पचपन बसन्त का सफर
पचपन बसन्त का सफर
उम्र के पचास बसंत पार करने के बाद रेश्मा के दिल मे कुछ हलचल हुई तब वो समझ भी नही पा रही थी कि आखिर उसे ये हो क्या रहा है।क्यों वो अपने ही घर से खुद को दूर समझने लगी है।बचपन से लेकर अब तक जिस अहसास से दूर थी वो अब इस उम्र के पड़ाव में कैसे महसूस कर रही है।
अचानक उसके हाथ से गिरी प्लेट ने जैसे उसका ध्यान हटा दिया।"क्या हुआ माँ आपकी तबियत ठीक है ना"?मेघा ने पूछा।"कुछ नहीं एक प्लेट ही तो गिरी है तुमसे नही गिरती क्या?" कहते हुए रेश्मा अपने काम मे लग गई।इतने में उसके छोटे-छोटे पोते स्कूल से आते ही दादी के लिपट गए और बोले "दादी दादी आज बहुत सारा काम मिला है हम शाम को पार्क नही जाएंगे"।"नही जाएंगे का क्या मतलब है ?खेलोगे तभी तो दिमाग फ्रेश रहेगा और अच्छे से पढ़ पाओगे" रेश्मा ने बहाना बनाते हुए कहा।"हाथ मुँह धोकर खाना खाओ जब देखो शैतानी और बहानों के सिवा कोई काम नही" कहते हुए रेश्मा ने बात को घुमा दिया और सब साथ बैठकर खाना खाने लगे।बाद में बच्चों को कमरे में ले गई और उनके साथ फिर अपनी दुनियां में मशगूल हो गई।
फिर साँझ ढली और बच्चों के साथ पार्क में जाने का वक्त होने लगा और रेश्मा की साँसे फूलने लगी धड़कने बढ़ने लगी और अजीब सी खुशी भी चेहरे पर थी।ये वो खुशी जिस से वो अब तक अंजान थी।जल्दी जल्दी बच्चों को स्कूल का काम करवाया और फिर चल पड़ी बच्चों को लेकर पार्क में।लोटी तब भी गुमसुम जैसे कुछ खो गया हो।"क्यों हो जाती हूँ मैं इस तरह बेचैन उनसे बात करके? क्यों उनको देखते ही धड़कन बढ़ जाती है? कल से नही जाऊंगी पार्क में बच्चों को लेकर।गलत बात है ये । सब लोग क्या कहेंगे? बच्चों को पता चलेगा तो क्या सोचेंगे?" कुछ इस तरह के सवालों की उधेड़बुन में लगी थी रेश्मा।
अपनी ही धुन में चलते हुए अचानक से पैर फिसला और गिर पड़ी बेटे बहु व बेटी सब आवाज सुनकर दौड़ते हुए आये "क्या हुआ?कैसे गिर गए?ध्यान किधर था आपका?" राहुल ने तो सवालों की झड़ी सी लगा दी।
राहुल:-"ऋतु जाओ पानी लाओ माँ के लिए।मेघा जरा सहारा लगाओ माँ को सोफे पर बिठा दे"।दोनों ने मिलकर रेश्मा को सोफे पर बिठाया बेटी ऋतु पानी का ग्लास लिए दौड़ी आई बच्चे भी दादी माँ को देखकर चुप हो गए।बहु मेघा ने पूछा"डॉ के पास चले माँ?" मगर रेश्मा ने कहा मैं ठीक हूँ कुछ नही हुआ।तुम लोग अपना काम करो जरा से पैर फिसल गया था"
राहुल अपने कमरे में चला गया मेघा और ऋतु खाना बनाने रसोई में आ गई।बच्चे दादी के पास फिर पढ़ने बैठ गए। रेश्मा मन ही मन मुस्कुरा रही थी लगा ही नही की वो अभी-अभी गिरी है और उनको चोट लगी है।
"भाभी कुछ महीनों से माँ बदली-बदली नज़र आ रही है खुद ही मुस्कुराती है लजाती है और तो और आईना देखकर बतियाती भी है क्या आपको भी ऐसा ही लगता है?" ऋतु ने पूछा।
" हाँ ऋतु आजकल हमेशा हर काम को देखकर उसमे नुक्स निकलने ओर डांटने वाली मांजी कही गुम हो गई है आजकल तो बस अपनी धुन में खोई रहती है।बच्चों को भी 5 बजे पार्क में जाना होता है पर ये तो 4 बजे ही तैयार हो जाती है जैसे इनकी गाड़ी छूट रही हो।मुझे याद है पहले ये नही खाना..वो नही खाना..ये नही किया ..वो नही किया..करती क्या हो पूरे दिन?...बस बोलती रहती थी।खाने के भी हज़ार नखरे होते थे पर अब तो चुपचाप जो बने वो खा लेती हैं वो भी खुशी-खुशी।और तो और बच्चों के साथ बच्ची बन जाती है।इनकी खुशी देखकर अच्छा लगता है।"मेघा ने ऋतु से कहा।
"हाँ भाभी जबसे पापा गए थे माँ बहुत अकेली हो गई थी तभी भाई की शादी जल्दी करनी पड़ी आपके और बच्चों के आने के बाद उनका मन लगा गया।अब थोड़ा बाहर भी निकलने लगी है।".(बीच में टोकते हुए मेघा बोली )....."बाहर निकलने लगी है ? अरे ऋतु दो दिन से जिद्द पकड़ रखी मुझे मंदिर जाना है" "माँ और मंदिर?" ऋतु ने आश्चर्य से पूछा। " हाँ अब बताओ उनको मंदिर कैसे लेकर जाऊँ कितना काम होता है सुबह-सुबह ओर जब तक मैं तैयार होती हूँ मंदिर के दरवाजे बंद हो जाते हैं और फिर बच्चे की तरह गुमसुम बैठ जाती है " कुछ लाचार सी आवाज में मेघा ने कहा।
"अभी तो बच्चों के साथ खुश है मंदिर का देखते है क्या करें " ऋतु बोली। हम्म्म्म कहते हुए मेघा ने एक लंबी सांस ली और कहा"चलो बच्चों के साथ बाहर जाकर भी खुस रह ले और क्या चाहिए।" "पर कल माँ को पार्क मत जाने देना उनका दर्द बढ़ जाएगा" मुझे भी ऑफिस से छुट्टी नही मिलती नही तो आपका हाथ बटा देती " ऋतु बोली।
" हाँ ऋतु यही मेँ भी कहने वाली थी।पर वो न मानी तो??तुम और तुम्हारे भाई तो उनके जाने के बाद ऑफिस से लौटते हो मेरी बात ना मानी तो?"मेघा चिंताजनक सवाल किया।
ऋतु -"तो...तो क्या ? कोई भी बहाना बना लेना पर जाने मत देना"। मेघा ने हम्म कर बात खत्म की।अगले दिन नाश्ते के वक्त मेघा ने पूछा :-माँ आपका दर्द कैसा है?
रेश्मा:-"अभी तो दर्द है पर ज्यादा नही शाम तक ठीक हो जाएगा।"
राहुल:-"मेघा आज बच्चों को तुम घुमा लाना पार्क में माँ जाएगी तो दर्द और बढ़ जाएगा।"
"अरे !नही नही पार्क में तो मैं ही जाउंगी बीच मे टोकते हुए रेश्मा बोली।जरा सा पैर मुड़ा था टूटा नही है बड़बड़ाते हुए नाश्ता करने लगी और बोली मुझे मंदिर जाना है जाते हुए छोड़ दो आते वक्त अकेले आ जाउंगी दूर तो है नहीं मंदिर" "माँ आप और मंदिर ?पैर में लगी है असर दिमाग पर हो रहा" चुटकी लेते हुए राहुल ने माँ से पूछा।"क्यों क्या मैं मंदिर भी नही जा सकती?इसके लिए भी परमिशन लेनी पड़ेगी क्या?चुपचाप जाते वक्त छोड़ देना"।कहकर रेश्मा खड़ी हो गई।
मेघा और ऋतु ने एक दूसरे की तरफ देखा और मुस्कुराई जैसे कोई इशारा किया हो। राहुल ऑफिस के लिए निकला तो रेश्मा को मंदिर ले गया बच्चों को लेकर ऋतु भी निकल ली जाते हुए बच्चों को स्कूल छोड़ते हुए ऑफिस चली जायेगी। उन लोगो जाने के बाद मेघा अपने काम पे लग गई थोड़ी देर में रेश्मा आई और सोफे पर ही लेट गई।लेटे लेटे ही किसी सपनों की दुनियां में खो गई उसे याद आने लगा कि कैसे उसका बचपन तो पूरे दिन बहन भाइयों के साथ बदमाशियों में गुजर गया कुछ समझ पाती तक तक घर से विदा कर दी गई शादी भी हो गई और बच्चे भी संयुक्त परिवार में एक दूसरे को न तो वक्त दे पाई ओर न ही एक दूसरे को समझने का मौका मिला बस जिम्मेरियाँ इतनी की प्यार का अहसास तक न हो पाया ।बच्चें अभी छोटे थे लेकिन इनके जाते ही घर बिखर गया सब अलग अलग हो गए।नए सिरे से छोटे छोटे बच्चों को लेकर जिंदगी को रफ्तार देनी थी तो को खड़ा करने के लिए रेशमा ने लोगों के घर काम करना शुरू किया और बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा किया और बच्चों ने अब मेरा काम बंद करा दिया बहु भी आ गई सोचते सोचते रेश्मा की आंख भर आईं।
मेघा जो खाने के लिए बुलाने आई थी उसकी नज़रो से वो आँसू छुप न सके और पूछ बैठी":-माँ क्या हुआ?पैर में ज्यादा दर्द है क्या?चलो डॉ के पास चलते है।
रेश्मा:-"कुछ नही हुआ मुझे देख अच्छी तरह चल सकती हूँ कहकर रेश्मा अपने आँसू पोंछते हुए दर्द को छुपाकर चलने लगी और जाकर खाना खाने बैठ गई।मेघा भी पास बैठ गई।पर उसकी नज़र रेश्मा पर से हट ही नही रही थी मानो आज उनके अंदर की हलचल को पढ़ ही लेगी लेकिन असफल रही। इतने में बच्चे भी आ गए सबने खाना खाया और कुछ पल आराम करने के लिए रूम में चले गए ।पर एक तरफ रेश्मा बैचेन सी सोफे पर लेट गई और मेघा की थकान तो जैसे उड़ ही गई।बार-बार रेश्मा को देखती ओर कमरे में चली जाती।पर उसे चैन न आ रहा था क्योंकि इतना बेचैन उसने कभी नही देखा था रेश्मा को।ये कैसी बेचैनी थी जो कभी आँसूं तो कभी मुस्कान दे रही थी।"
उधर रेश्मा भी सोच रही थी कि आखिर ये हो क्या गया केवल एक नज़र ही तो मिली थी।ना कोई बात की ना कोई इशारा बस केवल देखा भर था ये अहसास पहले क्यों नही हुआ जैसे ही 4 बजे की घड़ी की घंटी बजी रेश्मा ऐसे उठी जैसे कोई स्प्रिंग लगी हो।
रेश्मा:- "मेघा ओ मेघा अरे कब के 4 बज गए चाय कब देगी?बच्चों को उठाया कि नही?" "चाय बन रही है माँ बच्चों का भी दूध गर्म हो रहा है बस अभी लाई"कहती हुई मेघा बच्चों को जगाने चली गई और कुछ ही देर में चाय व दूध टेबल पर लेकर बैठ गई।
"कितनी देर लगा दी इतनी देर चाय बनाने में लगेगी तो बाकी काम कब करेगी"देर होती देख कर रेशमा परेशान हो रही थी।
"पर माँ अभी तो साढ़े 4 बजे है पार्क तो 5 बजे खुलता ह"ै मेघा ने जानबूझकर ये बात कही।
"हाँ हाँ पता है मैं तो इसलिए बोल रही थी कि बोलूंगी तब तुम काम जल्दी करोगी नही तो आलस ही खत्म नही होता तुम्हारा।"अपनी मन की बात पर पर्दा डालते हुए बोली। बच्चे भी आ गए दूध बिस्किट खाकर तैयार हो गए ।रेश्मा चलो चलो देर हो रही है कहते हुए घर से निकल गई।
अब तो मेघा भी बेचैन हो गई कि आखिर बात क्या है जो माँ को इतनी जल्दी है पर कुछ तो है देखना पड़ेगा।अब तो उस से ऋतु के आने का इंतजार भी नही हो रहा था।पर घर को खुला भी छोड़कर नही जा सकती थी उसकी नज़र दरवाजे पर ही टिकी रही जैसे ही ऋतु आई वैसे ही मेघा बोली "ऋतु तुम्हारी चाय रखी है ले लेना मैं जरूरी काम से होकर आती हूँ "कहकर निकल ली जैसे कि पैरों के पंख लगे हो।
छिपती छिपाती पार्क के एक कोने में बैठ गई जहां किसी की नज़र न पड़े।अब माँ उसके सामने अकेली बैठी थी पास कोई नही था पर वो बार बार मुस्कुराकर नज़र झुका रही थी फिर उसने ध्यान दिया तो सामने एक बुजुर्ग व्यक्ति अपने डॉगी के साथ बैठा माँ की तरफ ही देख कर मुस्कुरा रहा था जैसे दोनों नज़रो ही नज़रो में बात कर रहें हों।मेघा सारा माजरा समझ गई थी पर जानना चाहती थी कि वो जो सोच रही है क्या वो सच है।जब तक सच का पता नही लग जाता ये बात किसी से नही कहूंगी।इसलिए अब वो रोज ऋतु के आने के बाद माँ के पीछे आने लगी। ये सिलसिला महीने भर तक देखा पर केवल मुस्कुराते हुए देखकर किसी निष्कर्ष पर नही निकला जा सकता। यही सोचकर उसने दिमाग लगाया।
खुद को माँ से व बच्चों से बचाते हुए उस बुजुर्ग के पीछे फोन लेकर बोलने लगी "हलो !हलो !क्या करते हो आप भी कहा तो था मैं फोन पर बात नही कर सकती खत लिखकर दिया करो" कैसे? कैसे का क्या मतलब है ख़त लिखा होगा तो उसे बार बार पढ़ पाऊंगी ओर तुमको भी खत ही लिखूंगी ठीक है ना ? अब मैं जा रही मालकिन ने देख लिया तो दिक्कत होगी"कहकर फोन रखने का नाटक किया।ये सारी बातें बुजुर्ग ने सुन ली और दूसरे दिन एक डायरी लेकर आये फिर अपनी डायरी निकाल कर उसमे कुछ लिखा और पेन के साथ वो डायरी भी रेश्मा के लिए डॉगी के साथ भेज दी।
अब मेघा को मंदिर जाकर भी देखना था कि आजकल क्यों जाना चाहती है माँ मंदिर भी।लेकिन जा नही पाती घर को बन्द करके।पर उंसने ऋतु से कहा ऋतु तुम प्रसाद ले जाओ जाते हुए माँ को मंदिर में दे देना ।ऋतु भी बच्चों को स्कूल छोड़कर मंदिर में प्रसाद देने गई तो देखा माँ डायरी मैं कुछ लिख रही थी जैसे ही लिखी डॉगी वो डायरी लेकर एक बुजुर्ग के पास गया।फिर बुजुर्ग ने कुछ लिखा और फिर डायरी माँ के पास आ गई।अब तो ऋतु भी सोच में डूब गई।इतने में मेघा ने कॉल किया हलो!,ऋतु "हाँ भाभी" मेघा "तुम अपना टिफिन भूल गई हो।कुछ खा लेना" ऋतु "मैं घर ही आ रही हूँ भाभी "ये कहकर ऋतु ने कॉल काट दिया।
मेघा ने ऋतु को अचानक घर आने का कारण पूछा तो ऋतु ने सारी बात बताई।तब समझ आया कि माँ ज्यादा से ज्यादा वक्त बुजुर्ग के साथ बिताना चाहती है इसलिए मंदिर आने की जिद्द करती थी।क्या हुआ भाभी?चुप क्यों हो?ऋतु ने मेघा की चुप्पी तोड़ी।
"ऋतु क्या जो मैं सोच रही वो तुम भी सोच रही"?एक सवाल भरी नज़र से मेघा ने ऋतु की तरफ देखा।ऋतु:-"हाँ भाभी मैं भी यही सोच रही पर पता कैसे लगाए क्या पता हम सही है या गलत।"मेघा:-"देखो ऋतु ये बात हमारे अलावा और कोई नही जानता अगर राहुल से कहूंगी तो उनको यकीन नही होगा लेकिन माँ की खुशी के लिए हमको कुछ तो करना होगा"।हम्म्म्म भाभी बोलकर ऋतु ने भी अपनी मर्जी स्पस्ट कर दी।
अब ऋतु अपना लंचबॉक्स लेकर ऑफिस को निकल गई और मेघा अपने काम मे लग गई।पर आज ठान लिया था कि कुछ तो करना ही होगा आज शाम को भी पार्क जाउंगी देखती हूँ क्या कर सकती हूँ।
शाम को आज ऋतु ने आने में देर कर दी मेघा बेचैन हो रही थी कैसे जाए अब तो राहुल भी आने वाले है और आधा घंटे में माँ भी घर आ जायेगी क्या करूँ क्या करूँ की धुन में चक्कर निकाल रही थी घर में इतने में राहुल और ऋतु दोनों आ गए।उनको देख कर मेघा ने कहा "ऋतु में अभी आती हूँ बस तुम लोगों का इंतजार कर रही थी"कहते हुए चुपचाप भाग गई। राहुल-"मेघा ओ मेघा कहाँ जा रही हो इतनी जल्दी में?"पर मेघा ने एक न सुनी और भाग निकली आज उसे कोई न कोई सबूत तो लाना ही था।पार्क में जाकर देखा तो वही नज़ारा था उसने तुरंत मोबाइल निकाला और वीडियो बनाना शुरू किया जिसमे बुजुर्ग ने अपने डॉगी को वो डायरी दी जिसमे खत लिखा था डॉगी के आते ही माँ ने वो खत पढ़ा और सिने से लगाया अपने आँसू पोंछे फिर दो शब्द लिखकर वापस भेज दिया।सामने बुजुर्ग ने भी खत का जवाब देखकर अपने डॉगी को चूमते हुए खुशी का इजहार कर दिया ।
जैसे ही माँ ने बुजुर्ग से जाने का इशारा करते हुए हाथ हिलाया मेघा पार्क से निकल कर घर आ गई।सामने देखा तो ऋतु व राहुल नज़र लगाए बैठे थे।
राहुल :-"कहाँ चली गई थी तुम बिना किसी से कुछ कहे?"मेघा-"बताऊंगी सब बताऊंगी पर माँ को पता नही चलना चाहिए कि मैं बाहर गई हुई थी माँ अभी आने वाली है।पर क्यों??राहुल ने सवाल किया।"अभी नही बता सकती" इतने मैं बच्चों के साथ रेश्मा भी आ गई।बच्चे भी पढ़ने बैठ गए और रेश्मा भी बच्चों की किताब लेकर बैठ गई।मगर उसका ध्यान नही था किताब में।
थोड़ी देर में मेघा कमरे में गई जहां राहुल और ऋतु दोनों अपने अपने लेपटॉप पर काम कर रहे थे मेघा ने राहुल से कहा"राहुल मम्मी की तबियत खराब है मैं गांव जा रही हूं दो तीन दिन में आ जाउंगी" ।राहुल-"अरे !क्या हुआ उनको ?मेघा-"भाभी पीहर गई हैं और मम्मी गिर गई उनको चोट लगी है काम नही कर सकती इसलिए मुझे जाना पड़ेगा"।
राहुल-"यार दूर तो है नहीं सुबह जाकर शाम को वापस आ जाना।"
मेघा-"ये क्या बात हुई आने जाने में ही थकान हो जाएगी तो आकर क्या करूँगी यहां माँ है ना सारा काम करती हैं ऋतु भी है फिर क्या दिक्कत है ?"
राहुल-"नहीं नहीं मेघा मेरा मन नहीं लगता तुम्हारे बिना बस तुम शाम को आ जाना इसके आगे मुझे कुछ नहीं सुनना।
ऋतु-"क्या भैया ये भी तो समझो भाभी की माँ है वो अब माँ के पास ही तो जा रही है जाने दीजिए दो दिन की छुट्टी मैं ले लुंगी माँ की देखभाल के लिए।"
राहुल-"कह दिया नहीं तो नहीं बस।"
मेघा-"जब देखो बस अपनी ही पड़ी रहती है ये नहीं कि जीवनसाथी हूँ तो उसका भी दर्द समझूँ।"
राहुल-"जीवन साथी हो इसलिए तो नहीं रह पाता तुम्हारे बिना एक पल मन नही लगता तुम तीन दिन की बात कर रही हो तुम्हारे बिना कुछ अच्छा नहीं लगता तुम ही तो मेरी हमसफ़र हो समझी।
मेघा-"और जिनके हमसफ़र नही होते वो क्या जिंदा नहीं रहते।"
राहुल-"रहते होंगे पर मैं नहीं रह सकता अब बस बहुत हो गए कोई बहस नहीं।"
मेघा -"मतलब मेरे बिन्या तुम एक दिन नहीं रह सकते ? जानते हो अकेलापन कौन महसूस कर रहा है ?"
राहुल-"कौन ?
मेघा-"माँ और कौन।"
राहुल-"तुम कहना क्या चाहती हो साफ साफ बताओ।"
ऋतु-"मैं बताती हूँ भैया लेकिन कसम खाओ आप गुस्सा नहीं करोगे।"
राहुल-"चल ठीक है अब बोल क्या बात है।"
मेघा-"ये वीडियो देखो।"
मेघा ने वीडियो दिखाना सुरु किया वीडियो देखने के बाद तीनों एक दूसरे को देख रहे थे। सभी को समझ आ गया था कि बात क्या है पर राहुल गुस्से में आगया और बोला ये क्या बचकानी हरकत है माँ की वो कोई बच्ची नहीं हैजो ये सब.....मुझे तो सोचकर ही शर्म आ रही है छि:"
मेघा:- "ये क्या बोल रहे हो राहुल शर्म की क्या बात है उनको भी खुश होने का हक़ है कब तक अकेले इतना लंबा जीवन जियेगी।"
ऋतु:-" हाँ भाई भाभी सही कह रही है"
राहुल;-"तू चुप कर जानती क्या है तू जमाने के बारे में?लोग क्या कहेंगे?थूकेंगे सब हमारे मुँह पर।"
मेघा-"जरा माँ के बारे में सोचो तुम मेरे बिन एक पल नहीं रह सकते तो उन्होंने तो अकेलेपन में एक उम्र गुजारी है क्या उनको खुस होने का भी कोई हक नहीं।"
राहुल-"खुश तो मैं भी देखना चाहता हूँ लेकिन इस तरह।एक तो ये उम्र ऊपर से लोगों के ताने जीना दूभर हो जाएगा।"
मेघा:-"तुम लोगो के लिए जीते हो या अपनो के लिए?पहले देख लो वो अंकल कौन है? क्या है? कैसे है ?फिर सोचते है क्या करना है"।बहुत समझाने के बाद राहुल राजी हुआ।"
अगले दिन राहुल ऑफिस से जल्दी निकल आया और सीधे पार्क में पहुंच गया।वो जैसे ही उस बुजुर्ग व्यक्ति के पास पहुंचा रेश्मा ने देख लिया और चुपचाप बच्चों को लेकर घर आ गई।घर आकर घबराई हुई सी बैठ गई बच्चे भी गुस्सा हो रहे थे आज हम जल्दी क्यों ले आई अभी तो गए थे हम।पर वो चुप रही।राहुल ने बुजुर्ग व्यक्ति से सब बात की बातों बातों में पता चला इनके बच्चे सब बेचकर विदेश चले गए ये वृद्धाश्रम में अपने डॉगी के साथ रहते है।रेश्मा से बहुत प्यार करते है।
इधर रेश्मा के पसीने निकल रहे थे वो बहुत घबरा गई थी कि ये सब उसने क्या कर दिया? अब बच्चे क्या सोचेंगे?
इस उम्र में ये कैसा प्रेम है जो सब बंधन को तोड़कर भी उड़ना चाहता है हजारों सवालों के घेरे में बैठी रेश्मा को जब राहुल ने आवाज लगाई "माँ ओ माँ कहाँ खोई हो?"कहते हुए राहुल घर आया।कही तो नही कहते हुए खुद को संभाला रेश्मा ने ।तो फिर आज आप चाय पिलाओ मुझे राहुल बोलते हुए फ्रेश होने चला गया।
घर आकर उसने सब से बात की और अंतिम निर्णय लिया कि हम इन दोनों की शादी करा देंगे और ये हमारे साथ रहेंगे।इन सब बातों से बेखबर रेश्मा को रविवार को सुंदर सा तैयार किया गया और वृद्धाश्रम में ले जाया गया जहाँ दोनो की शादी कर दी गई।पहली बार बारात लेकर दुल्हन आई और अपने दूल्हे को आश्रम से विदा कर घर ले आई अब परिवार फिर पूरा एक हो गया था।
