मरनेवाले के साथ मरा नहीँ जाता
मरनेवाले के साथ मरा नहीँ जाता
कॉलबेल की आवाज़ सुनते ही अंजलि ने सोचा, सुबह के लगभग आठ बजे होंगे इस वक़्त भला कौन हो सकता है ?ये तो कुलसुम के आने का समय है. पर वो अभी कैसे आ सकती है. उसके पति को मरे हुए आज छठा दिन ही तो हुआ है.
खैर, दरवाजा खोला तो आशा के विपरीत सामने कुलसुम खड़ी थी. सूजी हुईं आँखें, श्रृंगार विहीन चेहरा और हाथों में कोई चूड़ी नहीं. कितना तो शौक है इसे चूड़ियों का, सजने संवरने का. आज उसे वैधव्य के लिबास में देखकर जैसे कलेजा मुँह को आ गया.
अंजली को लगा वो कुछ पैसे वैसे लेने आई होगी. अतः उसे दरवाजा खोलकर वह अपने कमरे में जाकर दो हज़ार रूपये निकाल लाई कि अभी के लिए इसे इतना ही देना सही रहेगा. क्या पता काम पर कब तक वापस आएगी. अंजलि ने सोचा.
वो आकर देखती क्या है पहले की तरह साड़ी का पल्लू कमर में बाँधकर कुलसुम झाड़ू लगा रही है.अंजलि के लिए यह दृश्य बहुत अप्रत्याशित था. अभी अभी इसके पति की कोरोना से मौत हुई है और ये काम पर वापस आ गई.कम से कम तेरहवीं तक तो रुक जाती.
प्रकट में बोली,"कुलसुम ये दो हज़ार रूपये ले जाओ, कुछ दिन बाद काम पर आ जाना."
कुलसुम ने शांत भाव से उत्तर दिया,"क्यूँ दीदी आप भी मेरी ज़गह किसी और को काम पर लगाने वाली हो क्या?बगल के ब्लॉक के मेरे दो घरों के काम छूट गए.
सबको लगा अब मैं आऊँ ना आऊँ. इसलिए मेरी जगह किसी और को काम पर रख लिया. कोई ये क्यूँ नहीं सोचता दीदी कि,"मैं अगर काम पर नहीं आऊँगी तो घर पर कौन बैठा है मुझे और बच्चों को खिलानेवाला ?"जानेवाला चला गया दीदी. उसके लिए प्यार दिखाने का ये मतलब थोड़ू ना है कि मैं घर में रोती बिसूरती रहूँ और बच्चों को भी भूखा प्यासा रखूँ ?
आप तो जानो हो कि रामदिन को बच्चों से कितना प्यार था. अब वही बच्चे उसके जाने के बाद भूख से बिलट जाएँ. ई कहाँ का नियाय है ?जो मैं उसको सच में प्यार करु हूँ,सम्मान करूँ हूँ तोरोने बिसुरने के जगह हौसला करके काम करुँगी और पैसे कमाकर बालकन का पेट भरुँगी. तभी मैं कहलाऊँ असली माँ. "
बोलकर कुलसुम तो काम में व्यस्त हो गई पर अंजलि का परिचय जीवन के बहुत बड़े सच से करा गई. वक़्त कैसा भी आए मन को कमज़ोर ना करके परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करने में ही ज़िंदगी की सार्थकता है।
अंजलि को याद आया ज़ब कुलसुम पहले दिन काम पर आई थी तो उसने उसका नाम पूछते हुए कहा था. कुसुम या कुलसुम?तब कुलसुम ने जोर देते हुए कहा था कि,
" मेरा नाम कुलसुम है कुसुम नहीं. मुझे अपना नाम बिगाड़कर बोलना पसंद नहीं ".
उस दिन भी और आज एक बार फिर अंजलि सोचने को विवश हो गई कि इतनी शक्ति, इतना हौसला, इतना आत्मविश्वास कहाँ से आता है कुलसुम में।कोई कुछ भी काम करे उस काम के प्रति उसका लगन और उस काम का पर्याप्त सम्मान करना चाहिए. आज कुलसुम से अंजलि को एक नई प्रेरणा, एक नया हौसला मिल रहा था.
पति के खोने का दुःख कुलसुम को भी बहुत ज़्यादा था, ऐसा नहीं कि वो अपने पति को कम प्यार करती थी.पर उसने खुद को परिस्थिति का मुकाबला करने को तैयार कर लिया था.यह भी एक तरह से उस दिवगंत के प्रति उसकी श्रद्धांजलि ही तो थी. आज कुलसुम के ज़रिये अंजलि को ज़ीवन का एक महत्वपूर्ण सार समझ आ गया था.
