नजरिया
नजरिया


चलो कुछ पन्नो में आज हाथ अजमाते हैं
जिंदगी को अपना नजरिया पहनाते हैं
आओ इस शहर का हाल सुनाते हैं ,
खवाहिशो को छोड़कर सुकून पाते हैं
आओ चलो कुछ किससे सुनाते ,
इस शहर के सन्नाटे को हमसफ़र बनाते हैं
जिंदगी की कशमकश से थोड़ी छुट्टी पाते हैं,
छोटी छोटी खुशियों में आज रंग मिलाते हैं शहर
आओ इस शहर को थोड़ा अपना बनाते हैं
माँ की गोद को फिर तकिया बनाते हैंं,
भूूूली हुई लोरियों को फिर से दोहराते हैं,
आओ जिंदगी को अपना दोस्त बनाते हैंं
चलो कुछ पन्नो में आज हाथ अजमाते हैं!