STORYMIRROR

yashwant kothari

Tragedy

2  

yashwant kothari

Tragedy

मरते बच्चे, बिलखते परिज़न

मरते बच्चे, बिलखते परिज़न

4 mins
233

सैकड़ों बच्चों की मौत हर साल होती है। खूब मीडिया बाज़ी होती है लेकिन कोई सुधार नहीं होता। अब फिर बिहार में बच्चों का कत्ले आम हुआ, हल्ला गुल्ला दो चार दिन में ठंडा पड़ जायेगा, व्यवस्था में कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं हैं। सरकार समिति बनाएगी, जांचे होगी, रिपोर्टें बनेगी टी ए डीए बनेंगे,और फिर ढर्रा चल पड़ेगा। मुख्य समस्या पर कोई खास ध्यान नहीं दिया जायगा। मुख्य समस्या है डाक्टरों की कमी, पेरा मेडिकल स्टाफ की कमी, दवाइयों की कमी। जगह की कमी। नेता अपने मुंह छिपाकर कांफ्रेस से निकल जाते हैं। दिल्ली में बैठे आला अफसर डाक्टरों को आगे कर देते हैं। सचिव कही पिक्चर में नहीं आते। नेता परवाह नहीं करते। पूरी स्वास्थ्य सेवा कमज़ोर है बदइन्तजामी भी काफी है, आयुष्मान भारत जैसी योजना है, प्रधानमन्त्री स्वास्थ्य योजना है, एम्स है मगर फिर भी हर साल सैकड़ों बच्चे मर जाते हैं और माँ बाप मुआवज़े के लिए भटकते रहते हैं सबसे बड़ी बीमारी तो गरीबी और भूख मरी है जिसका इलाज नहीं हो पा है। दो चार लाख का मुआवजा होगा काम ख़तम

लीची खाने की बात भी आ रही है मगर कोई प्रमाण नहीं आया है। कुपोषण एक बड़ा कारण है।

जानकार बताते हैं की केवल ग्लूकोज़ पिला देने से ही काफी राहत मिल सकती है, मगर गरीबों को कौन बताये? आल्लोपेथ्य आलावा एक बड़ा बज़ट आयुष के पास भी है वे क्या कर रहे हैं? केवल योग। कमसे कम ये लोग जागरूकता के लिए जनता को शिक्षित करने का काम तो कर ही सकते हैं।

जनस्वास्थ्य की जिम्मेदार मुजफ्फरपुर इन दिनों कुछ और वजह से समाचारों में है। इस साल मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से अब तक 100 से ज्यादा बच्चों का निधन हो चुका है। साल 1995 से ही यह रहस्यमय बीमारी यहां के बच्चों को अपना शिकार बनाती आई है। पिछले दो दशक में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम की वजह से देश में 5000 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है। 


हर साल मई और जून के महीने में बिहार के अलग-अलग कस्बे के बच्चे इस बीमारी की चपेट में आते हैं और बच्चों के मरने का सिलसिला शुरू हो जाता है। यह बुखार केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण करता है और बच्चों को कन्वाल्जन आने लग जाते हैं समय पर इलाज़ नहीं मिलने पर बच्चा काल कवलित होजाता है।यह समस्या हर वर्ष आती हैं मगर जब तक मीडिया न बोले कुछ नहीं होता मीडिया भी तब बोलता हैं जब टी आर पी बनती हैं।चमकी बुखार वास्तव में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस ) है। इसे दिमागी बुखार भी कहा जाता है। यह इतनी खतरनाक और रहस्यमयी बीमारी है कि अभी तक विशेषज्ञ भी इसकी सही-सही वजह का पता नहीं लगा पाए हैं। चमकी बुखार में वास्तव में बच्चों के खून में सुगर और सोडियम की कमी हो जाती है। सही समय पर उचित इलाज नहीं मिलने की वजह से मौत हो सकती है। गर्मियों में तेज धूप और पसीना बहने से शरीर में पानी की कमी होने लगती है। इस वजह से डिहाइड्रेशन, लो ब्लड प्रेशर, सिरदर्द, थकान, लकवा, मिर्गी, भूख में कमी जैसे लक्षण महसूस हो सकते हैं। चमकी बुखार के लक्षण भी ऐसे ही हैं।

अगर चमकी बुखार हो जाए तो क्या करें? बच्चों को पानी पिलाते रहे, इससे उन्हें हाइड्रेट रहने और बीमारियों से बचने में मदद मिलेगी। तेज बुखार होने पर पूरे शरीर को ताजे पानी से पोछें। पंखे से हवा करें या माथे पर गीले कपड़े की पट्टी लगायें ताकि बुखार कम हो सके। बच्‍चे के शरीर से कपड़े हटा लें एवं उसकी गर्दन सीधी रखें। अगर बच्चे के मुंह से लार या झाग निकल रहा है तो उसे साफ कपड़े से पोछें, जिससे सांस लेने में दिक्‍कत न हो। बच्‍चों को लगातार ओआरएस का घोल पिलाते रहें। तेज रोशनी से बचाने के लिए मरीज की आँख को पट्टी से ढंक दें। बेहोशी व दौरे आने की अवस्‍था में मरीज को हवादार जगह पर लिटाएं। चमकी बुखार की स्थिति में मरीज को बाएँ या दाएँ करवट लिटा कर डॉक्टर के पास ले जाएं। बच्चे को जल्दी से जल्दी अस्पताल ले जाये। सरकार चाहे तो इस तरह की बीमारी को फैलने से पहले ही रोकथाम कर सकती हैं। बड़ी योजाओं से ज्यादा जरूरत ग्राउंड लेवल पर काम करने की है,केवल यह कह देने से काम नहीं चलेगा की स्वास्थ्य स्टेट सब्जेक्ट है आखिर सब योजना यें तो केंद्र से चलती है ,सब पैसा और मोनिटरिंग तो वहां हैं।स्वस्थ सेवा में व्यापक सुधार की सख़्त जरूरत हैं ,स्वास्थ्य बिमा योजना फेल है।हर प्रदेश के हाल एक जैसे हैं। आयुष विभाग को भी आगे आना चाहिए।जागरूकता की जरूरत है।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy