कमीज़
कमीज़
सेल्समैन ने खूबियां गिनवाते हुए एक-एक कर शर्ट्स दिखानी शुरू की... बड़े से रंग बिरंगे कपड़ों के शोरूम में तरीक़े से सजे हुए कपड़ों की तह को को तोड़ - तोड़ कर वो दिखा रहा था... ख़ूबसूरत नौजवान सेल्समैन की अंग्रेजी का आधिक्य लिये हिंदी और चपलता मधु को प्रभावित कर रहीं थी।
अचानक मधु ने एक शर्ट पर हाथ रखा.. अरे वाह मैम व्हाट ए चॉइस... क्लासी लेडी चूज ए क्लासी पीस।
आप की चॉइस बहुत रॉयल है यही शर्ट आपको लेनी चाहिए.. लगभग अधिकार पूर्वक सेल्समैन ने कहा।
मधु को अपने पति के लिये ये शर्ट बहुत अधिक पसंद नहीं थी पर फिर भी सेल्समैन के आत्मविश्वास और शोरूम के रंगीन मायाजाल के सामने वो नतमस्तक हो गई।
"याह आई ऑलवेज प्रेफ़र क्वालिटी इंस्टेड ऑफ़ मनी.. पैक इट..."
"श्योर मैम "..
और सेल्समैन एक कुटिल मुस्कान देकर शर्ट पैक करने लगा..
योर बिल मैम... और मधु एक ऐसी कमीज के 5000 रूपये देकर वापस घर को लौटने लगी जो उसे बहुत अधिक पसंद भी नहीं थी.. अरे ब्रांड वैल्यू भी तो कोई चीज़ होती है मधु ने ख़ुद को समझाया ।
और इस तरह एक और भारतीय मध्यम वर्गीय बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा अपनी मर्जी से ठगा गया।
ओह मैं तो भूल ही गई आलू भी तो लेने थे अचानक मधु को याद आया।
ठेलेवाले भैया कैसे दिये आलू?
20 रुपये किलो...
हे भगवान लूट मचा रखी है आपने तो 30 के दो किलो दो.. और ये देखो आधे आलू तो काले पड़ गए हैं।
और एसी मॉल से 5000 की शर्ट खरीद कर लौटी मधु सुबह से थके हारे ठेले वाले से 10 रुपये के लिये उलझने लगी।
सच में बड़ा मुश्किल है मध्यम वर्गीय भारतीय जीवन।