Pooran Bhatt

Drama Horror

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Pooran Bhatt

Drama Horror

नाले बा - कल आना

नाले बा - कल आना

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धीरे धीरे रात और गहरी होती जा रही थी.. मौत का सन्नाटा चारों ओर पसरा था.. कहीं कुत्ते हू हू.... हू... कर रोते थे..और कहीं सियार चीख़ - चीख़ कर मंज़र को और मनहूस बनाते थे.. अचानक एक जानी पहचानी सी आवाज़ गाँव की सड़को पर गूँजने लगी माई मुझे खाना दे माई... भूखी हूँ मैं कब से माई.... ओ माई... मुझे निकाल ले... माई !!!!!

और ज़ोर से रोने की आवाज़ आने लगती एक महिला का साया दर्द में भरा ज़ोर ज़ोर से फ़रियाद करता हुआ गाँव के हर घर से गुज़रता और रोटी माँगता... ठण्ड में कपड़े माँगता और हर दरवाज़े पर " नाले बा " लिखा देख आगे बढ़ आखिरी में कुंदन का घर पड़ता था उस घर के आगे बैठ कर वो साया पूरी रात रोता चिल्लाता और दर्द में बिलबिलाता था .. फिर आधी रात के बाद भी दरवाज़ा न खुलने से न उम्मीद होकर गाँव के बाहर पुराने सूखे कुँए की तरफ चल पड़ता.. . पहले लोगों को अजीब ख़ौफ़ होता था.. पर अब सब को आदत हो गई है ऐसे जीने लोग बताते हैं चार दशक से ये सिलसिला चल रहा है.. पहले किसी बच्ची की आवाज़ आती थी... पर धीरे - धीरे ये आवाज़ प्रौढ़ होने लगी... गाँव के पंडित जी अमावस्या को एक विशेष भभूत से पीपल की लकड़ी पर नाले बा लिख कर देते हैं और ये साया दहलीज़ नहीं लांघ पाता।

कुंदन की बहू प्रभा की तारीफ तो सब ही करतें हैं.. बड़ी बड़ी आँखें, मिलनसार और हर काम में पारंगत... सब का मन मोह लेती है अपने स्वभाव से.. कुंदन की माँ जानकी देवी बहुत ख़ुश थी ऐसी बहू पाकर वरना 40 का हो चला कुंदन तो कब का शादी की उम्मीद छोड़ चुका था.. अचानक लकड़ियाँ बीनते कुंदन को पुराने पीपल के पास प्रभा मिली.. उसे देखते ही कुंदन उस पर मोहित हो गया.. और घर ले आया.. कुछ दिनों में ही उसने जानकी देवी का मन भी जीत लिया.. और कुंदन की ब्याहता बन गई।

जानकी देवी के कर्कश एवं निर्दय स्वाभाव को देखते हुए कोई खुलकर तो नहीं कहता पर हाँ सब तरह- तरह की बातें बनाते हैं प्रभा के बारे में कोई कहता चुड़ैल है कोई डायन और भूतनी बताता.. वरना पीपल के पेड़ के पास मिलती भला जंगल में!!!... इतनी ख़ूबसूरत बहू कुंदन से क्यों ब्याह करती?? .. जरूर कोई बुरी आत्मा है ये।

जानकी देवी भी तक भी ये बातें गुपचुप रूप में पहुंचने लगी थी, प्रभा और बहुओं जैसी नहीं थी.. वो न चिढ़ती थी न लड़ती थी उसका आगे - पीछे, परिवार कुछ भी तो नहीं पता था.. घंटे भर में खाना चूल्हा बर्तन सब कुछ निपटा के फटाफट खेतों में काम करने चली जाती है.. थकान का कोई नाम तक नहीं...

सुना है चुड़ैलें मर्दो से ब्याह करके संतान पैदा करती हैं और फिर उनकी बलि देकर अमर हो जातीं हैं... पड़ोस की दुर्गा मौसी जानकी देवी को बता रही थी। रोज़ रात को आने वाली चीखें अब जानकी देवी को डराती थी.. वो डरावनी आवाज़ जब ज़ोर ज़ोर से चीखती.. दर्द में तड़प कर हुंकार मारती तो जानकी देवी का कलेजा मुँह को आता.. लगता पल्ले कमरे से प्रभा निकलेगी और जानकी देवी का गला काट कर खून पी जाएगी, एक अजीब सा अंजाना डर छाया रहता.. प्रभा की बड़ी बड़ी आँखें जानकी देवी को ऐसी लगती जैसे उनमे से मौत झाँक रही हो।

जानकी देवी ने अंततः एक फैसला ले ही लिया.. चलो बहू लकड़ियाँ बीनने आज मैं आती हूँ तुम्हारे साथ.. माँ जी आप आराम कीजिए मैं ले आती हूँ...अरे नहीं बहू बैठे बैठे मेरी टाँगे दुखने लगतीं हैं... और कुछ देर में दोनों गाँव के बाहर उस सूखे कुएँ के पास थे...और एक ज़ोर की आवाज़ आई तड़ाक क... क... क... धप्प्प.... एक चीख किसी गहरे कुएँ की दीवारों में घुट कर रह गई।

जानकी देवी ने माथे का पसीना पोछा और सीधा घर की ओर दौड़ पड़ी उसका दिल ज़ोरो से धड़क रहा था... रास्ते में जंगल के कांटे उसे लहू लूहान करते थे...पैरों की चप्पलें जाने कहाँ गिर गई.. कंकड़ पैरों में धंसे चले जाते थे पर एक पल को भी जानकी ने पलट कर पीछे नहीं देखा ... माँ क्या हुआ?? बदहवास सी क्यों हो क्या हुआ...???

कुंदन ने घबराकर माँ से पूछा...

बस पूछ मत.. वो... प्रभा.... प्रभा......

हाँ.. हाँ.. माँ यहीं है प्रभा.. और अंदर से चाय ले कर प्रभा मुस्कुराते हुए बाहर निकली..

जानकी देवी का खून नसें फाड़ कर बाहर निकलने को मचलने लगा.. साँसे नियंत्रण में नहीं रही और वो धड़ाम से बेहोश होकर गिर गई..।

बाहर मौसम बहुत ख़राब था तड़क भड़क के साथ घनघोर बारिश हो रही थी.. माँ को होश आ गया.. रात्रि के कोई एक डेढ़ बजे जानकी देवी ने आँखें खोली... कुंदन.. कुंद... न.... और जानकी देवी फ़फ़क फ़फ़क के रोने लगी... माँ सब ठीक है कुछ नहीं हुआ सम्भालो खुद को.. कुंदन ने बच्चे की तरह माँ को पुचकारते हुए कहा... खूब रो लेने के बाद, माँ तुम्हारी हालत ठीक नहीं है आज प्रभा तुम्हारे साथ ही सोएगी... सामने प्रभा ख़ौफ़नाक मुस्कुराहट के साथ खड़ी थी... उसके खुले बाल और बड़ी बड़ी लाल आँखें.. जानकी देवी के दिल को दहला रही थी.. वो सन्न हो कर चारपाई में पड़ी रही.. कुंदन ने प्रभा को कुछ हिदायतें दी और कमरे की लाईट बुझा कर बाहर सोने चला गया, आज किसी के चीखने चिल्लाने की आवाज़ नहीं आई बाहर से.. शायद ख़राब मौसम के कारण न सुना हो सोचते-सोचते कुंदन कुछ ही देर में नींद की आगोश में खो गया।

माँ..!!!

जानकी देवी को काटो तो खून नहीं... क्या बोले वो एक चुड़ैल के साथ एक ही बिस्तर पर लेटी है...माँ.. आ आ... आ..

अब की बार आवाज़ ख़ौफ़नाक थी.ह.. ह हाँ... हाँ... जानकी देवी का मुँह सूख रहा था...

क्यों किया ऐसा माँ..? क्यों?

जानकी देवी... आँखें बंद किये सब कुछ चुपचाप सुनती रही.. उसमें इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वो माफ़ी माँग सके..

मैं छोटी सी बच्ची थी तड़पती रही तुम मुझे फेंक के भूल गई.. मेरी साँसे बंद होने लगी मैं मरी नहीं थी.. कुएँ में मैं भूख से बेहाल थी.. धीरे धीरे मुझे चीटियां नोंचने लगी... मेरे जिस्म पर मैं उनकी कुलबुलाहट महसूस कर सकती थी... मेरा तन सड़ता था.. माँ मेरा दोष क्या था माँ???

जानकी देवी को 42 साल पहले की वो घटना याद आने लगी जब बेटे की चाह में जन्मी फूल सी बच्ची को उसने सूखे कुएँ में धकेल दिया था...

मैं मरी नहीं जीवन और मौत के बीच की किसी सीढ़ी पर अटक गई थी.. मेरे साथ कुदरत ने इन्साफ किया और मैं वक़्त के साथ बढ़ी होती गई... हर रोज़ मैं गाँव भर के दरवाज़े पीटती कि किसी घर से मेरी माँ निकलेगी.. लेकिन सब मुझे "नाले बा" नाले बा.... नाले बा.... प्रभा चीखने लगी 42 सालों से तड़पती रही हूँ मैं माँ..

जानकी देवी को पश्चाताप तो नहीं लेकिन डर लगने लगा, लगा की मौत सामने खड़ी है.. अब वो नहीं बचेगी... बचने का बस एक ही उपाय था... और वो रोने लगी... बे... बे... टी... माफ़ कर दे अपनी माँ को मेरी बच्ची... हाँ माँ एक बार मुझे गले लगा लो ताकि मैं मुक्त हो सकूँ...

और प्रभा ने बाहें खोल दी... जानकी देवी को कुछ राहत मिली कि गले लगते ही ये मुक्त होकर चली जाएगी...

और चुपचाप प्रभा के गले लग गई.... अब तुम्हें भी वही बर्दाश्त करना होगा मेरी माँ... ही ही ही..... ही एक भयानक हंसी गूंजने लगी.... और वो हंसी पूरे गाँव का चक्कर लगाते हुए... कुएँ में जाकर ख़त्म हुई।


कुंदन बाहर से दौड़ता हुआ अंदर आया प्रभा बेहोश थी... माँ का कहीं कोई पता नहीं था... सब शांत हो चुका था...

अगले दिन एक आदमी प्रभा को ढूँढता हुआ आया... दद्दा..??

प्रभा ने झट से पैर छुए...

कहाँ चली गई थी तू.. पगली..तुझे कहाँ -कहाँ नहीं ढूंढा ???

प्रभा का पहला पति उसे खूब मारता पीटता था ... उसने प्रभा को शहर में बेचने की तैयारी की थी, उसी से बच कर प्रभा जंगल में खुदखुशी करने गई थी !!जहाँ कुंदन उसे मिला और वो यहाँ आ गई कुंदन के साथ .. तेरा पति मर गया कल रात प्रभा... !!!!

अब तू ख़ुश रह अपनी नई गृहस्थी में और दद्दा ढेरों आशीर्वाद दे कर चले गए।

जानकी देवी को खूब ढूंढा गया पर उसका कहीं पता नहीं चला जाने कहाँ चली गई.. रातों को वो ख़तरनाक आवाज़ अब भी आती है.. पर अब कोई बुढ़िया बोलती है.. मुझे रोटी दे... मैं भूखी हूँ... .. मुझे रोटी..... टी.... आह्ह्ह्ह..... दर्द और अकेलेपन में तड़पते और लोगों ने अपने घरों के बाहर फिर वही लिखा है...

"नाले बा"...




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