मरते दम तक

मरते दम तक

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जैसे पितामह भीष्म बाण शैया पर लेटे थे तुम भी उसी तरह अस्पताल की मशीनों से घिरी शैया पर लेटे थे सुइयों से बिंधे हुए, नलियों से जकड़े हुए ! उस बाण शैया पर जितनी तकलीफ पितामह भीष्म को हुई होगी उससे कहीं अधिक तकलीफ तुम्हें हो रही होगी ! यह मैं बखूबी महसूस कर रही हूं फिर भी तुम्हारी पीड़ा को व्यक्त नहीं कर सकती, मैंने सिर्फ देखा मगर तुमने तो भोगा है पर तुम भी व्यक्त नहीं कर सकते ! तुम्हारी पीड़ा व्यक्त करने की परिधि से बहुत परे है ! इस पीड़ा को अभिव्यक्त करना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है ! इतना लम्बा अरसा गुजरने के बावजूद वो सारा मंज़र ज्यों का त्यों दिलो-दिमाग पर छाया हुआ है, आंखों के आगे घूम रहा है बल्कि उससे भी कहीं बढ़कर महसूस भी होता है ! एक बात पूछूं, बताओगे ? पर तुम बताओगे भी तो मैं भला कैसे समझ पाऊंगी ? शायद नहीं बल्कि यक़ीनन नहीं ! कहते हैं ना - ‘’जाके पांव न फटी बिवाई वा का जाने पीर पराई ‘’ सच में तुम्हारा दर्द तुम्हीं महसूस कर, अभिव्यक्त कर सकते हो। कोई कितना भी संवेदनशील क्यों न हों अभिव्यक्ति को न्याय नहीं दे पायेगा, मैं सही कह रही हूं ना ?

हां, तुम सही कह रही हो, हमें जितनी पीड़ा , दुख-दर्द , तकलीफ यानि कि आधि-व्याधि जो भी हो उसे कहने या बताने जाते हैं तो ठीक से न कह पाते हैं, न बता पाते हैं, कई तरह से कहने की कोशिश तो करते हैं लेकिन न्याय फिर भी नहीं कर पाते हैं कारण जो हमारी तकलीफ होती है उसकी अभिव्यक्ति, दर्द की तीव्रता व्यक्त करने के लिए खासकर सामने वाले को इसका अहसास कराने के लिए शब्द ही नहीं मिलते अपितु पूरे ही नहीं पड़ते ! मैंने जब भी कुछ बताया मुझे ऐसा लगा जैसे मैं पूरा तो बता ही नहीं पाया ! इसीलिए जब हम अपनी तकलीफ डाक्टर को बताते हैं तो एक ही बात को घुमा-फिरा कर बार-बार कहते हैं तब भी लगता है डाक्टर को अच्छी तरह से तो बताया ही नहीं। मैं कहां कह पाया अपनी तकलीफ, तुम्हें भी नहीं, किसी को भी नहीं, यहां तक कि खुद को भी नहीं अभिव्यक्त कर सका। शायद इन्सान की यह बहुत बड़ी कमी है तभी तो अपनी बीमारी को लेकर परेशान रहता है लेकिन इस परेशानी से निकल नहीं पाता है, यह भी तो उसके वश में नहीं होता ! मेरे वश में भी कुछ नहीं था यह तो तुम भी अच्छी तरह से जानती हो। मैं कितना लाचार था, मेरी लाचारी को तूने भी महसूस किया ही होगा ?

 हां, मुझसे बेहतर भला कौन समझ सकता है, समझने के बावजूद अभिव्यक्ति असंभव यह मैंने बहुत बार महसूस किया है कि मेरे बस में कुछ भी नहीं। देखो ना अभी तुम्हारी पीड़ा को जान-समझकर बड़ी गहराई से, शिद्दत से महसूस करने बाद भी समझा नहीं पा रही हूं ! मेरे लिए यही सबसे बड़ा खंत और दुख है ! काश तुम एक बार मिलते ! कितनी बड़ी सजा है मेरे लिए तुम्हारा ना मिलना ! इतने बंधे हुए चुपचाप शैया पर निढाल पड़े थे वो क्षण मेरे लिए कितना पीड़ादायक था, तुम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते ! और तुम्हें समझा भी नहीं सकती ! चाहे मैं कितनी भी कोशिश कर लूं !

वाह 

अपना खून, खून दूसरे का खून पानी

अपना ग़म, ग़म दूसरे का ग़म कहानी !’

अरे वाह मेरे शायर ! वहां जाकर तो तुम शायर भी बन गए !

और नहीं तो क्या शायरा का शौहर औरों की शायरी तो कह ही सकता है , खुद भले ना करे ! और सुनाओ मेरी शायरा !

क्या सुनाऊं यार , तुमने किसी काबिल ही नहीं छोड़ा , उसी शैया से तुम तो आखिरी शैया पर चले गये जहां सबकुछ मेरी पहुंच के बाहर है । आज भी उस दर्द को अपने दिल में एक बोझ की तरह संभाले बैठी हूं, चाहकर भी उससे निजात नहीं पा सकती अब तुम्हीं कहो , क्या किया जाय ?

क्या कहूं ? क्या किया जा सकता है ? कुछ नहीं, बस उसे अपनी जिन्दगी के साथ लेकर चलना है मरते दम तक और सहना है । मैं तुम्हारी तकलीफ को महसूस करता हूं पर न अभिव्यक्त कर सकता हूं और ना ही दूर कर सकता हूं ! हम दोनों अपनी-अपनी कमजोरियों, मजबूरियों में जो जकड़े हैं, बंधे हैं, शायद यही अच्छा है हम सबके लिए कि ऊपर वाले ने जो किया अच्छा किया !

चलो यही सोचकर तसल्ली कर लेते हैं ! अब तुम आराम करो, गुडनाइट !

 बाय बाय गुडनाइट ! 


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