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Sheetal Raghav

Children Stories Inspirational

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Sheetal Raghav

Children Stories Inspirational

संस्कार!!

संस्कार!!

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एक गांव था। वह बहुत ही संपन्न था, परंतु पानी भरने के लिए उस गांव में सिर्फ एक ही स्रोत था। वह था एक कुआं ।


जो बहुत ही प्राचीन था। काफी समय से उस गाँव के लोग और स्त्रियां वहां पर आकर पानी भरा करते थे।


गांव की सारी महिलाएं उस पनघट पर आकर अपने दिन भर की बातें किया करती थी। सब कोई एक दूसरे की बुराई तो कोई अपने घर की चर्चाएं आकर उस कुएं के पनघट के पास आकर किया करती थी।


एक दिन उस कुएं के पनघट पर पानी भरने के बाद, ऐसे ही सुबह के घर के सारे काम से निवृत्त होकर यूं ही बैठे-बैठे वहां पर तीन महिलाएं आपस में बात कर रही थी। 


सारी बातों से फ्री होकर वह आपस में एक दूसरे की सास की बुराई करती हुई नजर आई। चौपाल पर औरतें कहां-कहां दीद मटक्का करती है। यह सब कह रहीं थी कि अचानक थोड़ी देर बाद वहां से......

उनमें से एक महिला का पुत्र अचानक वहां से गुजरा। उसको देखकर बड़े ही घमंड के साथ उस महिला ने कहा, "यह मेरा बेटा है, मेरा जो बेटा है वह इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ता है और इंग्लिश तो ऐसे ही बोलता है कि बस इसके सामने बाकी सब लोग पानी भरे है।"


सभी बातों में लग गयीं, और थोड़ी देर बाद वहां से.......

दूसरी महिला का पुत्र वहां से गुजरा जिसको देखकर उस महिला ने बड़े ही गुमान और गर्व के साथ कहा, "यह मेरा बेटा है जो सीबीएससी में पड़ता है, और बड़ा ही होशियार है।"


यह सुनने के बाद महिलाएं अपने -अपने काम में लग गई। और उस महिला का पुत्र थोड़ी देर बाद वहां से बिना कुछ कहे सुने ही चला गया।

थोड़ी देर बाद सभी महिलाये अपने अपने घर जाने के लिये उठीं तभी.....

तीसरी महिला का पुत्र वहां से गुजरा । उसने सभी को झुककर प्रणाम किया और माँ को देखकर उसके पास रुककर पूछा, मां में क्या आपकी कुछ मदद कर सकता हूं?


मां ने कहा नहीं बेटा तुम जाओ। तुम अपना काम करो।

"थोड़ी देर उस महिला का पुत्र वहीं रुका और अपनी मां के हाथों से पानी का बर्तन उसने अपने हाथ में उठा लिया एक हाथ में उसने गागर उठाई और दूसरे हाथ में बाल्टी उठाकर बोला, चल माँ, मैं तुझे घर तक छोड़ देता हूं। तू अकेली थक जाती होगी। आज तेरी थोड़ी मदद कर देता हूं"।

तभी उस महिला ने बड़े ही गर्वानवित महसूस करने के साथ बड़ी ही विनम्रता के साथ कहा, "यह है मेरा बच्चा जो एक सरकारी स्कूल में पढ़ता है" और मुझे इस पर गर्व है, और घर जाने के लिये सबसे विदा लेने लगी ।


उस तीसरी "महिला के मुख पर आनंद और विनम्र भाव देखकर बाकी सभी महिलाओं की नजरें झुक गई"।


संस्कार और धरोहर कभी भी पैसे से या किसी भी मीडियम से खरीदे नहीं जा सकते। वह स्वतः ही उत्पन्न होते हैं। जो लाखों रुपये खर्च करके भी नहीं कमाये जा सकते ।



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