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रानी सोनी 'परी'

Drama

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रानी सोनी 'परी'

Drama

रक्त का कर्ज

रक्त का कर्ज

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छुटकी..ऐ छुटकी.. अरे कहाँ मर गई।काम की न काज की, दुश्मन अनाज की।(शांति बडबडा रही थी)

छुटकी:-"(छत से झांकते हुए)आई माजी कपड़े सूखा रही हूं।

बोखलाती हुई शांति ने फिर छुटकी को आवाज लगाई:-"अरे ओ महारानी केवल कपड़े सुखाने में ही इतना समय लगाएगी तो बाकी काम कौन तेरी सास करेगी।

छुटकी हंसते हुए बोली:-"अरे माजी जिस दिन सास मिल जाएगी उस दिन आपके यहाँ थोड़े ही आउंगी, फिर तो मैं भी अपने उनके साथ..... कहते हुए शरमा गई।

शांति:-"ज्यादा हवा में मत उड़ , आजा नीचे आ जा, मैं तेरी शादी करूँगी ही नहीं तो ?

छुटकी:-"ऐसा हो ही नहीं सकता, देखना मुझ से ज्यादा तो आप रोओगे विदा करके।

शांति:-"मैने क्या ठेका ले रखा है तुम्हारी शादी का ?तुम मेरी लगती ही कौन हो जो तुम्हारे बारे में सोचूं ?

छुटकी:-"(हंसते हुए)तो फिर उन लड़कों की तस्वीरें क्या अपने लिए मंगवाई थी जो आपके तकिए के नीचे पड़ी है।

यह सुनकर शांति चुप हो गई ओर जाकर सोफे पर बैठ गई ।उसे याद आने लगा कि किस तरह छुटकी की मां ने बुरे वक्त में उसका साथ दिया था बेटे बहु विदेश में बस गए यहां खाली घर काटने को आता था काम कर नही पाती थी तो सोचा एक नोकरानी रख लेती हूं लेकिन आजकल शहर में नोकरों कई बड़ी किल्लत थी जिसे देखो पैसों के लिए अजगर जैसे मुंह फाड़ता है।काफी ढूंढने के बाद थक हार कर सोचा अब जब काम मुझे ही करना है तो क्यों किसी की तरफ़ देखूं ।

अपनी बालकनी में बैठी ढलते सूरज के साथ बतियाती जा रही थी कि एक सब्जी वाली आई और सब्जी लेने की गुहार करने लगी।लेकिन कौन उठकर जाए सोचकर मना कर दिया पर जैसे ही ध्यान पेट की तरफ गया तो लग रहा था मानो पेट पर पानी की मटकी बांधी हो ओर सर पर इतना वजन उठा रखा था।शांति को उस पर दया आ गई और उसने उसे रोककर पहले पानी पिलाया, फिर कुछ खाने को पूछा।लेकिन सूरज ढल गया था उस सब्जी वाली को अपने घर जाने की भी जल्दी थी इसलिए उसने मन कर दिया और सब्जी लेने की जिद्द करने लगी।

  शांति ने कहा कि मैं पूरी सब्जियां ले लूंगी पर ये बताओ इस हालत में तुम इतना वजन क्यों उठा रही हो?सब्जी वाली ने बताया कि उसके पति ने उसे घर से निकाल दिया क्योंकि उसके पेट में लड़की है बस तभी से इस तरह गुजारा कर रही हूं।शांति का मन कमल की तरहः खिल उठा।उसने उस से पूछा तुम किसी के घर में काम क्यों नहीं कर लेती, वहीं रहना, वहीं खाना और घर का काम कर लेना बस।लेकिन उसे काम देगा कौन यहीं पर बात आकर अटक गई इस पर शांति ने कहा:-"यहां काम करोगी ??मैं अकेली हूँ और तुम भी बेसहारा, हम एक दूसरे का सहारा बन जाएगी।अब तो सब्जी वाली बहुत खुश थी और कल आने का कहकर सब्जी वाली टोकरी यहीं छोड़कर अपने गए चली गई।इधर शांति सोचती रही कि आखिर बेटियों से लोगों को इतनी दिक्कत क्यों होती है।बेटियां ससुराल चली जाती है तो बेटे भी तो छोड़कर चले जाते हैं।सोचते सोचते उसने घर का काम निपटाया लेकिन उसके दिमाग मे वो सब्जी वाली ही घूम रही थी आज का छोटा सा दिन भी उसे बड़ा बड़ा सा लग रहा था रात तो मानो विशाल समंदर था जो चलते हुए खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था।न आंखों में नींद थी न मन को आराम अलार्म बजी तो आज उसे उठने में जरा भैया आलास नहीं आया।उसने तुरंत ही अपने सारे काम निपटा लिए, इस उम्मीद में कई आज से कामवाली आ जायेगी।फिर उस से बहुत सारी बातें भी तो करनी है।बार बार दरवाजे की तरफ जाती और वापस लौट आती।घर की घंटी बजती तो दौड़कर जाती लेकिन कभी दूधवाला तो कभी गार्डन की सफाई वाला आई नहीं तो बस वो कामवाली।तरह तरह के खयालात उसके मन में आते गए।वो आएगी की नही, अगर नहीं आना था तो अपना टोकरा यहाँ क्यों छोड़ा, झूठ बोलने वाली तो नहीं लग रही थी वगैरह वगैरह।हारकर उसने एक कुर्सी दरवाजे के पास ही लगा ली और अखबार लेकर बैठ गई कि उसे एक आवाज आई।

"माजी मैं आ गई"

बस इतना सुनना था कि उसका मन आंनदित हो उठा।शांति ने डांटने के लहजे से कहा:-"क्यों री ऐसे ही भाग गई कल , अपना नाम भी नही बताया।कामवाली ने कहा हमारा भी भला कोई नाम होता है बस जो आप रख दो वही मेरा नाम।पुराना नाम पुरनी यादों के साथ खो जाने दो।शांति ने उसका नाम उमंग रखा।आखिर वही तो उसके सुने जीवन में नई उमंग लेकर आई थी।बेटा तो विधवा आश्रम में छोड़कर जाना चाहता था लेकिन घर को पति ने शांति के नाम कर रखा था इसलिए उसे ठिकाना मिल गया था।लोकलाज के लिए कभी कभार आ जाता ओर हर महीने पैसे भेजता रहता।अब दोनों साथ साथ काम करने लगी और खूब सारी बातें भी।शांति और उमंग में कोई नोकरानी ओर मालकिन वाला रिश्ता नहीं था दोनों सहेलियों की तरह रहने लगी कि अचानक से उमंग को प्रसव पीड़ा होने लगी।पास के अस्पताल में उमंग ने बेटी को जन्म दिया।इस समय शांति ने अपनी बेटी की तरह से उन दोनों की देखभाल की।समय के साथ छुटकी भी बड़ी होने लगी और स्कूल भी जाने लगी।उसकी होशियारी देखकर उसे उसकी उम्र से बड़ी कक्षा में दाखिला मिला अपनी मां की सिखाई बातों की वजह से वो पढ़ने के साथ घर का काम भी कराने लगी थी कि एक दिन शांति सीढ़ियों से गिर पड़ी बहुत सारा खून बह गया।अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने बहुत सारा खून बहने की बात कही और बताया कि खून चढ़ाना पड़ेगा बहुत कोशिशों के बाद भी खून नही मिल पाया तो उमंग ने अपना रक्तदान कर शांति की जान बचाई।खुशी खुशी घर लौट रहे थे कि रिक्से को ट्रक चालक ने टक्कर मार दी जिस से उमंग की वहीं पर मौत हो गई और छुटकी शांति की जिम्मेदारी बन गई।जिसके लिए अब वो लड़का देख रही थी जो कि उसके घर आकर रह सकें क्योंकि अब शांति को ओर किसी को खोने का दर्द बर्दाश्त करने की हिम्मत नहीं थी।

बड़ी मुश्किल से एक लड़का तैयार हुआ दोनों की धूमधाम से शादी की गई और सच ही कहती थी छुटकी कि मेरी शादी में मुझसे ज्यादा आप रोओगे।शांति के आंसू देख छुटकी बोली:-"अरे!अब आप क्यों रो रहे हो मैं तो यहीं हूँ। शांति को सुकून था कि उसने उमंग के खून के दान का कर्ज चूका दिया।


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