मन की बात
मन की बात
तेज बारिश और कड़कड़ाती ठंड में चाय पीती अनामिका सोच रही थी कि मन की बात किसी ना किसी से जरूर कहनी चाहिए और इसे ये बात जीवन के चार दशक बीतने के बाद समझ आई।मन की बात मन में रखने से उस समय तो संतोष मिलता है लेकिन बाद के वक्त के लिए अफसोस के सिवा कुछ नहीं होता । उस वक्त महसूस होता है कि काश.. अपने मन की बात किसी से कहीं होती, कोई तो समझता उस वक्त,कुछ तो हल मिलता उस दुविधा का उस वक्त और आज वह सब सोच कर मन बेचैन तो नहीं होता...पागल तो नहीं होता..अब तो जीवन में कभी ख़त्म ना होने वाले अफसोस और कसक के सिवा कुछ बचा ही नहीं ।
अनामिका के विचारों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा था..उस वक्त तो वह घर ,परिवार,समझ, दूसरों की खुशी और सबसे पहले अपने परिवार की इज्जत के सिवा कुछ सोच ही नहीं पा रही थी कि अगर उसने अपने मन की बात की तो लोग क्या कहेंगे, मां बाबा का दिल टूट जाएगा....भले ही उसका दिल उस समय तिल तिल टूट रहा था..पर वह अपनों की खुशी के बारे में सोच रही थी, अपनी खुशी के बारे में नहीं ।
अनामिका की सोच और यादें रफ्तार पकड़ती जा रही थी...सोच रही थी कि अब....मेरे पास अफसोस और माफी के अलावा कुछ नहीं बचा.. चाहती तो वह सब बदल सकती थी कम से कम अपने मन की बात तो कह ही सकती थी लेकिन.. उसकी कमजोरी और मां बाबा का प्यार और भरोसा उसे अपने बारे में सोचने ही नहीं दे रहा था।
फूट फूट कर रोना क्या होता है आज मैंने पहली बार जाना ... फूट फूट कर रोई मै अपने जीवन में पहली बार.. चिल्ला कर रोई.... और सोचती रही की काश उस समय भी मै रोई होती तो आज कहानी कुछ और होती।
बार बार बस यही कहना चाहती हूं माफ कर दो मुझे....मेरे कारण ही ये हालात हुए हैं, मैं चाहती तो शायद सब ठीक कर सकती थी .... कुछ दिन, महिनों या सालों का तनाव रहता फिर सब ठीक होता लेकिन....अब तो जिंदगी भर का काश है....
इतने लोग थे मेरे आस पास ...किसी से तो कहती कि मुझे भी तुम पसंद हो...जिन्दगी गुजारना चाहती हूं तुम्हारे साथ.....लेकिन किसी और की क्या बताती जब मैंने तुम्हे ही कभी ये जाहिर नहीं होने दिया...की तुम बसते हो मेरे मन में.... तुम्हारे जीवन का हिस्सा बनना चाहती हूं मैं....।
कोशिशें तो तुमने बेहिसाब कि मुझसे हां बुलवाने की....लेकिन अपनों का प्यार, भरोसा और परवरिश भारी पड़ गया मुझसे हां बुलवाने में...
मुझे लगा नियति सब ठीक करेगी...लेकिन कर्म किए बिना तो नियति भी साथ नहीं देती....पर ये बात मुझे अब समझ आयी जब मैं अफसोस के सिवा कुछ नहीं कर सकती।
मेरे मां बाबा ने क्यों नहीं समझा मेरे जज्बातों को...मेरी आंखे, मेरा व्यवहार, तुम्हारा खुलकर उनसे मेरा हाथ मांगना. क्या नहीं समझ पाए होंगे वो.....पर फिर भी और बेहतर तथा लोग क्या कहेंगे ...ने हमारे रास्ते अलग कर दिए।पर शायद मैं तब भी कुछ कर सकती थी...मुझे लगा कि सब ठीक हो जाएगा लेकिन....
मन की बात मन में दबा कर रखने ने सब बर्बाद कर दिया जो मेरा सब कुछ हो सकता था वह मेरा कुछ ना रहा....।
नियति ने कितने मौके दिए थे मुझे शायद ये तुम्हारा सच्चा प्रेम ही था कि सालों तक शादी की बात पक्की होने के बाद भी वहां मेरी शादी ना हुई।इसके बाद मुझे तुमसे शादी करने के बारे में पूछा गया चूंकि मां बाबा ने एक बार हमारे रिश्ते के लिए मना कर दिया था तो मैंने उन्हें सबक सिखाने के लिए इनकार कर दिया ...लेकिन सबक तो मुझे मिला जीवन भर के लिए और सजा उसे.....।
सब कुछ तो था हमारे फेवर में पर मेरी चुप्पी ने सब ख़तम कर दिया।
आज मै किसी और की हूं और तुम किसी और के... अपनी अपनी जिंदगी जी रहे हैं दोनों लोगों की नजरों में खुशहाल जिंदगी....अच्छे लाइफ पार्टनर और प्यारे बच्चों के साथ।
लेकिन क्या सच में खुशहाल है जिन्दगी....।हर पल हर घड़ी महसूस करती हूं तुमको,मुझसे अलग तुम कभी हुए ही नहीं,तुमको पाने की कभी शिद्दत से कोशिश नहीं की मैंने पर तुमको खोना नहीं चाहा।अपने आप को हद से ज्यादा मसरूफ रखने की कोशिश की ताकि तुम्हारी यादों से निकल सकूं पर। यादें उनकी होती हैं जिन्हे भूला जाता है ....
शारीरिक मौजूदगी ना रहने पर भी हर पल मेरे साथ मौजूद रहते हो तुम...अब भी। कितनी बातें करती हूं मैं तुमसे और उसमे खुश भी रहती हूं...।तुम्हारे खयाल मात्र से चेहरा खिल जाता है, तुम्हारी नजरे आज भी मुझमें सिहरन पैदा करती हैं जबकि उन्हें देखे हुए ढाई दशक बीत गए....आज भी तुम्हारी आवाज़ दिल को सुकून देती हैं....बोलते नहीं हो..पर आवाज़
एहसासों में शामिल हैं।
सब कुछ है मेरे पास प्यार करने वाला पति,प्यारे बच्चे,घर परिवार,दौलत,रुतबा....लेकिन खुशी नहीं मन में। मुस्कुराती हूं खिलखिलाती हूं लेकिन चहकती नहीं...।
हर पल ग्रस्त हूं अपराधबोध से....
काश ....मैंने भी की होती मन कि बात किसी से...
विचारों के भंवर से अनामिका शायद अब भी ना निकलती अगर उसकी सासू मां ने उसे आवाज ना दी होती।
