पानी दूध
पानी दूध
आज ऋषि ऑफ़िस के लिए उठते हुए तक़रीबन एक घंटा लेट हो गया था। क्योंकि रात में वे अपने बीमार पिता जी की सेवा में लगा हुआ था, जो कि आज कल अपने खाने - पीने का बिलकुल भी ध्यान नहीं दे रहे थे, जिसकी वजह से वह काफ़ी कमजोर भी होते जा रहे थे। बस वह जल्दी से उठा और फटाफट नहा कर तैयार होकर भागते हुए डाइनिंग टेबल पर आकार बैठा और अपनी पत्नी को आवाज़ लगाकर अपना दूध जल्दी लाने को कहा। वही टेबल पर ऋषि के पिता जी भी बैठे हुए थे। ऋषि ने उनके चरण छुए और साथ ही उनको अपना ध्यान रखने के लिए भी कहा। उस ने अपना दूध ना आता देकर फिर से अपनी पत्नी को जल्दी दूध लाने को कहा, इतने में उधर से ऋषि की पत्नी की आवाज़ आती है “ हाँ बस पाँच मिनट में लाई ” इतनी बात सुनते ही ऋषि को ग़ुस्सा आने लगा ,“ यार मैं पहले ही बहुत लेट हू
ँ , ऊपर से तुम्हारे पाँच मिनट मुझे आज और लेट करवा कर ही छोड़ेंगे” यह सब ऋषि के पिता जी ने देखकर बोले “ ऋषि लो तुम मेरा दूध पी लो मैं तो बाद में भी आराम से पी सकता हूँ, मुझे कहीं जाना नहीं है, पहले तुम जल्दी से दूध पी कर दफ़्तर के लिए निकलो।”
इतनी बात सुनते ही ऋषि की पत्नी जल्दी से भागती हुए किचन बाहर आ गईं “नहीं पिता जी आप पीजिए, बस दो मिनट में लाई इनका दूध, बस गर्म ही हो रहा है। मगर ऋषि ने अपने लेट होने की आगे कुछ नहीं देखा और ना ही कुछ सुना बस उसने पिता जी का दूध का गिलास लिया और पीने लगा। जैसे ही उनसे एक घुट पिया उसे एक अजीब सा स्वाद दूध में लगा, जो दूध कम पानी था।