नन्ही जान..
नन्ही जान..
"क्या हुआ कमला दो दिन कहाँ घुम हो गई थीं और आज भी इतनी देर कर दी..। ना कोई फोन ना मैसेज..। वैसे छुट्टी करतीं हैं तो तेरा पति बता कर जाता हैं... इस बार वो भी नहीं आया..! "
"माफ़ करना मेमसाब.. वो तबीयत थोड़ी ठीक नहीं लग रहीं थी..।"
"अरे तो फोन करके मना कर देती...। तबीयत ठीक नहीं हैं तो काम कैसे करेगी..!"
"वो मैं कर लेगी मेमसाब...। आप टेंसन ना लो..और फिर तबीयत का क्या हैं वो तो चलतीं रहेगी अभी...।"
"चलतीं रहेगी... मतलब...। तू ठीक तो हैं ना..!"
कमला झाड़फूंक का काम करते करते बोली :-" कुछ नहीं मेमसाब वो मैं फिर से मां बनने वाली है... तो अब नौ महीना तो कुछ ना कुछ तकलीफ होतीं रहेगी..।"
"क्या... फिर से...। कमला तू पागल हो गई है क्या...। इस मंहगाई के जमाने में पहले ही तीन बच्चे हैं अब ये एक ओर..!"
"क्या करूँ मेमसाब... मेरा मर्द सुनता ही कहाँ है..।"
"लेकिन कमला.. लड़का भी तो हैं ना तुझे... फिर क्यूँ जिद्द कर रहा है वो..। लड़का ना हो तो समझ में आता है...।"
कमला झाड़ू लगाते हुए.... "मेमसाब... है कुछ बात...।"
आरती उसके पास जाती हुई.... "क्या बात हैं कमला...! बता मुझे..।"
"कुछ नहीं मेमसाब...आप छोड़ो ना...। नाश्ते में क्या बनाऊँ .... आज..!"
आरती उसके हाथ से झाड़ू लेते हुए.... तू पहले इधर बैठ...।
आरती हाथ पकड़ कर कमला को कुर्सी पर बैठाते हुए... "आराम से बैठ और बिना झिझक मुझे बता... बात क्या है...!"
कमला कुर्सी पर बैठकर टेबल पर रखें पानी के जग से गिलास में पानी भरकर पीते हुए बोली.... "मेमसाब... मुझे इस बच्चे को सिर्फ पैदा करना है... पालना नहीं है..।"
"क्या मतलब...?"
"मेमसाब.... मैं पीछे वो दूसरी सोसाइटी में काम करतीं हैं ना... वहाँ की मेमसाब को सात साल हो गए हैं शादी किए हुवे... उनको बच्चा नहीं हो रहा..वहाँ मेरा मर्द भी अखबार देने आता है...। उसने वहाँ की मेमसाब से सौदा किया... की मैं बच्चा पैदा करके उसको देगी.. उसकी एवज़ में मेरा मर्द वहाँ से पैसा लेगा..।"
"व्हाट....और तू तैयार हो गई इन सब के लिए...!"
"मुझसे पूछा जाता तो रजामंदी का सवाल होता ना मेमसाब..। मुझे तो बस हुक्म दिया जाता है...। ना मानों तो बच्चों को ओर मुझे पीटा जाता है..।"
"लेकिन कमला.... ऐसे बार बार इतनी छोटी उम्र में बच्चे पैदा करने से तेरी सेहत बिगड़ सकतीं है..और वैसे भी तुझे बच्चे कितनी तकलीफ से ठहरते हैं पता है ना...। नौ महीने कितना दर्द झेलती है तू..। तुझे समझाना चाहिए था अपने पति को...।"
"मेमसाब... बहुत समझाया... पर बच्चों का वास्ता और कसमें दे दी तो क्या करतीं... और फिर क्या पता मेमसाब... पैसे से हमारी हालत थोड़ी सुधर जाएं..।"
"रहने दे कमला... क्या मुझे नहीं पता... तेरे पति के बारे में.. और तू खुद भी जानती हैं... सब कुछ.. .। पैसे कब आएंगे और कब खत्म हो जाएंगे तुझे पता भी नहीं चलेगा..।"
"सब जानती हूँ मेमसाब... पर एक उम्मीद... शायद मेरा मर्द समझ जाए..।"
"अब तुझे क्या ही बोलूं कमला तू खुद कुछ समझना ही नहीं चाहतीं तो...। चल छोड़.. अभी जा तू नाश्ता बना ले...। तेरे लिए भी और मेरे लिए भी...और मेहरबानी करके तीन चार महीने तो अच्छे से अपना ख्याल रखना..। इस आने वाले नन्हें मेहमान के लिए...। "
"लेकिन मेमसाब.... झाड़ू... "
"अरे.... अभी बोला ना अपना ध्यान रखने को..। ज्यादा झूकने और वजन उठाने वाले काम मत किया कर..। समझी..! जा तू नाश्ता बना...। सफाई में कर देतीं हूँ..और ये सिर्फ मेरे घर के लिए नहीं सभी घरों के लिए बोल रहीं हूँ...।
वैसे एक बात पुछू कमला... अगर तेरे पति को बच्चे से पैसे मिलने वालें हैं तो अभी तुझसे आराम भी तो करवा सकता है ना..!"
कमला मुस्कुराती हुई बोली..... "मेमसाब...अगर अभी काम नहीं करेगी तो रोज़ रात को उसका दारू और बच्चों का खाना कहाँ से आएगा.!
उसने तो बस बोल दिया ये सौदा तय हुआ हैं...। अब नौ महीने मैं कैसे जीती है कैसे रहतीं है... उसको कोई मतलब नहीं हैं..। लेकिन सच कहूं मेमसाब इस बार अगर इस बच्चे को कुछ हुआ तो मेरा पति मेरा खून कर देगा..।"
"तू घबरा मत... मैं हूँ तेरे साथ... कभी भी कोई जरूरत हो तो मुझे बता देना...। जा अभी नाश्ता बना ले...।"
जैसे तैसे आखिर कार नौ महीने बीते और कमला ने एक लड़की को जन्म दिया...।
कमला हास्पिटल में ही थीं जब उसके पति ने सामने वाले को लड़की होने की खबर दी तो... लेकिन कमला पर और उसके पति पर उस वक्त पहाड़ टूट पड़ा... जब उस औरत ने वो बच्ची लेने से मना कर दिया..।
वज़ह ये थी की वो बच्ची नार्मल नहीं थी....मतलब उसके मानसिक विकास में कुछ प्रोब्लेम थी...। ऐसे बच्चों को संभालना और उसकी जिम्मेदारी उठाना सभी के बस की बात नहीं है..।
वो नन्ही मेहमान... जो अनचाहे ही किसी की लालच की वजह इस दुनिया में आई थीं...। आखिर अब उसका सहारा कौन होगा...और इस पूरे घटनाक्रम में उस नन्ही जान का क्या कुसूर...!!
