मुआवजा
मुआवजा
उसके होंठ गर्मी में पिघल रहे थे और वो पसीने से तर-बतर हो रही थी। उसकी हवस से अनजान उसी की आंखों में अपनी आंखों के सपने तलाश रही थी। उस तलाश में वह पूरी तरह से डूब गई। उसे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। अगर आ रहा था तो सिर्फ वही, वही ! यहां तक कि अपने होशोहवास खो बैठी। सारी दुनिया को ही खारिज कर चुकी थी।
जब लौटी तो अपनी सूनी आंखों के साथ मगर, अपने सपने उसी की आंखों में भूल आई थी। दर्दनाक हकीकत को अपने साथ लेकर आई थी। स्त्री होने का मुआवजा तो भरना ही था।