हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy

निबंध लिखो और मौज करो

निबंध लिखो और मौज करो

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बहुत दिनों बाद हमारे पड़ौसी भुक्खड़ सिंह जी हमारे घर आये । वैसे मैं भुक्खड़ सिंह जी को पसंद नहीं करता हूं क्योंकि वो खाते बहुत हैं । लेकिन वो क्या है कि वो हमारी प्यारी छमिया भाभी के पतिदेव हैं तो इसलिए उनका भी स्वागत करना पड़ता है । छमिया भाभी को देखकर हम ठंडा ठंडा कूल कूल महसूस करने लगे । 

हम छमिया भाभी से मुखातिब हुए "आजकल तो आप ईद का चांद हो गई हैं भाभीजी , कहीं नजर ही नहीं आती हैं ! एक तो इतनी गरमी हो रही है जिसने हमारा जीना हराम कर रखा है , उस पर आप भी ऐसे गायब हो गई हैं जैसे जेठ के महीने में छाया ! अब आप ही बताइए कि हम जैसे लोग कहां जायें" ? 

हमारी बातों से उनके चेहरे पर नूर बरसने लगा । वे थोड़ा सा मुस्कुरा कर और हल्के से शरमा कर बोलीं "भाईसाहब, आपकी बातें बहुत प्यारी होती हैं । आप आखिर साहित्यिक व्यक्ति हैं इसलिए उपमाएं भी ढूंढ़ ढूंढ कर लाते हैं । दरअसल हम लोग पिछले कई दिनों से बहुत परेशान हो रहे हैं" । 

उनकी परेशानी वाली बात सुनकर हम घबरा गये । हमारे रहते हमारी छमिया भाभी परेशान हों, यह हम कतई सहन नहीं कर सकते हैं । हमारे चेहरे के भावों से वे समझ गईं कि हम क्या कहना चाहते हैं । हमेशा की तरह अपने हाथ नचाकर वे बोलीं 

"भाईसाहब, वो मेरा भाई पिछले 15 दिनों से जेल में हैं । उसकी जमानत नहीं हो रही है । बस, इसी कारण परेशान हैं । आपकी तो सब जगह एप्रोच है , आप ही कोई जुगाड़ बैठाइए न" ? 

छमिया भाभी की बातों से हम गदगद हो गए । छमिया भाभी भी हमें याद करती हैं , इतना मानती हैं, यह सिद्ध हो गया । इससे हमारी बांछें खिल गईं । अब तो छमिया भाभी के भाई को जेल से निकलवाने की जिम्मेदारी हमारी हो गई । पूरी जिंदगी में छमिया भाभी ने एक ही तो काम बताया है । यदि उसे भी पूरा नहीं किया तो फिर छमिया भाभी का देवर होने का मतलब ही क्या है ? 

हमने अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए । हमारे दिमाग में तुरंत एक नाम आया । "खरब चंद" । हमारे बचपन के मित्र । स्कूल में हम दोनों साथ साथ पढ़े थे । खरब चंद जी के पिता कबाड़ी का काम करते थे इसलिए हम उन्हें "कबाड़ी" ही कहा करते थे । कपड़े भी कबाड़ में आने वाले ही पहन कर आते थे वे । लंच बॉक्स तो कभी लाते ही नहीं थे वे इसलिए हम उन पर दया करके अपने टिफिन में से एक तिहाई खाना उन्हें दे दिया करते थे । इसलिए वे हमारे द्वारा दिये गये "कबाड़ी" नाम पर भी कभी ऐतराज नहीं करते थे । 

समय बड़ा बलवान होता है साहब ! समय का करिश्मा देखिए कि हम एक "कलम घसीटू" बन गए और कबाड़ी "खरब पति" बन गया । पता नहीं क्या धंधा शुरू किया उसने कि आज वह करीब 1,00,000 करोड़ का मालिक है । उसकी पहुंच सब जगह है । क्या नेता और क्या अभिनेता ! क्या अधिकारी और क्या सुंदर नारी ! सब उनके मुरीद हैं । क्या पुलिस और क्या वकील ! सब उनके इशारों पर नाचते हैं । छमिया भाभी के काम के लिए उनसे बेहतर व्यक्ति और कोई नहीं हो सकता है । ऐसा सोचकर हमने उन्हें फोन लगाया । 

खरब चंद जी की एक खास बात है कि वे चाहे कितने भी बड़े हो गए और हम चाहे कितने भी छोटे हैं, फिर भी वह हमारा फोन जरूर अटेंड कर लेते हैं । हमारे फोन से प्रसन्न होकर वे कहने लगे 

"बहुत लंबी उम्र है यार आपकी ! बस, अभी आपको ही याद कर रहा था कि इतने में आपका फोन आ गया" । बिंदास हंसी हंसते हुए वे बोले । 

अब हमारा माथा घूम गया । खरब चंद जी हमें याद करें , यह कैसे हो सकता है ? उनके लिए हम कबसे इतने महत्वपूर्ण हो गये कि वे हमें याद करने लगें ? 

"क्यों मजाक करते हो यार ? भला आप हमें क्यों याद करेंगे ? क्या कोई किताब पढ़ने की इच्छा हो गई है" ? हम अपने लेखन पर गर्व करते हुए बोले 

"अरे नहीं यार ! किताब पढ़ने को मेरे पास वक्त कहां है ? वो क्या हुआ कि मेरा छोटा बेटा "बिगड़ैल चंद" है ना ! उसने बेड़ा ग़र्क कर दिया मेरा । इसी कारण आपको याद कर रहा था "। 

हम कुछ समझे नहीं इसलिए चुपचाप उन्हें सुनते रहें और वे बोलते रहे 

"आज क्या हुआ कि मैं अपने छोटे बेटे के लिए एक नई "पोर्शे" कार खरीद कर लाया था । वो बिगड़ैल चंद उसे लेकर अपने दोस्तों के संग पार्टी करने चला गया । साले ने पहले तो खूब दारू पी । फिर नशे में धुत होकर घर आने के लिए गाड़ी चलाने लगा । एक तो नई पोर्शे कार की खुमारी और उस पर दारु का नशा । फुल मस्ती में आकर वह 200 की स्पीड से गाड़ी को "उड़ाने" लगा । 

अचानक उसके सामने एक बाइक आ गई और उसने वह बाइक उड़ा दी । लोग बता रहे थे कि बाइक पर दो युवा इंजीनियर सवार थे । दोनों की वहीं मौत हो गई । इससे हमारे शहजादे बिगड़ैल चंद डर गये और वहां से भाग छूटे । घर आकर उसने मुझे सारी कारिस्तानी बता दी । 

अब आप तो जानते ही हो कि मैं कैसा आदमी हूं । औलाद चाहे कैसी भी हो , मुझे तो एक बाप का फर्ज तो निभाना ही था । इसके लिए चाहे कितना ही पैसा खर्च करना पड़े और चाहे कुछ भी करना पड़े । आप तो जानते ही हो कि इस देश में सब कुछ बिकाऊ है । पद, प्रतिष्ठा, मान , सम्मान, चरित्र, शील, ईमानदारी, इज्जत, न्याय सब कुछ । बिगड़ैल चंद भी अभी 18 साल का नहीं हुआ था । एक महीना छोटा है अभी । बस, इसका फायदा उठाया और नामी वकीलों की एक फौज खड़ी कर दी उसके लिए । केवल दो घंटे में छुड़ा लाया उसे । पर कोर्ट ने एक शर्त लगा दी । कहा कि उस हादसे पर एक निबंध लिखकर लाओ और फिर मौज करो । निबंध लिखने के लिए ही मुझे तुम याद आ रहे थे । अब ये निबंध आपको लिखना है जिसकी कॉपी कर लेगा बिगड़ैल चंद और फिर अपना काम बन जाएगा" । 

उनके चेहरे पर बिगड़ैल चंद के जमानत पर छूटने की खुशी थी लेकिन दो लोगों के मरने का कोई अफसोस नहीं था । बात सही भी है । मरने वालों के लिए पुलिस, वकील , कोर्ट और खरब चंद जी क्यों रोयें ? रोयें तो उनके घरवाले रोयें ! 

हमें विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसे केस में भी जमानत तुरंत मिल जाती है ? इस पर वे बोले "जेब में दम होना चाहिए , सब कुछ हासिल हो जाता है । अभी थोड़े दिनों पहले ही तो एक धूर्त नेता को सुप्रीम कोर्ट ने भी "स्पेशल ट्रीटमेंट" दिया था । ये वाला "न्याय" तो X पर खूब ट्रेंड हुआ पर इससे धरती के भगवानों को क्या फर्क पड़ता है ? इस देश में सब कुछ संभव है बस , जेब में माल होना चाहिए और आदमी "लिबरल" होना चाहिए । उसके लिए सब कुछ उपलब्ध है । 

वाकई वे एकदम सच बोल रहे थे । बेचारे लोग सालों साल न्याय के दर पर ढोक लगाते रहते हैं लेकिन उनका केस सुनवाई के लिए कभी आता ही नहीं है और कुछ लोग ऐसे हैं कि उन्हें जब चाहे तब तारीख मिल जाती है और वे जैसा आदेश चाहते हैं वैसा आदेश भी उन्हें मिल जाता है । 

हम भी सोचने पर विवश हो गये कि वाकई कितना बढ़िया न्याय किया है बिगड़ैल चंद के साथ । दो युवा लोगों की हत्या का दंड एक निबंध लिखो और मौज करो । सचमुच अद्भुत न्याय है यह । इससे कठोर दंड और कोई हो ही नहीं सकता है ! अरे, जिस लड़के को क से कबूतर लिखना नहीं आता है उसे निबंध लिखना क्या खाक आयेगा ? ऐसे लोगों के लिए निबंध लिखना सबसे बड़ी सजा है । हम अच्छी तरह से जानते हैं बिगड़ैल चंद को । जिंदगी में कभी कागज काला नहीं किया । हां, मुंह कई बार काला कर लिया । लेकिन जब बाप के पास अकूत दौलत हो तो वह और कहां ठिकाने लगेगी ? दारू, स्मैक , लड़की , पार्टी और नंगा नाच ! यही सब होना था , हो रहा है । बाप ने कमाया है तो बेटा नहीं उड़ायेगा तो फिर और कौन उड़ायेगा" ? 

अचानक हमारा ध्यान छमिया भाभी पर गया और हमें उनका काम याद आ गया । मैं बोला पड़ा "यार ! निबंध तो मैं लिख दूंगा लेकिन मेरा भी एक काम करना पड़ेगा आपको" 

"जरूर करूंगा । ये तो अपने बांये हाथ का खेल है । बताइए, क्या करना है" । 

"हमारी छमिया भाभी के भाई की जमानत सुप्रीम कोर्ट से करवानी है" 

"बस, इतनी सी बात ! कल हो जायेगी" । बड़े विश्वास से उन्होंने कहा । इस पर हमें बड़ा आश्चर्य हुआ । उन्होंने हमसे न तो ये पूछा कि वह अंदर किस जुर्म में गया है और न ही यह पूछा कि वह कबसे अंदर है ? मेरी बात समझ गये थे शायद वे इसलिए तपाक से बोले 

"आप ये मत सोचो कि वह किस जुर्म में अंदर गया है । कोर्ट तो पहले ही व्यवस्था देख चुका है कि "Every sinner has his future" इसलिए सब अपराधियों की जमानत देना कोर्ट का काम है । 

जब काम करना होता है तो फिर मैरिट पर ध्यान नहीं दिया जाता है , स्पेशल ट्रीटमेंट दिलवाना पड़ता है कोर्ट से । आप उसकी चिंता मत करो । कल जमानत हो जाएगी उसकी । आप तो छमिया भाभी को कागज लेकर "फलां" वकील के पास भेज देना" । 

उनकी बातों से हम और छमिया भाभी दोनों बहुत खुश हुए । छमिया भाभी वकील के पास चली गई और हम निबंध लिखने में मशगूल हो गए । 

 



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