मिठाई की चोरी
मिठाई की चोरी
घर में बड़े बेटे के ब्याह की गहमागहमी के बीच ठकुराइन यूं उलझी थी कि बेचारे ठाकुर साहब की तबियत और खानपान के बारे में जरा भी समय न निकाल पाती थी।हर समय बस रस्मों और मेहमानों की चिंता में व्यस्त रहतीं। बहू के साथ न जाने कितने तरह की मिठाइयों के टोकरे आए थे, सब पूजा की कोठरी में रखे थे।पड़ोस वालों को रिश्तेदारों को देने के बाद भी इमरती,लड्डू और मीठी मठरियों की पेटियों को ठकुराइन के अलावा कोई और न छूता।
मिठाई के शौकीन ठाकुर साहब को शुगर की बीमारी थी।अतः केवल दूर से ही मिठाइयों को देखकर व सूंघकर मन मनाना पड़ता था। बेचारे सूखी चना, जौ, बाजरे की रोटियों और कड़वे करेले खाकर ऊब जाते।
पूजा की कोठरी में घंटों ईश वंदना में गुजारने के बाद भूख लगी हुई थी, पर खाने को याद करके अनमने हो गये।रोज के सूखे बेस्वाद खाने को वे देखकर ही बिदक जाते।ठकुराइन की तेज आवाज सुनकर वे सिमट गये।पूजाघर में रखे मिठाई के टोकरों से आज जी भर मिठाई खा ली,फिर चुपचाप निकल कर घर के बाहर चले गये। लगभग पंद्रह दिनों तक यही क्रम चलता रहा,ठकुराइन इस चालाकी से बेखबर ...।
एक दिन अचानक ठकुराइन आंगन मे सारे नौकरों को खड़े कर उनको डांट लगा रही थीं कि उन्ही निकम्मों में से किसी का काम है।तुममें जिसने भी ये किया है,मैं उसकी अच्छे से खबर लूंगी। नमकहरामो....
"अरे क्या हुआ ,ठाकुर साहब बोले!"
"ओबर में रखी मिठाइयों के टोकरे खाली हैं! और इनमें से ही किसी का काम है।और हमारे घर में कौन ऐसा है?किस चीज की कमी है जो कोई चुराकर खा ले!"
ठाकुर साहब के मुंह का पानी सूख कर रह गया। "अरे जाने दो,छोड़ो भी न ,किन बातों में फंसी बैठी हो।घर के दूसरे जरुरी कामों को को छोड़कर मिठाई को लेकर बैठना अच्छी बात नही ।खाने की चीज है तो किसी ने खाली। जाओ तुम सब।" और सारे नौकरों की जान छूटी। ठकुराइन भुनभुनाती हुई भीतर चली गई।
इस बात को आज आठ दिन हुए। पर ठकुराइन इस बात का पता किसी भी तरह लाना चाहती थी कि कौन है मिठाईचोर! हर समय ताक पर रहतीं कि कौन सा नौकर क्या कर रहा है।पर कोई भी ऐसा नही था जो संदिग्ध लगे।इस बात को कई दिन गुजर गये। ठाकुर साहब पूजा करके अब तक न निकले,क्या तबियत तो नही बिगड़ गयी!ठकुराइन चिन्ता में पड़ गयी।देखूं तो जाकर ... और कोठरी के भीतर झांक कर देखा तो ठाकुर साहब मिठाइयों पर जुटे हुए थे।ठकुराइन ने कुछ पूछे बिना ही जान लिया।और ठाकुर साहब भी सकपकाकर खड़े हो गये।जिनके सामने हर कोई डरता था आज वे किसी से डर रहे थे।पूछने से पहले ही बोल पड़े... कड़वे करले और .बेस्वाद सा खाना खाकर जीभ बड़ी बेस्वाद हो रही थी।...
"वो सब छोड़ो।तुमने चोरी से मिठाई खाई,और मैं बेवजह नौकरों पर आरोप लगा रही थी।"
ठाकुर साहब निश्शब्द थे। वे अपने घर में ही चोरी जैसा काम कर गये और पछताने से भी इस गलती को मिटा नही सकते थे।
आज ठकुराइन भी समझ चुकी थी कि बिना कुछ जाने समझे,अपनी आंखों से देखे बिना किसी पर आरोप लगाना गलत है। और साथ ही उन्हें अपने बर्ताव पर भी पछतावा हुआ ,ठाकुर साहब की बीमारी के प्रति कुछ ज्यादा ही गम्भीर हो गईं,और इस कारण वे उनके स्वाद और पसन्द- नापसन्द को भूल सी गई...।परहेज भी एक सीमा तक होना चाहिए। और कुछ हंसी भी आ रही थी कि कड़क ,सख्त ठाकुर साहब जैसे चोर को उन्होंने पकड़ लिया।...
