अनुजा
अनुजा
सुमन का घर आज बच्चे की किलकारी से गूँज रहा था। शादी के 11 सालों के बाद एक नन्ही परी उसकी गोद में खेल रही थी। सच ही कहते हैं लोग, मातृत्व एहसास के बिना नारी जीवन अधूरा है, वो तो परिवार वालों का प्रेम और साथ था अन्यथा बिन बच्चे के एक माँ का जीवन कैसे होता है वह सुमन से बेहतर कौन जान सकता था, आज उसकी नन्ही परी की मुस्कान उसके सारे दर्द भुला देती है। देवरानी अनुजा के लिए दिल से दुआएं निकल रही थी और अपने किये गए गलत व्यवहार के कारण ग्लानि महसूस कर रही थी सुमन।
शर्मा जी का पत्नी, तीन बेटों और तीन बहुओं सहित सुखी परिवार था। छोटे बेटे ने अनुजा से अंतरधर्मीय विवाह किया था मन मार कर ही सही, पर बेटे की खुशी के खातिर सबने उसे अपने परिवार के सदस्य के रूप में अपनाया। अनुजा ने भी पूरे मन से उस घर को अपनाया। परंतु मंझली बहू पूरे मन से उसे अपना ना सकी शायद अपने माँ ना बन पाने के अवसाद के कारण घर में सब के साथ उसका व्यवहार बहुत अच्छा ना रहता था, वह हमेशा अलग घर लेने की जिद अपने पति से करती रहती। घर की शांति बनाये रखने के लिए शर्मा जी ने मंझले बेटा बहू को अलग घर लेकर दे दिया पर आना जाना लगा रहता था दोनों घरों में सभी का।
छोटी और बड़ी बहू की गोद हरी हो चुकी थी दोनों के दो दो बच्चों से घर में रौनक बनी रहती थी पर शादी के कई सालों बाद भी काफी इलाज के बाद भी मंझली बहू की सूनी गोद परिजनों को दुखी करती थी। हालांकि दोनों बेटों के चारों बच्चे मंझली काकी काका से ही ज्यादा हिले मिले थे लेकिन फिर भी सुमन को अपने माँ ना बन पाने का दुःख सालता रहता था। कई बार उसका मन होता कि अनाथालय से कोई बच्चा गोद ले ले परंतु कभी कह नहीं पाई, सास ससुर भी इस आशा में थे कि शायद देर से ही सही ईश्वर मंझली बहू और परिजनों की प्रार्थना अवश्य सुनेंगे। एकाध बार सासु माँ ने ये भी कहा कि बड़ी या छोटी बहू यदि चाहें तो सुमन को मातृत्व सुख मिल सकता है और घर का बच्चा घर में ही रह सकता है।
दिन बीत रहे थे कि अचानक एक दुर्घटना में शर्मा जी और उनकी पत्नी गंभीर रूप से घायल हो गए, तत्काल चिकित्सा उपलब्ध होने के बाद भी दोनों की हालत में सुधार नहीं आ रहा था और वे मंझली बहू की हरी गोद का सपना लिए ही इस दुनिया से विदा हो गए। एक झटके में ही पूरा परिवार बुजुर्ग विहीन हो गया। जहाँ चार बर्तन होते हैं वहाँ खटर पटर तो होती ही है, शर्मा जी की तीनों बहुओं में भी कुछ ऐसा ही होता रहता था, परंतु इस दुख की घड़ी में सभी एक दूसरे का हाथ थामे एक साथ खड़े थे। सिर पर माता पिता का साया हर कष्ट से बचाने की कोशिश करता है यहाँ तो एक साथ ही दोनों का साथ छूटना हृदय विदारक था। इस कठिन समय में सुमन द्वारा कही गयी पुरानी सारी दुखी करने वाली बातों को भुला कर अनुजा ने सास ससुर द्वारा सुमन की गोद हरी होने के सपने को पूरा करने की ठानी। सास ससुर के जाने के कुछ दिनों बाद मंझली बहू के परिवार को पूरा करने छोटी बहू ने एक अप्रत्याशित फैसला लिया, एक बेटा और बेटी की माँ होने के बावजूद तीसरी बार माँ बनने का फैसला। समय पूरा होने पर अनुजा ने एक बच्चे को जन्म दिया और जन्म के दस दिनों के बाद ही कानूनी रूप से उस बच्चे को मंझली बहू को गोद दे दिया जो आज सुमन की गोद में चैन की नींद सो रही थी और सुमन अपलक अपनी नन्ही परी को निहार रही थी साथ ही अनुजा को दिल से ढेरों दुआएं देते हुए अपनी आँख से बहते हुए खुशी के आँसू रोक नहीं पा रही थी। सबके प्रति किये गए अपने बुरे व्यवहार और अलग घर लेने पर उसे ग्लानि हो रही थी, अनुजा द्वारा किये गए त्याग, नि: स्वार्थ प्रेम, और अपने परिवार के सभी सदस्यों को खुश देखने की उसकी भावना के आगे आज सुमन अपने आप को तुच्छ महसूस कर रही थी, अपने देवर और देवरानी अनुजा के प्रति अगाध स्नेह का सैलाब सुमन की आँखों से बरस रहा था, आज उसे विपरीत कठिन परिस्थितियों में परिवार के साथ का महत्व समझ आ गया था।