जाल : भाग 2
जाल : भाग 2
समीर किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया। उसे बाबूजी पर बहुत क्रोध आ रहा था। लेकिन उनके दुर्घटनाग्रस्त होने के समाचार ने उसे विचलित कर दिया था। वह उन्हें देखने जाये या नहीं जाये, इसी दुविधा में घिरा हुआ था वह। वह निर्णय नहीं ले पा रहा था। उसने पूजा से पूछा कि उसे क्या करना चाहिए तो पूजा ने बुरा सा मुंह बनाकर कहा "मैं तो चाहती हूं कि वे जिन्दा वापस आयें ही नहीं। काश ! दुर्घटना में वे मर जायें" !
पूजा की बातों से समीर निराश हो गया। एक तरफ पूजा और उसकी वफाएं थीं। पूजा देवी की तरह पाक साफ लग रही थी तो दूसरी तरफ बाबूजी रावण की तरह लग रहे थे। रावण ने भी अपने भाई के पुत्र की पत्नी के साथ भी दुष्कर्म किया था। जिसमें उसे श्राप मिला था कि यदि वह किसी स्त्री का शील भंग करेगा तो उसके सिर के सौ टुकड़े हो जायेंगे। लेकिन पितृ कर्तव्य भी कोई चीज होती है। पूजा और बाबूजी दोनों के बीच में वह बुरी तरह फंस गया था। आज उसे सरल की अहमियत पता चली। काश ! सरल घर पर होता तो वह बाबूजी को संभाल लेता लेकिन वह भी यहां नहीं है।
सरल का नाम याद आते ही समीर का मन घृणा से भर उठा। "अच्छा है कि वह दुष्ट यहां नहीं है अन्यथा पहले वह ही मरता मेरे हाथ से"। समीर के चेहरे पर तनाव स्पष्ट दिखाई दे रहा था।
"कुछ भी हो , आखिर बाप है मेरा। उन्हें यूं ही लावारिस की तरह नहीं छोड़ सकता हूं मैं। दुनिया को क्या पता कि वे अपनी बहू के साथ कैसी हरकतें कर रहे हैं। मैं एक फौजी हूं। फौजी होकर भी बाबूजी की खबर नहीं लूंगा तो लोग क्या सोचेंगे मेरे बारे में ? पूजा का क्या है ? उसके तो ससुर हैं वे। बाप और ससुर में बहुत फर्क होता है। मेरे तो बाबूजी हैं इसलिए मुझे जाना ही चाहिए। यह सोचकर समीर उठ खड़ा हुआ।
"मैं अस्पताल जा रहा हूं। तुम भी चलोगी क्या" ? समीर ने पूजा से पूछा।
"तुम मुझसे चलने की बात कह रहे हो ? वाह ! कमाल की हिम्मत है तुम में। मैं तो उनका मरा मुंह भी नहीं देखूं" ! पूजा ने घृणा से थूकते हुए कहा।
"ठीक है। मैं जा रहा हूं। दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर लेना"
समीर गाड़ी की चाबी लेकर जाने की तैयारी करने लगा
"सुनो ! कब तक आओगे" ?
"2 - 3 घंटे तो लग ही जायेंगे कम से कम। फिर अस्पताल जाकर ही पता चल पायेगा"।
"अच्छा ठीक है। ज्यादा टाइम लगे तो फोन से बता देना"।
समीर निकल गया।
थोड़ी देर में समीर "राज अस्पताल" पहुंच गया। अस्पताल के बाहर ही उसे बाबूजी के बहुत पुराने दोस्त वर्मा जी मिल गये।
"अरे समीर बेटा , कब आया तू" ?
"बस, अभी अभी आया हूं अंकल। बाबूजी कहां हैं" ?
"अभी अभी ICU में लेकर गये हैं उन्हें। गिरने से सिर में गहरी चोट लगी है। कानों से खून आ गया था। शायद ऑपरेशन करना पड़े" !
समीर को अब चिन्ता होने लगी। अभी तक तो उस पर पूजा की बातों का असर था इसलिए बाबूजी के प्रति संवेदनाएं लगभग मर गई थीं। लेकिन वर्मा अंकल के द्वारा जिन हालातों का जिक्र किया था , उससे समीर अंदर तक हिल गया था। वह फटाफट बाबूजी को देखना चाहता था।
वर्मा अंकल समीर को ICU के बाहर तक ले गये। वहां पर बाबूजी के 5-6 दोस्त खड़े हुए थे। सब लोग बाबूजी के लिए चिन्तित हो रहे थे। समीर ने बाबूजी के बारे में जब सबसे पूछा तो सबने कहा कि अब भगवान ही मालिक हैं। इससे समीर की धड़कनें और बढ़ गईं।
इतने में ICU से सरल बाहर निकला। सरल को देखकर समीर चौंक गया।
"तू क्या कर रहा है यहां, बेशर्म ! तुझे अपना मनहूस चेहरा दिखाते हुए लज्जा नहीं आ रही है। मेरे सामने से हट जा नालायक , नहीं तो मैं तेरा खून कर दूंगा" ! समीर चीख पड़ा। सब लोगों का ध्यान समीर पर चला गया। बाबूजी के दोस्त उसे आश्चर्य चकित होकर देखने लगे।
समीर को लगा कि उत्तेजना में वह न जाने क्या कर बैठा है। जिस बात को वह अब तक सबसे छुपाता आया था , वही बात आज सबके सामने खुलने वाली थी। लेकिन वह करे भी क्या ? बात ही कुछ ऐसी थी कि सरल को देखकर उसका खून खौल उठा था।
लगभग साल भर पहले जब वह फौज में कारगिल में था तब एक दिन पूजा का फोन आया और उसने सरल की शिकायत करते हुए उसकी बदमाशियों के बारे में बताया। उसे सहसा विश्वास नहीं हुआ कि उसका छोटा भाई अपनी भाभी के साथ ऐसी नीच हरकतें करेगा ? लेकिन पूजा कोई झूठ बोलेगी क्या ? उसे पूजा की बातों पर विश्वास करना पड़ा। आखिर वह पूजा से कितना प्यार करता है ! फिर, पूजा झूठ क्यों बोलेगी ?
पूजा ने बताया कि उसकी "ब्रा" कभी कभी मिस हो जाती है। वह छत पर कपड़े सुखाती है। किसी किसी दिन उसकी ब्रा तार पर नहीं होती है। न जाने कहां उड़ जाती है या गायब हो जाती है ?
यह पहेली अभी सुलझी भी नहीं थी कि एक दिन वह सरल के कमरे की सफाई कर रही थी तब उसने सरल की आलमारी को खोल लिया। उसमें उसकी कई सारी ब्रा सजी हुई मिलीं। उस दिन उसे पता चला कि उसकी ब्रा कहां जाती हैं ?
सरल देखने में तो बहुत शरीफ लगता है लेकिन काम बदमाशों जैसा कर रहा था। फिर पूजा ने उसके कमरे की अच्छी तरह से तलाशी ली। उसमें कई पोर्न मैगजीन जैसे प्लेबॉय, पेन्टहाउस, हशलर वगैरह एक दराज में रखी हुई मिलीं। पूजा को अब समझ में आया कि सरल के दिमाग में कचरा कहां से भरा था। उसने एक एक किताब, नोटबुक आदि को खंगाला तो एक किताब में से पूजा का एक "न्यूड पोर्ट्रेट" नीचे गिर पड़ा। उसे देखकर पूजा कांप उठी। सरल के दिमाग में उसकी "न्यूड इमेज" बनी हुई है। यह सोचकर वह एकदम से घबरा गई और उसने तुरंत फोन पर सारी बातें समीर को बता दीं। समीर ने आने के लिए कह दिया लेकिन उसे छुट्टी नहीं मिली इसलिए वह आ नहीं पाया था। एक दिन समीर ने पूजा को कह दिया कि वह बाबूजी को सरल की सारी बातें बता दे। तब पूजा ने सरल की सारी हरकतें बाबूजी से कह दीं।
उन बातों को सुनकर बाबूजी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। सरल न केवल नाम से ही सरल था अपितु व्यवहार में भी सरल ही था। लेकिन जो कुछ पूजा ने दिखाया था वह प्रत्यक्ष था , उसे झूठा मानने का कोई कारण नहीं था। इसलिए बाबूजी ने सरल की पिटाई करते हुए उसे घर से निकाल दिया। उसके बाद सरल का कहीं कोई अता पता नहीं चला। आज इतने दिनों बाद सरल से मुलाकात हुई थी समीर की। जी तो बहुत कर रहा था कि उसे अस्पताल में ही ठोक दे लेकिन जमाने का लिहाज करके वह चुप रह गया। उसके दिल में रह रहकर शोले भड़कने लगे।
समीर विचारों की श्रंखला में खोया हुआ था कि इतने में एक डॉक्टर आया और सूचना देकर चला गया कि शैलेन्द्र जी को ऑपरेशन के लिए ओटी ले जाया जा रहा है। उसने एक फॉर्म सरल को देते हुए कहा कि इस पर हस्ताक्षर करने हैं तो सरल ने वह फॉर्म समीर को पकड़ा दिया
"मुझे क्यों दे रहा है इसे ? तू ही कर दे इस पर हस्ताक्षर" ! समीर उस फॉर्म को सरल को पकड़ाते हुए बोला
"किस हैसियत से ? जब बाबूजी ने मुझे अपने घर से निकाल दिया है और उस दिन कहा था कि तू मेरे लिए मर गया है तो फिर मैं कैसे हस्ताक्षर कर सकता हूं" ?
बात वाजिब थी इसलिए समीर ने हस्ताक्षर कर दिए और फॉर्म डॉक्टर को वापस दे दिया। डॉक्टर फॉर्म लेकर चला गया और दोनों भाई उसके पीछे पीछे चल पड़े।
क्रमशः