मतलबी दोस्ती
मतलबी दोस्ती
सांझी अभी अभी नई-नई शादी हुई थी। वह छोटे से शहर से आई थी। सीधी-सादी गरीब परिवार की लड़की थी।
स्वभाव से नर्म और हर किसी की मदद करने को तत्पर रहती थी। अपनी इस आदत के चलते वह अपने मां पिताजी से डांट भी खाया कर दी थी। दुनिया इतनी सरल नहीं है। समझी तू। कितनी भोली है तू। शादी के बाद कहीं जाएगी तो लोग तुझे बेच कर खा जाएंगे। दुनिया के हिसाब से अपने आप को ढाल ले सांझी। मां बापू दिन-रात सांंझी को यही समझाया करते थे।
हां, बापू बन जाऊंगी एक दिन, जैसी यह आप की दुनिया है।
आज शादी के 1 महीने बाद सांझी अपने पति के साथ शहर में रहने आई थी।
उसका पति एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था। यह बहुत बड़ा पद तो नहीं था मगर जो कुछ भी था वह उससे खुश था।
शादी के नए-नए दिनों में भी सांझी को कहीं ज्यादा घुमा फिरा ले इतना वक्त उसके पास नहीं था।
हर सुबह सांझी से कहता कि, आस पड़ोस में लोगों से जान-पहचान कर लो तो तुम्हारा समय ठीक से गुजर जाएगा।
मुझे रोज ऑफिस से आते देर हो जाती है। अकेले तुम क्या करोगी?
एक दिन शाम को गार्डन में घूमते घूमते उसकी मुलाकात मंदिरा से होती है। लंबी कद काठी और गोरी चिट्टी मंदिरा सांझी के मन को भा जाती है।
रोज रोज मिलते मिलते सांझी की दोस्ती मंदिरा से हो जाती है। मंदिरा को सांझी बहुत नेक शरीफ और सीधी सादी दिखाई पड़ती है।
मंदिरा जी स्वभाव से तेज तर्रार और बहुत ही मौकापरस्त थी।
मंदिरा एक दिन सांझी को अपने घर आने का न्योता देती है और सोसाइटी की किटी पार्टी में शामिल होने के लिए कहती है।
सांझी कहती है, मैं इस बारे में ज्यादा नहीं जानती। अपने पति को पूछ कर मैं जवाब दूंगी। मंदिरा सांझी की बात सुनकर थोड़ा सा मुस्कुराती है और अपनी हंसी पर कंट्रोल करते हुए ठीक है। पूछ कर बता देना कहती है।
उस दिन सांझी मंदिरा के घर से शाम की चाय पी कर अपने घर वापस आ जाती है । और रात को खाने के बाद सूरज को सारी बात बताती है और किटी पार्टी में शामिल होने की बात करती है।
सूरज मना कर देता है। अभी नहीं पहले तुम लोगों से ठीक से जान पहचान कर लो। बाद में देखेंगे और सो जाता है। अगले दिन घर सारा काम निपटा कर सांझी मंदिरा से मिलने उसके घर पहुंच जाती है।
डोर बेल बजी है, मंदिरा गेट खोलती है, तो सांझी वहां होती है।
आओ सांझी आओ
क्या हुआ मंदिरा जी,
आपकी तबीयत ठीक नहीं है। क्या ?
हां
आज तबीयत थोड़ी खराब थी। हाथ पैर और सिर में थोड़ा सा दर्द है और देखो ना, आज मिली मेरी बेटी भी थोड़ा सा परेशान कर रही है।
खाना नहीं मिला है ना उसको शायद इसलिए ।
मंदिरा सांझी को देख कर काम करने में लग जाती है। अरे मंदिरा जी आप रहने दीजिए। मैं आपकी मदद कर देती हूं।
कहकर सांझी मंदिरा के घर का सारा काम खत्म कर देती है और खाना भी बना देती है।
इसके बाद खाना परोस कर मिली को और मंदिरा को खिलाकर, मिली को सुला देती है।
थैंक यू !
कोई बात नहीं। मंदिरा जी ।
मैं चलती हूं।
किसी और काम की जरूरत हो तो, बता देना ।
और सांझी अपने घर चली जाती है।
सांझी अपनी रहम दिली और इंसानियत की वजह से मंदिरा की मदद बार-बार करती है
परंतु,अब मंदिरा का रोज रोज का काम बन जाता है, जैसे अपने घर का काम करवाना और कभी काम करवाती थी तो कभी मंदिरा मिली को सांझी के पास छोड़कर सारा सारा दिन बाहर घूमने चली जाती थी। देर शाम शाम को घर लौटती थी तो सांझी प्लीज थोड़ा सा खाना बना दो और कभी.....
मंदिरा देर शाम तक घर लौटती और फिर सांझी से कहती प्लीज मिली को घर छोड़ जाओ। मैं थक गई हूं और सांझी मिली को घर छोड़ने भी चली जाती।
सांझी एक मदद और करोगी।
क्या ?
बोलिए
थोड़ा सा खाना बना दो, मिली भूखी होगी तब तक मैं चेंज करके आती हूं।
सांझी बेचारी सीधी साधी काम में जुट जाती। जब सांझी का काम निपट जाता तो, मंदिरा अपने कमरे से वापस आ जाती और तुमने पूरा काम क्यों किया।
पूरा खाना क्यों बना दिया।
मैं बना लेती।
तुम तो वैसे ही परेशान हुई ।
नहीं।
नहीं। मंदिरा जी !
इसमें परेशानी की क्या बात है। खाना बनाने में भी कोई थकता है। क्या ।
ठीक है,
मैं चलती हूं।
आप तो यह रोज रोज की बात हो गई थी। मंदिरा किसी ना किसी तरह सांझी से अपने घर का काम और मिली को संभालने के लिए कह देती थी।
मुफ्त की काम वाली नौकरानी जो मिल गई थी उसको ।
एक दिन मंदिरा के घर किटी पार्टी होती है। मंदिरा सांझी को भी बुलाती है। सांझी किटी पार्टी का हिस्सा नहीं थी तो, मंदिरा की मदद के लिए आगे बढ़ कर उसके घर के काम में उसकी मदद करने लगती है।
सभी लोग देखते रहते हैं, पर कोई कुछ नहीं पूछता है कि यह कौन है। किटी पार्टी चलते चलते काफी देर हो जाती है। इधर सूरज के घर आने का वक्त भी हो रहा होता है तो सांझी मंदिरा से बोलकर घर के लिए निकल जाती है। पर थोड़ी दूर जाकर उसे याद आता है। वह अपने फोन को तो वही भूल आई है तो वह अपना फोन लाने के लिए मंदिरा के घर वापस पहुंचती है। गेट खुला था तो वह अंदर आ जाती है।
मंदिरा अपनी किटी पार्टी की दोस्तों के बीच कुछ सांझी को लेकर बात कर रही होती है तो सांझी वही खड़ी होकर बात सुनने लगती है।
यह कौन है मंदिरा !
जो मिली का ख्याल भी रख रही है। और तुम्हारे किचन को भी संभाले हुए थे,
कोई मेहमान है क्या ?
नहीं-नहीं
मिसेज सिंह यह तो मेरे बच्चों की आया है। उसे संभालने के साथ-साथ किचन का काम भी संभाल कर मेरी थोड़ी मदद कर देती है।
हमें लगा कोई मेहमान है। इतने अपनेपन से जो काम कर रही थी।
इतने अपनेपन से काम जो कर रही थी।
इतने अच्छे नौकर आजकल मिलते कहां है, तुम्हें कहां से मिली है। आया ।
यही कंपाउंड में रहती है। खाली वक्त में यह काम भी कर लेती है।
इतनी अच्छी नौकर कहां मिलते हैं। मिसेस सिंह ।
अच्छा हमें भी इसका नाम और पता बता देना। मंदिरा ।
हां हां ठीक है। बता दूंगी।
मिसेज सिंह !
फिलहाल आप पार्टी के मजे लीजिए।
सांझी सन्न खड़ी रह जाती है। तब उसे अपने मां-बाप की कही हुई बात याद आती है। सांझी तू सीधी है पर दुनिया बहुत टेढ़ी है। अच्छे लोगों का लोग फायदा उठाते हैं। तू संभल जा ।
सांझी रोते हुए घर आती है उसे बहुत बुरा लगता है, पर वह सूरज को कुछ नहीं बताती और सूरज के साथ रात का खाना खा कर सो जाती है
दो-तीन दिन बीत जाते हैं, वह कहीं भी नहीं जाती। एक दिन सूरज घर पर होता है और डोरबेल बजती है।
नमस्ते जी
आप लोग कौन हैं,
यहां सांझी रहती है। क्या ?
हां हां रहती तो है पर,
आप लोगों को उससे क्या काम है।
वह बच्चों की केयर टेकर है ना !
हमें वही....
उसी से काम है।
क्या ?
यहां ऐसा कोई नहीं रहता है।
आप लोगों को शायद कोई गलतफहमी हुई है। नमस्ते !
और दरवाजा बंद कर देता है। सांझी यह लोग कौन थे, जो तुम्हें केयरटेकर समझ रहे थे । मतलब कि बच्चों की आया ।
कुछ नहीं,
नहीं कुछ बात तो जरूर है, जो तुम मुझे नहीं बता रही हो, क्या बात है, सांझी ?
सांझी रोने लगती है और मंदिरा वाली बात सूरज को बता देती है। सूरज नाराज होता है और उसको समझाता है। सांझी लोगों को पहचानना सीखो। उसके बाद दोस्ती करो।
अब रोना बंद करो परंतु आगे अब कदम सोच-समझकर बढ़ाना ठीक है।
ठीक है,
सांझी जवाब देती है, सूरज काम पर चला जाता है।
शाम को मंदिरा ,सांझी के घर पर आती है। क्या बात है ? तुम कुछ दिनों से पार्क में नहीं आई।
हां, मेरी तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए नहीं आई।
आ ..... आप बताओ आपका क्या काम है वह मुझे कहीं जरूरी जाना था। थोड़ी देर हो जाएगी। इसलिए मिली को तुम्हारे पास छोड़ने आई हूं।।
मिली तुम्हारे साथ काफी हिल मिल गई है। तुम उसका अच्छे से ख्याल भी तो रखती हो और शाम को आज का खाना मेरे लिए भी तुम ही यहां बना लेना। हम दोनों सहेली तुम्हारे यही खाना खा लेंगे और फिर मैं मिली को लेकर घर चली जाऊंगी। इस बहाने हम दोनों एक साथ टाइम भी बिता लेंगे।
सुनकर सांझी को थोड़ा सा गुस्सा आता है। देखो मंदिरा जी बात अगर मिली को संभालने की है तो मैं संभाल लेती, परंतु आज से बल्कि अभी से मैंने आया का काम छोड़ दिया है। आज से आप कहीं भी और कितनी भी देर के लिए जाएं और चाहे कितनी भी देर हो जाए। मिली को अपने साथ ही ले जाया कीजिए।
अब मैं आपकी और मदद नहीं कर पाऊंगी।
सांझी का यह रूप देखकर मंदिरा को कुछ समझ नहीं आता है और वह सांझी को देखती रह जाती है।
सांझी मंदिरा से कहती है आपको कुछ और काम है तो बताए नहीं तो नमस्ते ।
मंदिरा के बाहर कदम रखते ही सांझी दरवाजा बंद कर लेती है। सांझी आज चैन की सांस लेती है। मतलबी दोस्ती के चंगुल से छूट जाती है।
आज दोस्ती जरूर चली गई पर अपनी इज्जत अपने पास रह गई।