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Vijay Vibhor

Inspirational

3  

Vijay Vibhor

Inspirational

नंगा

नंगा

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रामबीर बहुत दिनों बाद अपने गाँव जा रहा था। वह अपनी चमचमाती मोटरसाइकिल पर सवार, बहुत ही महंगे–महंगे ब्रांडेड कपड़े पहने, महंगा चशमा लगाए, बहुत ही कीमती घड़ी बाँधे हुए था। अप्रोच रोड़ पर बसे उसके गाँव के खेतों में एक रहट था जिसका पानी बहुत ही शीतल एवं मीठा था। जिन मुसाफिरों को उस रहट के बारे में पता था उनको प्यास नहीं भी होती तब भी वह उसका पानी पीने के लिए ओर पाँच–दस मिनट उसके आस–पास लगे फलदार वृक्षों की छाँव में बैठने का लालच कर लेते थे।

जैसे ही रामबीर अपनी मोटरसाइकल पर उस रहट के पास से गुजरा उसे अपने बचपन के दिन याद आ गए। जब इस रहट पर रहने वाले भरतू चाचा को उनकी टोली परेशान किया करती थी। उसने सोचा अब तो भरतू चाचा भी बहुत बूढे हो गए होंगे। उनसे मिला जाए, कुछ देर पेड़ों की छाँव तले आराम का आनन्द भी ले लूंगा और पानी भी पी लूंगा। ऐसा विचार कर उसने मोटरसाइकल रहट की तरफ मोड़ दी। दूर धान के खेतों से आता हुआ उसे भरतू नज़र आया तो उसने मोटरसाइकिल सड़क किनारे ही खड़ी कर दी और पैदल ही खेतों के मेड़ पर चलते हुए भरतू की तरफ बढ़ने लगा| उनके पास पहुँचा तो भरतू चाचा हड्डियों का पिंजर मात्र बचे थे । चाचा को उसने राम–राम की। चाचा ने यादास्त पर थोड़ा जोर लगाकर उसे पहचान लिया।

“अरे तू तो रामबीर है ना ? हजारी को छोरा।”

“हाँ चाचा ! मैं रामबीर ही हूँ हजारी जी का बेटा।”

“भाई ! लगता है तू तो बड़ा आदमी बन गया है। इतने अच्छे कपड़े, घड़ी, आँखों पर फैशन का चश्मा। पर बुरा मत मानना बेटा तू चाहे कितना ही बड़ा आदमी बन गया हो मुझे तो तू नंगा ही दिखाई दे रहा है।"

भरतू की बात सुनकर रामबीर ने अपने आपको ठीक से देखा और बोला, "चाचा तुम्हें ग़लतफ़हमी हो गयी है लगता है आँखों में मोतिया उतर आया है।"

"नहीं बेटा मुझे तो बहुत दूर का दिखाई देता है| तूझे ऐसा बनाने के चक्कर में तेरा बाप बुरी तरह से दुनिया के बोझ तले दबा हुआ है।”

भरतू चाचा की बात सुनकर रामबीर उलटे पाँव हो लिया।

भरतू ने पुकारा, “अरे बेटा कहाँ चला ? बैठ जा थोड़ा आराम करके चले जाना।”

“नहीं चाचा ! अब रुक नहीं सकता। अब तो तभी वापिस आऊंगा जब मेरे पूरे ख़ानदान के बदन पर पूरे कपड़े होंगे और कोई हमें नंगा नहीं कह सकेगा।"


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