मुखौटें
मुखौटें
शहर में एक बड़े बाज़ार के पास मुखौटों की प्रदर्शनी लगी थी।बच्चों की जिद पर मुझे भी प्रदर्शनी में जाना पड़ा था।
प्रदर्शनी में बहुत सुंदर और अलग अलग प्रदेश के वहाँ की कला को दर्शाने वाले मुखौटें थे।बच्चे खुश होकर तालियां भी पीटने लगे थे।एक बच्चे ने उस मुखौटों को पहनने की जिद भी की।
अचानक एक बच्चे ने मुझे कहा, "काश हमारे पास भी ऐसा कोई मुखौटा होता,हम भी अपना चेहरा छिपा लेते और बड़े ही मजे से इधर उधर घूमते रहते।"
बच्चे की बात सुनकर मै बिलकुल मौन हो गयी और सोचने लगी की बच्चे कितने भोले और अनजान होते है।अपनी दुनिया मे मस्त रहने वाले इन बच्चों को मैं कैसे बताऊँ कि इस दुनिया में आजकल हर कोई एक मुखौटा लगा कर ही तो घूम रहा है.....
