मूक गुड़िया
मूक गुड़िया


आगन की चारपाई पर चाय की चुस्कियो के साथ बिट्टो की शादी की बातें चल रही थी, सब बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे। बस मैं और दीदी कपड़े धोने में लगे थे पर मेरा पूरा ध्यान सिर्फ बातों पर था (दीदी की ससुराल में जब भी कोई काम काज पड़ता है हम बुला लिये जाते हैं)मैं भी हिस्सा लेना चहती थी उस गपशप में, लेकिन दीदी तो मशीन की तरह सिर्फ काम में लीन थी।
कपड़े धुलते, फैलाते सारी बातें कानों में पड़ रही पर दीदी ने तो कुछ कहा ही नहीं, ना किसी ने उनकी सलाह मांगी।मैनें झल्ला कर कहा "वहां से बस सीधे रसोई में घुस गयी दीदी तुम, शादी की बातें चल रही हैं आपकी ननद की आप खुश नहीं हो क्या?" दीदी ने सिर्फ मुड़ कर मुझे घूरा पर कुछ और कहती उससे पहले ही अम्मा जी (यानी मेरी दीदी की सास) की आवाज़ ने दीदी का पूरा धयान खीच लिया, कपडों का पानी टपक टपक के पूरा आंगन गीला हो गया,पता नहीं वाइपर कहां है, दीदी भाग कर गयी ओर हर बार की तरह उनके हाथो से काम छीन लिया।
रसोई हो गयी, सबने खा पी लिया,सफाई भी हो गयी पर दीदी को क्या समस्या है सबके साथ बैठ कर बातों में हिस्सा क्यूं नहीं लेती आज तो पूछ कर रहुगी। सारा काम निपटा कर वो अपने पलग पर बैठी कुछ खोयी सी थी। "दीदी..."
"हां छोटी बोल..."
"आपको अम्मा जी की काम वाली बात सुनायी दे गयी तो शादी वाली बाते...."
"वो मेरी मर्यादा से बाहर है... "
"मर्यादा मतलब....घर के काम, सबकी सेवा, मायके से दूर रहना, हां में हां मिलाना मेरा कर्तव्य और मर्यादा है क्युकी तब मैं इस घर की बहू होती हूं, पर फैसलों में हिस्सा लेना, पैसो के लेन देन की बातें करना या घर का कोई भेद जानना मेरी मर्यादा के बाहर है क्युकी उस समय मैं कल की बाहर से आयी हुई दो टके की अंजान लड़की होती हूं।ये ससुराल है यहां सुन्दर, सजी हुई, कभी ना थकने वाली, मुस्करा कर अपनी बेइजजती सुनने वाली मूक गुड़िया बन कर रहना है, तभी मां की सीख पर और पिता के संस्कार पर कोई सवाल नहीं उठता, तो एसा ही सही।"
दीदी आँख मूंद कर लेट गयी और मैं जड़ की तरह खड़ी रह गयी।