"सौधी सी महक"
"सौधी सी महक"
धर्मेश जी बड़े ही खुश थे। " 15 अगस्त जो आने वाला था । वह स्वाधीनता दिवस और गणतंत्रता दिवस इन दोनों पर्वो पर अपने गांव की मिट्टी की खुशबू के बीच ही मनाया करते थे। "
बच्चे दूर विदेश में रहते थे। 5 साल का मनन, पोता है धर्मेश जी का । मन हुआ!!क्यों ना इस बार वे लोग भी आ जाते हैं। स्वतंत्रता दिवस गांव में साथ साथ मनाते ।
फोन लगाया। " काफी व्यस्त हूं इन दिनो । नये प्रोजेक्ट पर हूं और प्रोजेक्ट हेड हूं । तो छुट्टी मिल पाना असम्भ है। बेटे ने कह दिया । फिर भी आने की कोशिश करूंगा।
धर्मेश बाबू का मन इस जवाब पर प्रसन्न नहीं था, परंतु उम्मीद भी नहीं छोड़ी थी। 2 दिन बचे थे तो स्वतंत्रता दिवस पर्व में ।
"14 अगस्त की शाम को डोर बेल बजी उदास मन से धर्मेश जी ने दरवाजा खोला । देखा तो दरवाजे पर कोई नहीं । मुडे ही थे कि पीछे से आवाज आई दादू..."
धर्मेश जी को मीठी आवाज से पलटने पर मजबूर कर दिया । उम्मीद नहीं थी परंतु " बेटा बहू और पोता मनन उनकी आँखो के सामने थे । धर्मेश जी की बांछे तो खिल ही गई मानो । आंखों के कोर भीग गए। मनन को सीने से लगा गोद में उठा लिया। " अरे भाग्यवान देखो तो और घर में खुशी की लहर दौड़ गई।
"पापा मेरा सरप्राइस कैसा लगा ?
और धर्मेश जी ने मुस्कुराते हुए आंखों की कोर पर लटके हुए आंसू को पोछते हुए कहा आज मेरे जिस्म में जान लौट आई है बेटा। और बोलते बोलते धर्मेश बाबू को गला भर आया। बाप बेटे एक दूसरे की गले लग गऐ।"
अगली सुबह जल्दी से सब उठ गए। नाश्ता कर गांव के लिए निकल पड़े।
"मनन गांव तक पहुंचने के रास्ते में खिड़की के बाहर ही देखता रहा। उसे बहुत अच्छा लग रहा था। डेड गांव भी ब्यूटीफुल लगता है। मैं तो यहीं रहूंगा। पोते की बात सुनकर दादा जी का सीना चौड़ा हो गया।
गांव पर उस जगह पहुंच गए। जहां 15 अगस्त का समारोह होना था। समारोह प्रारंभ हुआ ध्वजारोहण के साथ।
कुछ बड़ों के मार्गदर्शन भाषण और व्याख्यानो के साथ सात गांव के सरपंच और अन्य लोगों के बच्चे वहां पर गा रहे थे तो कुछ माटी की महिमा के गुण सुना रहे थे।
धर्मेश जी खुश थे, परंतु कुछ मन को खटक रहा था। " क्योंकि मनन बाहरी परिवेश में पला और बढ़ा हुआ था। वह तो यहां कोई प्रस्तुति नहीं दे सकता था।"
अरे धर्मेश जी आपका पोता कुछ नहीं करेगा क्या ?
सभी प्रश्नवाचक मुद्रा में धर्मेश जी से मुखातिब थे।
तभी "आई लव माय इंडिया कहता हुआ मनन मंच की तरफ अग्रसर हो गया और तिरंगे की महिमा और रंगों पर छोटा सा व्याख्यान कह सुनाया । और तो और वह वीर भगत सिहं और चन्द्रशेखर आजाद बनना चाहता है यह तक कह डाला।"
सभी अचंभित हो सुन रहे थे। फिर मनन ने उपस्थित सभी जनों के बीच में राष्ट्रगीत सुनाया । जिसको सुन धर्मेश जी का मन प्रफुल्लित और भाव विभोर हो गया और मन खुशी के मारे भर आया। दौड़कर मंच पर पहुंचे और पोते को सीने से लगा उसके संग छोटा सा राष्ट्र ध्वज हाथ में ले और चूम राष्ट्रगीत फिर से पूरे हर्ष और उल्लास के साथ गाया और मातृभूमी को शीश नवाया ।
तेज हवा बह निकली । धर्मेश जी प्रसन्नता और मन ही मन हर्षित भी थे। तसल्ली थी मन में कि, बच्चे बाहर रहकर भी देश की संस्कृति भूले नहीं।
वह मन ही मन मन्द मन्द मुस्कुरा रहे थे। कि मेरे देश की वह "सौंधी सी महक" आखिर बाहर तक भी पहुंच ही गई। और इतराते हुए पोते को साथ लिए गाड़ी की ओर बढ़ गए।।
