पासा पलट गया

पासा पलट गया

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मैं और नीलाभ सही समय पर थिएटर में दाखिल हो गए। थिएटर ठसाठस भरा चुका था। हम अपनी सीट पर बैठे ही थे कि स्टेज का परदा खुल गया.....

दृश्य - १

इंद्र का दरबार लगा हुआ था। गुलाब, मोगरे की सुगंध से समस्त वातावरण सुवासित हो रहा था। लाल मखमली गलीचे पर चलते हुए देवगण निज आसनों पर आसीन हो रहे थे। देवराज इंद्र अपने सिंहासन पर बैठे थे। उनके मुख पर अद्भुत तेज दिखाई दे रहा था। सभी देवगण मेनका के नृत्य को देखने हेतु अत्यंत उत्सुक दिखाई दे रहे थे। तभी एक संदेश वाहक सभा में उपस्थित होता है।

शीश झुकाकर अभिवादन करते हुए कहता है -" देवराज इंद्र एक संदेश भेजा है देवी मेनका ने।"

"संदेश ! उन्हें तो यहाँ सभा में उपस्थित होना चाहिए था अब तक !" इंद्र का तेज स्वर गुंज उठा।

" उनका स्वास्थ्य सही नहीं है इसीलिए वे सभा में उपस्थित रहने में असमर्थ रहेंगी।" संदेश वाहक ने अपनी बात रखी।

इतना सुनते ही देवराज इंद्र आगबबूला हो उठे ! नेत्र अग्नि के समान दहकने लगे !

"पूरा दरबार उनकी प्रतीक्षा कर रहा है ! यहाँ तक स्वयं मैं भी ! ये संदेश उन्होनें सभा प्रारंभ होने से पूर्व क्यों नहीं भिजवाया ! उनका कृत्य क्षमा योग्य नहीं है ! वे दंड की भागीदार हैं ! जाओ जाकर कह दो उनसे,इंद्र की सभा में स्वस्थ्य लाभ होते ही उपस्थित होना होगा और तब तक नृत्य करना होगा जब तक कि उनके पैरों से रक्त न बहने लगे !

दृश्य - २

मेनका संदेश सुन कर दुःखी हो गयी। इंद्र के कठोर वचन अंतर्मन को छील चुके थे। हॄदय पीड़ा से भर गया।

वह रानी इंद्राणी के पास अपनी व्यथा पहुँचाती है। सुनकर इंद्राणी कई देर मनन चिंतन करती है।

अब दरबार पुनः लगा। सभी अपना- अपना आसन ग्रहण कर चुके थे। संगीत की मधुर धुन पर नूपुर पहने हुए कदम थिरकने लगे किंतु इस बार आसनों पर देवगण नहीं देवियाँ विराजमान थीं और उनके मध्य नृत्य कर रहा था एक नृतक।


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