मोलभाव
मोलभाव
सब्जी का थैला लादे तिवारी जी बाजार में सब्जी खरीद रहे थे।हर दुकान पर मोलभावकर, पटाकर ही सामान लेते जा रहे थे। टमाटर बेच रही बूढ़ी अम्मा से भाव तय नही हो पा रहा था..।
"चालीस में दूँगी बाबूजी।एक पैसा कम नही।..लेना हो तो लो।"
"अरे क्या टमाटर सेब के भाव पर बेचेगी..?"
"ठगने बैठी है,तीस में दे ।"
बहस होने लगी,तिवारी जी और सब्जी वाली के बीच मोलभाव तय ही न हो पा रहा था। तब अचानक तिवारी जी का सात साल का बेटा जो उनके साथ खड़ा था,बोल पड़ा..
" दे दो न पापा इन आन्टी को जितने ये कह रही हैं,अभी तो आप मुझे समझा रहे थे कि हमसे जितना हो सकता है ,उतना हमें गरीबों की सहायता करनी चाहिए।"
"चुप रहो,ये जीवन की सच्चाई है। लुटाने से पैसा बच नहीं पाता।जतन करने पड़ते हैं" और फिर.... ....अपने बेटे को उसकी फेवरिट गाड़ी दिलाने के लिए खिलोनों के स्टोर पर खड़े थे। 900रू. की रिमोट वाली गाड़ी... हाथ में लिए बेटे की मुस्कान में तैर रहे थे तिवारी जी।...
