठीक होकर घर पर आ गयी।
लेकिन मेरे जहन में अभी भी डॉक्टर साहब की बात बार - बार गूंज रही थी कि " भगवान का शुक्रिया कीजिये कि आप लोग इनको सही समय पर ले आये नहीं तो केस हाथ से भी निकल सकता था ... "
इस घटना ने फिर दुबारा से कार लेने के हमारे मिशन को एक धक्का दिया, जो बहुत दिन से इसी धक्के का इंतज़ार कर रहा था और इस बार हमने अपनी " तंगी " की सर्वसहमति से बड़ी भाभी को पिता जी के सामने जाने का भार सौंपा।
बड़ी भाभी के बारे में ये है कि वो बहुत ही शांत , सुशील और हमेशा अच्छा बोलने वाली है। इसका एक कारण एक ये भी हो सकता है कि ये अपने घर कि बड़ी बेटी और यहाँ कि बड़ी बहू है।ऐसा बहुत ही काम बार होता है कि पिता जी इनकी बात टालते है।
उनको पता है कि जो भी ये कहती है , बहुत सोच समझकर कहती है।
पहले तो भाभी ने मना किया और बोला जब पापा मना कर रहे है तो जरूर कुछ सोच समझ समझ कर बोल रहे होंगे, लेकिन सभी के बार - बार आग्रह करने पर वो मान गयी।
जब उन्होंने पिता जी से बात की और उनको सारे तथ्य बताये कि क्या -क्या फायदे है और क्या क्या नुक्सान है।
तो काफी देर तक बातचीत के बाद पिता जी आखिरकार मान ही गए और हम सभी बड़ी भाभी के लिए अपनी आँखे बिछाये दूसरे कमरे में इंतज़ार कर रहे थे।
अगले महीने की पांच तारीख को कार लेने कि अच्छी मुहूर्त पंडित जी ने दी। और हम लोग अपनी - अपनी सूची बनाने लगे कि कहां - कहां जायेंगे , किस - किस से मिलेंगे वगैरह ..
इसी के साथ महीने की चौथी तारीख को कार खरीदने के लिए पैसे भी निकाल लिया गया।
इधर हम अपने बजट के हिसाब से कार सेलेक्ट कर रहे थे और उधर हमारी कार खरीदने का चेक बाउंस हो गया। मतलब पिता जी को गाँव से फ़ोन आया कि फलाने अपनी जमीन आधे दाम पर बेच रहे है ,और हमारे पिता जी जो कि पूरी तरह से गाँव से जुड़े है वो ऐसा मौका कभी नहीं गवाएंगे सो उन्होंने हामी भर दी।
और हमारे " तंगी " की समिति में दुःखी की लहर आ गयी I
सच ही कहा है ,
जब तक कार्य पूरा न हो जाये तब तक अपनी ख़ुशी जाहिर न होने दीजिये ।
या इसको क्रिकेट कि भाषा में कहे तो
जब तक सारे विकेट ना गिर जाए तब तक मैच को ख़त्म नहीं समझना नहीं चाहिए।
एक बार फिर हम लोग अपने सामान्य जीवन पर आ गए।
" पापा ओझा अंकल आये है " - मैंने बोला।
"भेज दो " - अंदर से आवाज़ आयी।
" क्या भाई साहेब ! आज दुकान पर नहीं आये ? सब कुछ कुशल मंगल तो है ना ? " - ओझा अंकल ने पूछा।
ओझा अंकल ने बारे में मेरे यहाँ ये है कि हमारे जो भी काम बनने वाले होते है वो वही पर बिगड़ जाते है। कहने का सीधा सा मतलब है कि कार खरीदने की जो भी उम्मीद बची है , उसे अब ख़त्म ही समझें।
" हाँ सब कुशल - मंगल है अरे क्या बताये ? ये बच्चे सब कार लेने की ज़िद कर रहे है और उधर गाँव में ज़मीन भी आधे दाम पर मिल रही है ; हमने तो ज़मींन लेने का मन बना लिया है ;पता नहीं क्यों कुछ अजीब सा लग रहा है।" - पिता जी ने बहुत गंभीर अंदाज़ में बोला।
" अब आप ही बताये हम क्या करे ? " - उन्होंने ओझा जी से राय मांगी।
भाई साहब आपकी दो समस्या है :
१- आप क्यों कार में पैसा बर्बाद कर रहे है।
२- मैं आपको को बता दूँ कि यह समय ख़राब है ज़मीन लेना , घर बनवाना !
" क्या आप 'समय ख़राब चल रहा हैं ' बात कर रहे है " - पिता जी ने बहुत रूखे शब्दो में कहा।
" हित बताना मेरा फ़र्ज़ है बाकी आपकी जैसी मर्ज़ी ! " - कहते हुए ओझा जी चले गए।
इधर हमारी कुछ उम्मीद फिर से बनी कि शायद पिता जी अपना फैसला बदल दे। लेकिन ये गलत साबित हुआ, जब हमने उनको किसी से फ़ोन पर चिल्ला - चिल्लाकर ओझा जी को खरी कोटि सुनाते हुए सुना , और वो बार - बार एक ही शब्द बोल रहे थे कि " समय ख़राब चल रहा है .. उसको अगर लेना होता तो देखते कि कितना समय ख़राब चल रहा होता "
- इधर पिता जी ,समय ख़राब चल रहा हैं , का नारा लगा रहे थे और उधर गाँव से फिर से फ़ोन आ गया , फ़ोन क्या आ गया अरे कहिये कि हम लोगों का कार खरीदने का पैगाम आ गया।
वो जो अपनी ज़मीन आधे दाम पर बेच रहा था दरअसल उसकी ज़मीन पर विवाद चल रहा है इसीलिए वो इतने सस्ते में बेच रहा था।
और इसी तरह हमारी तंगी में फिर से एक उम्मीद कि किरण जाग गयी ..
