नशा और बिट्टू

नशा और बिट्टू

10 mins
400


बात कुछ साल पुरानी है क़रीब 7-8 साल पुरानी, कुछ धुँधली सी यादें आज भी ज़ेहन में ताजा है। यादें जो आज भी उससे कहीं जुड़ी है, यादें जो आज भी उसकी है। यादें जो आज भी कभी न कभी तक़लीफ़ों के पल याद करा जाती है वहीं पल जो हम दोनों के लिए किसी परीक्षा के दौर से कम नहीं थे। जहाँ कदम-कदम पर उसने और मैंने कई समस्याओं का सामना किया और अंत में मुक्ति हुई ।

नशा = नाश, नशा एक जोंक के समान है जो धीरे-धीरे ख़ून चूसता है और अंदर से खोखला कर देर है। शरीर ही नहीं वरन मस्तिष्क भी पूर्णतया उसकी जकड़ में आ जाता है। बात उन दिनों की है शायद दिसम्बर 2011जब पहली बार उससे मिली, मेरे लिए वो किसी अनजान शख्स की तरह ही था, भीड़ में रहने वाला एक अकेला अनजान व्यक्ति जो अपने आप में ही खोया रहने वाला, ख़ुद में ख़ुद को ही तलाशता हुआ। जाने क्या दर्द था उसे जो भीतर ही भीतर उसे कचोट रहा था, क्या कोई वज़ह होगी उसके पास या फ़िर किसी मुसीबत का शिकार हुआ होगा जो उसने ख़ुद को नशे का आदी बनाया होगा।

अकसर देखा गया है नशे में रहने वालों की अपनी एक अलग ही दुनिया होती है जहाँ वो अपने आप से न जाने कितने सवाल के जवाब खोज़ने में लगे होते है, उसका दिन किसी सवाल लो लेकर शुरू होता है और साँझ होते-होते ज़वाब तो मिलता नहीं पर सवाल जरूर बढ़ जाते है। जब सवाल भी ख़ुद से हो और ज़वाब भी तो दिन वाक़ई बहुत लंबा हो जाता है। नशे की शुरुआत का दौर कुछ ऐसा ही होता है जैसे किसी भवँरे को रस की चाह हो और जब उसकी चाह कभी न ख़त्म होने वाली चाह में बदल जाये तो समझ लीजिए कि उसे लत लग गयी। नशा भी ऐसा ही है, किसी भी उम्र में किया जाए परिणाम बुरे ही मिलते है।

मैं जब उस अनजान से मिली तो उसकी उम्र क़रीब 19-20 साल की होगी, जी वही उम्र जब हम सबको अपने लक्ष्यों का पता होता है कि पढ़ाई ख़त्म करके जीवन यापन करने के लिए कौन सी दिशा में कदम बढ़ाने चाहिये, हम सब में से कई व्यक्ति ऐसे होते है जो आगे बढ़ने के लिए और पढ़ना चाहते है, कई ऐसे भी है जो नौकरी की तलाश में जुट जाते है क्योंकि उनके सामने उनका भविष्य होता है और उनका धेय होता है सुखद आने वाला कल का चेहरा।

ये हमारे हाथ में है कि हम उस चेहरे को क्या रूप देते है, क्या उसे उज्ज्वल भविष्य देते है या अन्धकार में झोंक देते है। वो अनजान शख्श चलो उसे नाम देते है "बिट्टू" जी तो जब हम बिट्टू से मिले तो न जाने उसे कितने ही हिस्सों में बटा पाया उसका शरीर उसके बस में ही नहीं था और उसका मन उसका होकर भी उसका नहीं था। दिल और दिमाग दो अलग-अलग दिशाओं में चलते थे उसके, जहाँ वो ख़ुद को समझाता था कि जो वो कर रहा है वो ठीक नहीं वहीं उसका मन उसके दिमाग पर हावी हो जाता था और फिर अच्छे बुरे की पहचान कहाँ शेष रह जाती है। बहुत करीब से उसकी सभी हरकतों और हाव भाव को जाना समझा था मैंने। ऐसी ही न जाने कितनी परेशानियों से घिरा मिला था मुझे बिट्टू। मुझसे उम्र में बहुत छोटा, इतना छोटा कि कहीं डाँट कर बैठा दो तो दूसरी आवाज़ पर भी ज़बान न खुले उसकी।

आज से 8 साल पहले जब मिला था वो तो गुमसुम सा रहता था, चुपचाप एक कौने में बैठा रहता था। अपने आप से न जाने कितनी बातें किया करता था। ऐसा नहीं है कि पागल था वो, पर किसी और के साथ उसकी पटरी नहीं बैठती थी न शायद इसीलिए सिर्फ़ अपनी ही दोस्ती में ख़ुश रहता था वो। एक दिन देखा हमनें कि कुछ लोग उस पर चीख़ रहे थे और वो बेजान बुत बना सिर्फ़ सुन रहा था उनकी बात, ये देख कर बुरा सा लगा, एक मन हुआ कि जाकर पूछूँ उससे कि क्या हुआ ऐसा जो लोग चीख़ रहे, क्या हुआ ऐसा जो तुम कुछ कह नहीं रहे। पर मन की मन में रह गयी। धीरे-धीरे वो रोज़ मिलने लगा, थोड़ा बहुत खुल भी गया था हमसे, पर रहता अब भी वैसा ही। मिल जाता था कभी किसी अनजान डगर पर या कभी किसी अनजान मोड़ पर खुद से बुदबुदाता हुआ।

एक दिन बारिश का मौसम था, सर्द हवाएँ भी चल रही थी, तूफ़ान का अंदेशा भी था। सर्दी की शामों में बरसता पानी अकसर रातें और ठंडी कर जाता है। मुझे भी घर लौटने की जल्दी थी यहीं सोच कर कदम बहुत तेजी से बढ़ रहे थे मेरे, बाज़ार में भी हलचल थी, पहाड़ो पर घर होने के कारण वहाँ की शामें जल्दी ही रातों में तबदील हो जाती है। ऐसी बाज़ारी हलचल में बिट्टू मिला मुझे सर्दी को धुँए के कश से कम करता हुआ। मुझे देखकर बेचारा सकपका सा गया, समझ नहीं आया उसे की उठ कर कहीं और चला जाए या फ़िर उस छल्ले बनाती सिगरेट को कहीं फैंक दे। वो बेचारा कुछ समझ पाता उससे पहले मैंने उसे बोल दिया बिट्टू चल आज घर चल, समान ज्यादा है तो मदद हो जाएगी मेरी भी और बदले में तेरी कुछ आमदनी भी। पैसों का नाम सुनते ही जैसे उसकी बाँछे खिल गयी मानो किसी ने जन्नत का रास्ता दिखा दिया हो। जब किसी नशे में चूर इंसान को कभी कहीं से पैसा मिल जाता है बिना मेहनत के तो पैसे देने वाला इन्सान उसे किसी भगवान से कम कहाँ लगता है।

बिट्टू बिना किसी ना-नुकुर के मेरे पीछे-पीछे चल दिया। हालांकि समान ज्यादा नहीं था, उसके पास पर वो थक रहा था और उसकी साँसें भी उखड़ रही थी। उसने तमाम नाकाम कोशिशें करी अपनी तबीयत मुझसे छुपाने की पर कामयाब नहीं हो पाया। थोड़ी-थोड़ी दूर चल कर वो सामान के साथ बैठ जाता था। उस नशे ने उसे भीतर से इतना खोखला कर दिया था कि वो ख़ुद के योग्य भी कहाँ रह गया था। उसी पल मन ही मन मेरा निश्चय उसके प्रति और दृढ़ हो गया था, मन में बस एक ही ख़्याल उमड़ रहा था कि मुझे इसके लिए कुछ करना है। इसे एक नया सूरज दिखाना है, वो सूरज जो न सिर्फ़ रोशनी देता है बल्कि एक नयी राह भी प्रशस्त करता है एक उज्जवल भविष्य की ओर जिसे बिट्टू ने अन्धकार में डुबो रखा है।

ऐसे रुकते-रुकाते हम घर पहुँच गए। घर पहुँचने की देर थी बस अचानक उसके पेट में जानलेवा दर्द उभरा, जब उसे दर्द से छटपटाते देखा तो पाँव तले जैसे ज़मीन ही ख़सक गयी, अगर इसे कुछ हो गया तो मैं ख़ुद को माफ़ भी न कर पाऊँगी। दर्द में करहारते हुए उसने मुझसे बाथरूम का रास्ता पूछा मैंने इशारे से उसे समझा दिया, जैसे-तैसे वो वहाँ तक पहुँच गया और करीब आधे घण्टे बाद वो बाहर आया, आँखें तो सुर्ख़ लाल थी पर बहुत शांत था इतना सहज़ जैसे कुछ हुआ ही न हो। मेरी ही नज़रों से बचा कर वो मेरे ही घर में अपने नशे की एक ख़ुराक ले आया। यह सोच कर तो ख़ुद से ही शर्मिंदा थी मैं कि बस यहीं कर पायी क्या मैं इसके लिए, क्या यहीं सोचा था मैंने। रात में सोने का कमरा और उसे कुछ खाने के लिए देखकर मैं अपने कमरे में आ गयी। वो रात बहुत काली और लंबी थी। जैसे-तैसे उधेड़बुन करते हुए वो रात गुज़ारी थी मैंने, आज भी याद आती है न जब वो रात तो उतनी ही घबराहट होती है।

अगले ही दिन सुबह मैंने शहर के नज़दीक रिहैब सेंटर में बात की और बिट्टू के बारे में पूरा बताया। उन्होंने आश्वाशन दिया कि वो पूरी कोशिश करेंगे कि उसकी ये नशे की लत छूट जाए और वो आप-हम जैसा नशामुक्त जीवन बिता सके। इसी सोमवार उसका दाख़िला करवाना था, जितना आसान लग रहा है न ये कहना, उससे ज्यादा मुश्किल था बिट्टू को समझाकर कर वहाँ तक ले जाना। बिट्टू जो अपनी मन मर्ज़ी का मालिक था, बेरोक-टोक यहाँ - वहाँ घूमना जिसे भाता था, जिसकी न जाने कितनी ही रातें नशे की हालत में फुटपाथ पर गुज़री थी और काम के नाम पर उतना ही करता था जिससे नशे की ख़ुराक जितना कमा पाए। कभी किसी की गाड़ी साफ़ कर दी तो कभी किराने वाले झज्जु का बोरा रख दिया दुकान में, बस यहीं ज़रिया था उसका आमदनी का या यूँ कहे नशा खरीदने का। उसे ऐसे माहौल से निकाल पाना आसान तो बिल्कुल नहीं था पर जरूरी बहुत था। यहीं सोचकर इतना बड़ा कदम उठाया। मन को पक्का करके कदम बढ़ाया बिट्टू के ठिकाने की तरफ़, जहाँ धुँए के छल्ले उड़ रहे तो समझ लीजिए आज राजा साहिब का ठिकाना वहीं है।

बिट्टू तो बिल्कुल भूल गया था कि वो अपने जिस्म को खोखला कर चला है और जो बचा है उसे अगर बचाया नहीं गया तो शायद बिट्टू था में बदल जायेगा। बहुत समझा-बुझा कर उसे सेंटर के बारे में झूठ बोल कर "किसी ने मिलना है तुमसे" ऐसा कह कर ले गयी। मत पूछिए वहाँ क्या हाल किया उसने उन सबका, सबको अपने पीछे दौड़ा डाला पर मज़ाल है किसी के हत्थे चढ़ा हो बिट्टू, वो बेचारे कभी मेरा मुँह ताकते तो कभी बिट्टू के पीछे भागते।

एक घण्टे की कसरत के बाद बिट्टू उनके काबू में आया, उसे सबने मिलकर बहुत समझाया और तरह-तरह के लालच दिए तब कही जाकर वो वहाँ रुकने को राज़ी हुआ। उसे वहाँ छोड़कर मैंने भी चैन की साँस ली, घर लौट कर तो नींद ऐसी आयी जैसे कई रातें जाग कर गुज़ारी हो।

रात कैसे गुज़री पता ही नहीं चला। सुबह हुई तो सोचा थोड़ा बाज़ार का काम निबटा कर बिट्टू का हाल ले आऊँ, पर उसने वो मौका भी कहाँ दिया मुझे। अभी मोबाईल उठाया ही था तो देखा कि 6-7 मिस कॉल्स थी सेंटर की, मन में अज़ीब सी घबराहट थी, डरते-डरते फ़ोन किया तो वहाँ से आवाज़ आयी कि मैडम जी बिट्टू रात से ही गायब है, हम सब उसे ढूढ़ने में लगे है। मन में जाने कितने ही बुरे ख़्याल आने लगे कि बेचारा बच्चा रात से गायब है न जाने कहाँ होगा, ठीक तो होगा न। उन्हीं ख़्यालों में उलझे हुए दरवाज़ा खोला बाहर का तो देखा आँगन में बिट्टू सो रहा था, ठण्ड के मारे गठरी सी बन कर, एक मन हुआ कि जगा कर पूछूँ, एक मन हुआ कि सेंटर फ़ोन कर के बता दूँ । फ़िर न जाने क्या ख़्याल आया अंदर से एक कम्बल उठा कर लायी और उसके ऊपर डाल दिया। मैं ख़ुद भी वहीं आँगन में कुर्सी बिछा कर बैठ गयी कहीं फ़िर से न ग़ायब हो जाये। थोड़ी ही देर बाद उठ खड़ा हुआ बिट्टू, बहुत डरा हुआ सा लग रहा था जैसे किसी ने कमरे में बन्द करके बहुत पीटा हो। मेरे कुछ भी बोलने से पहले बोल पड़ा मैं उन लोगों के पास नहीं जाऊँगा, मैं उन अजनबियों के पास नहीं रह सकता, आप मुझे यहीं रख लो, आप जो बोलोगे मैं वहीं करूँगा पर वहाँ दुबारा नहीं जाऊँगा। मैंने उसे समझाने की जी-तोड़ कोशिशें करी पर वो टस से मस नहीं हुआ।

मरता क्या न करता झुकना पड़ा उसकी ज़िद के आगे। धीरे-धीरे घर से ही उसका इलाज़ शुरू करवाया, डॉक्टर लोग घर ही आने लगे, तरह-तरह की दवाईयाँ और इंजेक्शन के सहारे उसकी तबीयत में सुधार लाने की कोशिशों में लगे रहते थे सब।

पहले-पहले डर जाया करता था उन्हें देख कर, नींद का बहाना करके दर्द में भी सो जाया करता था। शुरुआती दौर में जब कभी वो दर्द से बेहाल होता था तो नशे को ही सहारा समझता था पर फ़िर धीरे-धीरे उसकी उन सब सेंटर के लोगों से दोस्ती हुई और जीने की चाह भी जगी। तब वो थोड़ा-थोड़ा सहयोग देने लगा। क़रीब 10-12 महीने का समय लगा वो भयावह और दर्दनाक दौर ख़त्म हुआ। देखते ही देखते बिट्टू की तबीयत में सुधार होता गया।

बिट्टू में एक नयी इच्छाशक्ति का जन्म हुआ, आज बिट्टू पूर्णतया स्वस्थ है और यहीं शहर के पास एक स्कूल में चपरासी का काम कर रहा है। उसके स्वभाव में भी बहुत सुधार आया है जहाँ वो अकेला रहा करता था आज वो बच्चों के झुंड में बैठा मिलेगा उन्हें रोज़ एक नयी कहानी सुनाते हुए। उसे देख कर यक़ीन नहीं होता कि ये वहीं बिट्टू है। आज नशे से मुक्त है वो पर जब कभी घर आता तो बस यहीं कहता कि आपने बचा लिया मुझे, अपनी और मेरी आँखें नम करके चला जाता है, बिट्टू।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract