पानी और लकड़ी
पानी और लकड़ी
मैं पापा से बहुत नाराज था। वो मुझे सुप्रीत से शादी नहीं करने दे रहे थे। ऐसा नहीं कि वे अंतर्जातीय विवाह के खिलाफ थे बल्कि उनका तर्क था कि मैं अभी इतना परिपक्व नहीं हूं कि विवाह की ज़िम्मेदारी संभाल सकूँ। अगले महीने तेईस का होने वाला हूँ, कानूनन बालिग हूँ। बी टेक हो गयी। बस नौकरी भी मिल ही जाएगी। सुप्रीत की प्लेसमेंट तो हो भी गयी है। हम दोनों क्लासमेट हैं। पिछले एक साल से एक दूसरे के प्रति समर्पित हैं। फिर समस्या क्या है ! पापा क्यों अमरीश पुरी बन कर हमारी खुशियों के पीछे पड़े हैं ! समझ नहीं आता ! मैंने तो उनसे बात तक करनी छोड़ दी है। फिर भी उनके कान पर जूं तक नहीं रेंग रही।
पापा को मेरा बात न करना अच्छा नहीं लग रहा। कुछ उदास से हैं ,कई दिनों से। पर मुझे क्या? उनकी अपनी प्रॉब्लम है, मान जाएं न !
अभी बाहर से लौटा हूँ। पापा अपने पेड़ पौधों को पानी देने में व्यस्त हैं। उन्होंने मेरी तरफ देखा। मैंने मुँह फेर लिया। अंदर जाने को ही हुआ कि पापा ने आवाज़ लगाई। मैं बे-मन से उनके पास चला गया। मुझसे बोले" पता है ये पेड़ कितना बड़ा हो गया ?
" तेईस साल का ! मेरे पैदा होने पर आपने लगाया था, माँ ने बताया था मुझे"- मैंने बेरुखी से जवाब दिया ।
" अच्छा ये बता कि लकड़ी पानी में क्यों नहीं डूबती ?"पापा मुझसे बात कर के उत्साहित थे।
"प्लीज पापा ! ये क्या प्रश्न है ? मैं बच्चा नहीं हूं। " मैंने खीजते हुए कहा।
फिर भी बताओ तो ? पापा ने अपना धैर्य नहीं खोया था।
" आर्किमिडीज का सिद्धांत" ! भूल गए क्या ? "मैंने व्यंग्यात्मक लहज़े में कहा।
"ठीक है। लेकिन एक कारण और भी है। पानी जिस पेड़ को सींच सींच कर इतना बड़ा करता है, उसकी लकड़ी को डूबने कैसे दे? " पापा की आंखों में नमी तैरने लगी थी। फिर ज़रा रुक कर बोले," मैं भीतुझे डूबने नहीं दूंगा बेटा पिता हूँ तुम्हारादुश्मन नहीं हूं अपने खून -पसीने से पाला पोसा है तुम्हें तुम्हारा बुरा क्यों चाहूंगा"।
पापा का गला रुंध गया।
मुझे झुरझुरी आ गई। पापा के गले लग कर बस यही कह पाया" समझ गया। आय एम सॉरी पापा। जैसा आप कहें ! "