Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Shivangi Gaur

Inspirational

2.6  

Shivangi Gaur

Inspirational

उड़ान

उड़ान

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आकाश में बादलों का जमावड़ा था। कुछ छितरे हुए, कुछ एकदूजे से सटे हुए बादल।

उमा उन बादलों के टुकड़ों को एकटक निहार रही थी साथ ही साथ, कल्पना के रंग भरते हुए उनमें अलग-अलग आकृतियाँ भी खोजती जा रही थी।

"बिटिया उधर क्या ताक रही है। अरी वो ठहरी सपनों की दुनिया। चल आ मेरे पास। यहाँ बैठ दोनों मिलजुल कर पापड़ बनाएंगी। " माँ ने आसमान ताकती उमा को बड़ी मनुहार से बुलाया।

"क्या माँ ! मुझे नहीं बनाने ये पापड़ वापड़... तुम ही बनाओ। पहले इतनी मेहनत करो फिर खाने वाले एक झटके में खा भी लेते हैं इन्हें। ये ताम-झाम तुम ही करो माँ !" नाक चढ़ाते हुए बोली उमा।

"ये तेरी ख्वाबों की दुनिया कहीं काम न आने वाली। समझ ले मेरी बात ! सच्चाई यही है जिसे तू ताम झाम का नाम दे रही है। "अब कि दफ़ा माँ की आवाज़ में कठोर थी।


उमा को बातें सुन समझते देर न लगी कि कभी माँ ने भी कल्पना की उड़ान भरी होगी और गिर पड़ी होंगी औंधे मुँह ज़मीन पर।

अब वह चुपचाप माँ के निकट आ बैठी और पापड़ बनाने लगी।

" सुन उमा, ग्रेजुएशन तो हो गई अब आगे क्या करेगी ? पिताजी कल ही तेरे ब्याह की बात कर रहे थे।"

"ब्याह! कह देना माँ उनसे। जो ग़लती माँ ने की वो बेटी न करेगी। अभी मुझे बहुत ऊपर उड़ना है माँ। " ऐसा कहते हुए उसकी नज़र आकाश की ओर ही थी तथा माँ की आँखों में तैरने लगे हर्ष के रुपहले बादल।



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