नतीजा

नतीजा

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बापू कैसे उगेगी फ़सल इस बार। भूखों मर जायेंगे ऐसे तो। 

नही रे सुखिया वो उपर वाला है ना वो किसी को भूखा नही रहने देगा। उपर मन से बुद्धिया दिलासा दे रहा था अपने जवान बेटे को लेकिन मन ही मन चिन्ता खाये जा रही थी कि इस बार फ़सल का क्या होगा। गरमी इतनी पड़ रही है बारिश होने का नाम नही ले रही। कैसे होगा सब। 

इस बार बादल बरसने का नाम ही नही ले रहे थे। खेत में पानी नही पड़ेगा तो फ़सल कैसे उगेगी। 

उधर सुखिया बार बार यही सोच रहा था कि बापू अकेले क्या कर लेगा। कहाँ से पानी का इन्तज़ाम करेंगे। बापू अकेले हो जायेगा अगर मै यहाँ से चला गया तो। 

उधर बापू सुखिया को गाँव से दूर शहर पढ़ने भेजना चाहता था। कि चलो कुछ क़ाबिल बन कर कुछ काम मिल जायेगा और सुखिया सुख से रह पायेगा। यहाँ खेतों में मै अकेला ही काफ़ी हूँ। यहाँ वैसे भी फ़सल का कोई ठिकाना नही कभी सूखा कभी तुफान। 

तभी सुखिया के मन में विचार आया कि यदि बापू खेत में कुआँ खुदवा टयूबवैल लगना कर फ़सल को पानी दे तो भी फ़सल हो सकती है। और इससे गाँव वालो की भी कुछ मदद तो हो सकती है उनके खेतों में भी पानी दिया जा सकता है। कुछ समय बाद बारिश भी हो जायेगी , मौसम विभाग का यही कहना है। तब तक हम खेतों को पानी इसी तरीक़े से पहुँचा सकते हैं। 

लेकिन ये काम बापू अकेले कैसे करेंगे। उन्हें लोन लेना नही आता और भी सब फार्मैलटी कैसे करेंगे। 

 सुखिया ने ठान लिया कि वो बापू का साथ देगा जैसे “ एक और एक ग्यारह “ होते है वैसे वो बापू के सारे बाहर के काम पूरे करेगा और बापू के साथ मिल कर काम करेगा। 

सुखिया की मेहनत रगं लाई लोन मिल गया सरकार से तो बापू की आँखें खुशी से भर आई और वो दुगने उत्साह से कुआँ खुजलाने मे लग गया और टयूबवैल भी लगवा लिया और खेतों की प्यास बुझा बुद्धिया का मन तृप्त हुआ।ये सब सुखिया के बापू के साथ देने का नतीजा था। जब एक और एक मिल जाते है तो जुगनू ताक़त दुगने उत्साह से असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाता है। 

आज खुशी खुशी अगली पढ़ाई करने सुखिया ट्रेन पर जब बैठ कर जाने लगा तो माँ -बापू के साथ-२ गाँव वालों आखोँ में प्यार के आँसू भर कर ढेरों आशिर्वाद दे रहे थे।


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