पैदल सेना दिवस
पैदल सेना दिवस
पैदल सेना दिवस - 1947 का वह दिन जब कबायलियों को खदेड़ना शुरू हुआ*
हमारा देश भारत लम्बे समय तक पराधीन रहने के बाद 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया । स्वतंत्रता मिलने के साथ ही धार्मिक आधार पर देश दो भागों में बंट गया- भारत और पाकिस्तान। बंटवारे के समय बहुत खून खराबा हुआ। दोनों तरफ के नागरिक भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत में आये। वे अपनी जमीन, जायदाद, मकान छोड़कर जान बचाकर भागे। यह अब तक का सबसे बड़ा विस्थापन था ।
आज़ादी के बाद से ही पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर जबरदस्ती कब्ज़ा जमाने की कोशिश शुरू कर दी थी। जम्मू-कश्मीर रणनीतिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान की सरकार और सेना ने ख्यालीपुलाव पकाते हुए कबायलियों को ट्रेनिंग और हथियार देकर कश्मीर पर कब्ज़ा करने के लिए भेजा। कबायलियों ने मुज़फ्फराबाद से होकर उड़ी और बारामुला पर अगले चार दिन में कब्जा कर लिया। उन्होंने कश्मीर की जनता पर कहर ढा दिया, हजारों लोगों को मार डाला और महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया, संपत्तियों को लूटा और घरों को जला दिया। वह लूट खसोट मचाते हुए तेज़ी से आगे बढ़ रहे थे। कबायली श्नीनगर से केवल 4 मील दूर रह गये थे।कबाइलियों के अत्याचार से जनता त्राहि-त्राहि कर उठी।
अब तक जम्मू-कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत थी और वहां के राजा थे - महाराजा हरि सिंह। वह भारत और पाकिस्तान के साथ विलय करने या स्वतंत्र राज्य बने रहने में ऊहापोह की स्थिति में थे। कश्मीर पर आये इस संकट से निपटना उनके बस से बाहर था । अंततः 26 अक्टूबर 1947 को उन्होंने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय को मंजूरी दे दी। भारत में विलय होते ही जम्मू-कश्मीर की रक्षा की जिम्मेदारी भारत के कंधों पर आ गयी। कश्मीर को बचाने के लिए 27 अक्टूबर को भारतीय सेना श्रीनगर पहुंचनी शुरू हो गई। 27 अक्टूबर 1947 को श्रीनगर एयरपोर्ट पर भारतीय सेना की जो पहली रेजिमेंट पहुंची वह थी 1 सिख रेजीमेंट । यह रेजीमेंट गुड़गांव में शरणार्थियों की सुरक्षा में तैनात थी। जब उसे अगले दिन कश्मीर जाने का आदेश मिला तब इस यूनिट के कमान अधिकारी थे लेफ्टीनेंट कर्नल रंजीत राय। उन्होंने आदेश मिलते ही रात में ही पूरी रेजिमेंट को मोर्चे पर जाने के लिए तैयार किया। अगले दिन डकोटा हवाई जहाज से यह यूनिट श्रीनगर रवाना हो गयी।
लेफ्टीनेंट कर्नल रंजीत राय ने वहां पहुंचते ही श्रीनगर हवाई अड्डे को अपने कब्जे में ले लिया और हवाई अड्डे के चारों तरफ अपने जवानों को तैनात कर दिया जिससे कि आने वाले दस्तों को सुरक्षित उतारा जा सके। इसके बाद उन्होंने श्रीनगर से बारामुला की तरफ बढ़ना शुरू किया जहां कबाइली मौजूद थे। कबायली घुसपैठिये काफी संख्या में थे और 1 सिख के जवान संख्या में उनसे काफी कम थे। लेकिन 1 सिख के जवानों ने लेफ्टीनेंट कर्नल रंजीत राय के नेतृत्व में बहुत बहादुरी से मुकाबला किया। अन्ततोगत्वा हमारी सेना के जोश के आगे कबाइली पीछे हटना शुरू हो गये। अगले दिन बारामुला के पास पट्टन में लेफ्टीनेंट कर्नल रंजीत लड़ते हुए शहीद हो गये। कर्नल रंजीत राय को उनके नेतृत्व, युद्ध कौशल, साहस और वीरता के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। वह महावीर चक्र से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय थे।
पैदल सेना या इन्फेंट्री हमारी सेना की वह इकाई है जो दुश्मन से आमने-सामने लड़ती है। इस इकाई के बिना युद्ध की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वर्तमान समय में हमारी भारतीय सेना की इस इकाई में लगभग 12 लाख 40 हजार जवान सेवारत हैं। अब तक हुए युद्धों में सबसे ज्यादा वीरता पदक तथा पहला परमवीर चक्र और पहला महावीर चक्र इसी इकाई के नाम है।