मन की चाँदी
मन की चाँदी
मां ने कहा " रमेश इधर आओ। आज धनतेरस की पूजा है इसलिए बाजार से चांदी के सिक्के जरूर खरीद लाओ। आज पूजा में चाँदी के सिक्के होना जरूरी है।" यह सुनकर रमेश परेशान हुआ क्योंकि कोविड समय से उसको आधी तनख्वाह मिल रही थी। घर चलाने में तंगी हो रही थी उस पर चांदी के सिक्के खरीदकर लाना असंभव सा लग रहा था उसे। रमेश अपनी माँ से कुछ ना कह पाया। रमेश की पत्नी यह सब देख रही थी। उसने मां से कहा" माँ , रमेश को पूरी तनख्वाह नहीं मिल रही है। वह यह सोच कर परेशान हो रहे हैं कि चाँदी के सिक्के कैसे लाये। इसलिए माँ चांदी के सिक्के की जगह क्यों ना हम इस बार मन को चांदी की तरह चमकाकर पूजा करे।"
माँ को पहले तो कुछ समझ नहीं आया। दूसरे कमरे मे बैठा रमेश यह सब सुन रहा था ।वह तुरंत माँ के पास आया और बोला " माँ कोई बात नहीं मैं चाँदी के सिक्के का इतंजाम कर लूँगा।"
चिंतित माँ ने रमेश को देखकर कहा " रमेश, अब बहू ने मुझे सबकुछ बता दिया है। मुझे बहू की बात समझ आ गई। इस बार हम मन की चाँदी से पूजा करेंगे ।"
माँ की बात सुनकर रमेश की आँखें खुशी से छलछला उठी। अब मां भी मुस्कुरा दी।
इस कहानी के माध्यम से मैं जन मानस से आग्रह करुँगी कि प्रभु की अपने पवित्र , निश्छल मन से पूजा करिये। प्रभु कभी भी महँगी वस्तु ,या किसी बोझ तले चढ़ावे से प्रसन्न कभी नहीं होते कभी स्वीकार नहीं करते।
प्रभु तो बहुत सहज होते हैं उन्हें तो केवल प्रेम से निर्मल मन से ही पाया जा सकता है। ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है और अनुभव भी।
आपसब भी कमेंट बॉक्स में अपने अनुभव मेरे से साझा कर सकते है। मुझे बेहद हर्ष होगा।
