कवि हरि शंकर गोयल

Classics Fantasy Inspirational

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कवि हरि शंकर गोयल

Classics Fantasy Inspirational

मोगरे की बेल

मोगरे की बेल

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लॉकडाउन के कारण माली नहीं आ रहा था। मेरा लॉन बड़ा समृद्ध है। सौ से अधिक पौधे हैं इसमें। इनकी देखभाल की समस्या पैदा हो गई। लेकिन इस लॉकडाउन ने भी कई चमत्कारिक कार्य किये। हम जैसे मर्दों को झाड़ू-पोछा करना आ गया। लॉन की देखभाल करना आ गया और सबसे बड़ी बात कि प्रतिलिपि से जुड़कर साहित्य के सागर में गोते लगाने का अवसर प्राप्त हो गया। 


हमने कमर कस ली। लॉन की जिम्मेदारी ले ली। एक दिन मैंने देखा कि एक मोगरे की एक बेल मुरझा गई है। उसके पत्ते सिकुड़ गये हैं और उसमें कुछ फंगस आ गई है। मैंने सोचा कि ये बेल तो गई। मुझे बड़ा दुख हुआ। एक एक पौधा मेरे हाथ का लगा हुआ है, इस तरह मरता है तो दुख तो होगा। अपने बच्चों की तरह पाला है इन्हें। 

मैंने उसके मुरझाने के कारण सोचे। मुझे याद आया कि किस तरह यह मोगरे की बेल सूरज की किरणों से बातें करती थी। आंखों ही आंखों में इसने मिलन के कितने सपने संजोए थे। रोज किरणों के ख्वाबों में मुस्कुराती थी। कोई उसे किरणों से बातें करते देख लेता था शर्म से लाल होकर लजाती थीं। 

मैंने देखा कि पड़ोसी ने अपनी दीवार ऊंची कर दी थी इसलिए बेल का और किरणों का मिलन सदा सदा के लिए खत्म हो गया था। बेल का तो जैसे सपना टूट गया था। क्या क्या सपने देखे थे उसने किरणों के साथ। समुद्र की लहरों पर साथ साथ चलना। हवाओं के परों पर साथ साथ उड़ना। खुशबू की तरह साथ साथ महकना। लेकिन नियति के क्रूर हाथों ने उसका वह सहारा भी छीन लिया जिसके साथ साथ वह सारा जीवन बिताना चाहती थी। 

अब मुझे उसकी कमजोरी का पता चल चुका था। मैंने यह भी देखा कि मोगरे की बेल वहां कोने में अकेली पड़ गई है। उसके दुख दर्द को बांटने वाला भी कोई नहीं है। इसलिए वह अंदर ही अंदर घुट रही थी और इसीलिए धीरे धीरे मर रही थी। 

मैंने सोचा कि इसे एक ऐसे साथी की जरू है जो जिंदादिल हो, हरदम खुश रहता हो। थोड़ा शरारती हो। अचानक मेरी नज़र "सदाबहार" पर पड़ी। मैंने सोचा सदाबहार का पौधा हरदम खिलखिलाता रहता है। उसके एक तरफ रात की रानी और चमेली की बेल है। ये दोनों बेल अक्सर मुझसे शिकायत करतीं हैं कि यह सदाबहार उन्हें छेड़ता है। कभी सीटी मारता है तो कभी शरारतें करता है। बदमाश भी नंबर एक ही है।

मैंने मोगरे की बेल को सदाबहार पौधे के पास शिफ्ट कर दिया। अब सदाबहार उस मोगरे की बेल को कभी छेड़ता , कभी गाना सुनाता , कभी शायरी तो कभी कहानी। मोगरे की बेल धीरे धीरे अपने गमों को भूलने लगी थी। अब उसके होंठ मुस्कुराने लगे थे। वह आंखों से बात करने लगी। उसका दिल जो किरणों के बिछोह में टूट चुका था , उसमें धड़कनें चलने लगी। अब वह सदाबहार के साथ ढेर सारी बातें करने लगी। उसे सदाबहार का साथ अच्छा लगने लगा। एक दिन सदाबहार ने उससे बात नहीं की तो उसका दिल टूटने लगा। अब वह दुबारा मरना नहीं चाहती थीं। सदाबहार भी सदाबहार था। अपने नाम के अनुरूप। ग़म सहकर भी औरों को खुश देखना उसकी प्रवृत्ति थी। मोगरे की बेल को देखकर वह भी प्रसन्न होता था। अब दोनों मिलकर खूब शरारतें करते थे। 

मोगरे की बेल में बहार आ गई।वह फूलों से लद गई। पूरे घर को महकाने लगी। सुबह-सुबह लॉन का वातावरण बहुत अच्छा होता है। सारे पेड़ पौधे आपस में खूब बातें करते हैं और एक दूसरे के साथ खूब खेलते हैं। अब मेरा मन मोगरे की बेल में बस गया। मैं घंटों उसके पास बैठकर उससे बातें करता रहता हूं। उससे महकता रहता हूं। अब वह बेल फिर से मुस्कुराने लगी है। सपने सजाने लगी है। उसकी धड़कनों में जैसे जान आ गई है। उस पर पूरा शबाब आया हुआ है। 

हमारे घरों में न जाने कितनी मोगरे की बेलों को ताजी हवा , खाद , पानी नहीं मिल रहा है इसलिए वे धीरे-धीरे मर रहीं हैं। उनको जरूरत है एक ऐसे साथी की जो सदाबहार के पौधे की तरह विपरीत परिस्थितियों में भी मुस्कुराता रहता है। अपने आसपास का वातावरण सदैव हल्का फुल्का रखता है। यारों का यार है वो। 

मैंने मोगरे की बेल को महकने के लिए धन्यवाद दिया लेकिन उसनेे कहा कि धन्यवाद का सही हकदार तो सदाबहार है। उसने मुझे एक नया जीवन दिया है। मुझमें जीने की आशा जगाई है। इसलिए धन्यवाद का सही हकदार वही है। मैंने दोनों को ही धन्यवाद कहा।

मैं समझ गया कि एक कुशल व्यक्ति ही यह सब कर सकता है। इसलिए सदाबहार की पीठ ठोककर मैं अपने काम में लग गया।


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