मन की आहट
मन की आहट
बैलगाड़ी तैयार खड़ी थी।जिसे,चम्पा नाइन के पति ,गाँव के किसान से माँग लाये थे।अम्माँ ने झुककर ,सिर पर पल्ला डाल ,अपने कच्चे पक्के घर को प्रणाम किया।भीगी आँखो से चम्पा नाइन ,जो लगभग उनके हम उम्र थी,उसके,कसकर गले लग गई ।
"अम्माँ, गाड़ी में बैठो, वरना बस छूट जायेगी।"बेटे ने उनसे कहा। बैलों के गले की घंटी की आवाज के साथ ही गाड़ी के पहिये गाँव की कच्चे रास्ते पर चल पड़े। अम्माँ छूटते हुए रास्तों को देखने लगी।मानो गाँव की हर छूटती यादों को आंखों मे समेट लेना चाहती हों।
सिंघाडों से भरे पोखर,अमराई,लहलहाते खेत। चौदह बरस की थीं जब ब्याह कर आईं थी। भरा पूरा घर ,सास ससुर,देवर जेठ,बच्चे।बड़ा सा घर, धन धान्य से भरपूर। शहर की वो हवा चली।देवर पढ़कर शहर के हो गये। सास ससुर के जाते ही सबने अपने अपने हिस्से बाँट लिये। हवेली नुमा घर छोटे से घर मे बदला।सरुप के बाबू भी नहीं रहे। बेटे का दुख सास ससुर भी सह न सके ।पर वो जिन्दा रहीं अपने बेटे सरुप के लिये।उसे पढ़ाया,।बड़ा अफसर हो गया है शहर में। सरुप के जाने के बाद चम्पा नाइन ने बहुत साथ दिया उनका। निसंतान, बस दोनों बूढ़े पति पत्नी। घर तो उसका था नही।अब कहाँ रहेंगें दोनो बूढ़ा,बुढ़िया। सड़क आ गई थी।और सामने ही बस खड़ी थी। चम्पा नाइन के पति ने बस मे सामान रख दिया। सरुप ने अपनी जेब से चाभी निकाली,और चम्पा नाइन के पति को देते हुए बोला--ये घर की ताली है।आप और चम्पा अज्जी उसी घर मे रहना अब"
ये घर की ताली है आप और चंपा अज्जी वहीं रहना।किसी को सहारा देकर कितनी खुशी होती है। इसे जान गया था सरुप, मां के मन की आहट ले ली थी उसने।
