नेग रिवाज
नेग रिवाज
राजीव की खुशी रह रह कर छलक रही दी। पर यह रिवाज उसको कहीं बहुत परेशान भी कर रहा था।
जीजाजी :--साले साहब! ये तो रिवाज है , मैंने भी निभाया था तो आपको पीछे क्यों रहने दूँ और हाँ! मुझे नेग तगड़ा चाहिए "एक डायमंड रिंग।
राजीव:--जीजाजी , आप ऐसे ही ले लीजिए रिंग पर प्लीज, ये रस्म मुझसे नहीं होगी।
जीजाजी:-- अरे अपशकुन हो जाएगा साले साहब ।
घर को और लोगों ने भी समझाया पर जीजाजी ने एक न सुनी।
बारात निकलने लगी, राजीव के मन में जितनी खुशी प्रिया से मिलने की थी उससे ज्यादा डर इस रस्म का था। जैसे तैसे राजीव घोड़ी पर बैठा, कुछ कदम चले ही थे की पटाखों की कोई चिंगारी घोड़ी की आँख में लग गई,
पहले तो घोड़ी थोड़ा डगमगाई फिर वह बैचेन हो गोल घूमने लगी और राजीव दूर गिरा जाकर।
गुस्से में राजीव:-- घोड़ी में बैठने के बाद भी हो गया अपशकुन ,जीजाजी! मेरी शादी तो एक ही बार होनी थी। इस रूप में प्रिया देखेगी तो क्या सोचेगी वो?
अपने जीवन में दो बार पहरे भी गिर चुका हूँ मैं, ये घोड़े, घोड़ी की मुझसे कोई दुश्मनी है शायद।
" अब आप खुश है ? हो गई आपकी रस्म "?